इतिहास को पढ़ा कम और कोसा ज्यादा जा रहा है। वे गले में देशभक्त होने का पट्टा डाल कर बाइक में डोलते रहते हैं। ये पट्टा उन्हें नयी ठसक वाली पहचान दे रहा है। कुछ भी कहने या बताने की जरूरत नहीं रहती। वे बेरोजगार हैं। घरवालों को इसकी टीस जरूर होती होगी। लेकिन पट्टाधारी मस्त कलंदर हैं। वे नए दौर के आत्ममुग्ध राष्ट्रभक्त हैं…
वीरेंद्र सेंगर
नया दौर है। नयी रवायते हैं। इतिहास को पढ़ा कम जा रहा है, कोसा ज्यादा जा रहा है। वे गले में देशभक्त होने का पट्टा डाल कर बाइक में डोलते रहते हैं। ये पट्टा उन्हें नयी ठसक वाली पहचान दे रहा है। कुछ भी कहने या बताने की जरूरत नहीं रहती। वे बेरोजगार हैं। घरवालों को इसकी टीस जरूर होती होगी।
लेकिन पट्टाधारी मस्त कलंदर हैं। वे नए दौर के आत्ममुग्ध राष्ट्रभक्त हैं। वे जमीनी हकीकत स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि बेरोजगार हैं। वे स्वयंभू राष्ट्रवादी हैं।
वे किताबों से नहीं, मोबाइल से ही तमाम ‘दिव्य ज्ञान’ प्राप्त करते हैं। यही बांटते भी हैं। कोई किंतु-परंतु लगाने की हिमाकत करता है तो ये उस पर राष्ट्रद्रोह ही होने का हुक्मनामा चेंप देते हैं।
इन नए राष्ट्र भक्तों से देश के तमाम कोने-कतरे तक लबालब नजर आते हैं। खासतौर पर हिंदी पट्टी में इनकी विनाशक बाढ़ आ गई है। अजब नजारा है! पिछले महीने में जगह-जगह इन नए रणबांकुरों से पाला पड़ा।
एक नाम है विजय प्रताप सिंह। बाराबंकी के एक गांव के हैं। इनके बाबा छोटे-मोटे जमींदार हुआ करते थे। उनके जमाने की हवेली खंडहर बन रही है। मरम्मत कराने की भी औकात नहीं बची है। विजय प्रताप एमएससी हैं। पिछले तीन साल से घर बैठे हैं। बेरोजगार हैं।
बस, आवेदन भेजते रहते हैं। दर-दर भटक चुके हैं। लेकिन मजाल है कि उन्हें सरकार और सिस्टम पर गुस्सा आ जाए? अब वे खूब खुश हैं। समाज सेवा का रोजगार मिल गया है। विधायक जी ने एक बाइक 6 महीने पहले गिफ्ट कर दी थी।
पेट्रोल और जेब खर्च के लिए आजमाएं फंडे बता दिए थे। सेवा चौखी चल पड़ी है। मोदी-योगी का ‘रामराज’ है। पुलिस के दरोगा-सिपाही हर फेरे में ‘जय श्री राम’ ठोकते हैं। वे इलाके के भैया जी हो गए हैं। हर मर्ज की कोई ना कोई दवा मुहैया करा देते हैं।
वे संगठन समिति के स्वयंभू अध्यक्ष हैं। कई गौ ‘तस्करों’ को सजा दे चुके हैं। यदि गोल टोपी धारक हो, बड़ी दाढ़ी रखता हो, तो वह भैया जी की बगैर कृपा के गोवंश पाल भी नहीं सकता।करीब 20 किलोमीटर इलाके में उनका प्रताप फैला है।
उनकी गौ सेना में आठ-दस भगवा बंदे हैं। सब बाइक वाले हैं। गले का भगवा पट्टा ही उनकी आईडी होती है। धर्म-अधर्म से जुड़ी कोई इवेंट हो, भैया जी का जुड़ाव जरूरी है।कुछ लोग तो अफवाह फैलाते रहे हैं कि भैया जी को लखनऊ से टिकट मिल सकता है। लेकिन उनको तो बस ‘राम-काज’ भर करना है। लाल सुर्ख टीका लगाये विजय प्रताप पिछले दिनों कहीं मिल गए। हांकने लगे ‘रामराज’ की शौर्य गाथाएं। बोले, पद की चाह नहीं है। राम काज और राम राज के लिए जीवन अर्पण करना है।
देश के हालात पर चर्चा चली, तो उन्होंने अद्भुत ज्ञान दिया। बोले, इतिहास नए सिरे से लिखने की जरूरत है। 2014 के बाद ही भारत ने अपने सांस्कृतिक गौरव को पहचाना है। ये भी कि हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप ने कैसे सम्राट अकबर को खदेड़ दिया था।उसने वीर राणा से जान की भीख मांगी थी। तब कही राणा प्रताप ने बेचारे की जान बख्श दी थी। आप सेक्यूलर जमात के लोग, हारे हुए मियां अकबर को महान बताते हो। इससे ज्यादा और मूर्खता क्या हो सकती है!
मैं इस खासे पढ़े-लिखे विजय का ‘दिव्य ज्ञान’जानकर हैरान होता रहा। वो बताता गया कि 2024 के बाद कैसे भारत ‘हिंदू राष्ट्र’ बनने वाला है। यह भी कि अमेरिका की तरह देश में राष्ट्रपति प्रणाली लागू की जाएगी।
एक देश, एक प्रधान सेवक का फार्मूला होगा। इतिहास के बारे में तमाम दिव्य ज्ञान वह देता गया। यह भी बताया कि ‘प्रधान सेवक’ आजीवन प्रधान रहेंगे। 125 साल तक उन्हें जीना है।
मोबाइल ज्ञान ने ‘क्रांति’कर दी है। हल्द्वानी के एक डिग्री कॉलेज की फैशनेबल सहायक प्रोफेसर मोहतरमा से मुलाकात हुई। उन्होंने बड़ी धाकड़ी से फरमाया कि 1947 में देश 99 साल की लीज पर स्वतंत्र हुआ था। अब पूर्ण स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रवादी सरकार जतन कर रही है।
मैंने समझाने की कोशिश की कि यह गलत बात है। भाजपा की एक अज्ञानी महिला पदाधिकारी ने यह शिगूफा छोड़ा था। आप तो प्रोफेसर हैं। इतनी अज्ञानी कैसे हैं? मोहतरमा एकदम ‘फायर’ हो गयीं। तमतमा गयीं। बोलीं, सर! उम्र का लिहाज करती हूं।
क्योंकि भारतीय पुरातन संस्कृति का सम्मान करती हूं। लेकिन सर! आप भी कांग्रेसी इतिहास से आक्रांत हैं। केंद्र सरकार को समझौता लीज का डॉक्यूमेंट मिला है। केंद्र सरकार देश के सम्मान के खातिर लीज पर मुंह नहीं खोल रही।
मैंने सवाल किया, मैडम! फिर आपको ये ज्ञान कैसे मिला? वह बोलीं, ये ‘अंदर’ की बात है। 2024 के बाद ‘दिल्ली’ इसका खुलासा करेगी। ये बात हाल की है। वहां एक और सज्जन बैठे थे, जिन्हें मोहतरमा बार-बार सर कह रही थी। उन्होंने परिचय कराया। ये फलां साहब हैं और आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व के बहुत करीबी हैं।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रतिभावान स्कॉलर रहे हैं। फिलहाल, पूर्वोत्तर के एक राज्य में कुलपति तैनात हैं। ये इतिहास के अंतरराष्ट्रीय स्तर के हस्ताक्षर हैं। मैंने उन्हें झुककर प्रणाम किया।
वे इतने बड़े विद्वान जो ठहरे। वे बोले, मध्यकाल के इतिहास का पुनर्लेखन कर रहा हूं। दो साल के अंदर इतिहास का उनका नया शोध आने वाला है। देश बहुत बदलने वाला है। अब चुप हो जाने की मेरी बारी थी।