जनता की अदालत में भाजपा

भाजपा के रणनीतिकारों को एहसास हो चुका है कि उत्तराखंड में दोबारा भाजपा को सत्ता में लाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। यही वजह है कि खुद प्रधानमंत्री मोदी कभी केदारनाथ के बहाने तो कभी योजनाओं का लोकार्पण करने यहां पहुंच रहे हैं…

रणविजय सिंह
विधानसभा चुनाव-2022 की तैयारियों में सभी राजनीतिक पार्टियां सक्रिय हो गयी हैं। स्वाभाविक है कि सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा भी अपने पूरे दमखम के साथ चुनाव में उतर चुकी है। किसी न किसी बहाने भाजपा के केंद्रीय नेता उत्तराखंड के दौरे पर आ रहे हैं और भाजपा का गुणगान करके वापस लौट भी रहे हैं।

भाजपा के रणनीतिकारों को अब इस बात का एहसास भलीभांति हो चुका है कि उत्तराखंड में दोबारा भाजपा को सत्ता में लाने के लिए सभी को कड़ी मेहनत करनी होगी। यही खास वजह है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कभी केदारनाथ के बहाने तो कभी योजनाओं का लोकार्पण करने उत्तराखंड पहुंच रहे हैं।

केवल इतना ही नहीं, भाजपा के केंद्रीय नेताओं के दौरों पर गौर किया जाए तो ऐसा लग रहा है कि सभी को भाजपा के रणनीतिकारों ने आदेश जारी कर दिया है कि लगातार उत्तराखंड पर नजर रखें और वहां जाएं।केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा लगातार उत्तराखंड के दौरे पर आ रहे हैं।

मतलब साफ है कि कहीं न कहीं से भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को इस बात का संकेत मिल चुका है कि उत्तराखंड में पूर्ण बहुमत के बावजूद बार-बार मुख्यमंत्री बदलने से लोगों का विश्वास भाजपा पर कम हुआ है। क्योंकि भाजपा के शीर्ष नेताओं का उत्तराखंड का चुनावी दौरा शुरू तो हो गया है लेकिन अब तक पार्टी के किसी भी बड़े नेता ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि आखिर बार-बार मुख्यमंत्री क्यों बदलना पड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का सबसे लंबा कार्यकाल करीब 4 साल का रहा।

उसके बाद तीरथ सिंह रावत आए और करीब तीन-चार माह तक मुख्यमंत्री रहे। अंत में केंद्रीय नेतृत्व ने पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया।

सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आखिर पार्टी चुनाव में त्रिवेंद्र सिंह रावत या तीरथ सिंह रावत या वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी में से किस मुख्यमंत्री के कार्यकाल की उपलब्धियों को लेकर जनता के बीच जाएगी। जनता तो यह जानना चाहती है कि क्या त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत ने उत्तराखंड के विकास को लेकर कोई काम नहीं किया है।

यदि किया है तो दोनों को क्यों हटाया गया। क्या पार्टी के रणनीतिकार पुष्कर सिंह धामी के कार्यकाल की उपलब्धियों को लेकर जनता के बीच जाएंगे। अहम सवाल यह है कि सबसे ज्यादा कार्यकाल त्रिवेंद्र सिंह रावत का ही रहा है और सबसे ज्यादा विकास या यूं कहें उपलब्धियां उन्हीं के कार्यकाल में हुई हैं।

तीरथ सिंह रावत का कार्यकाल सबसे कम रहा है। तीरथ तो अभी अपनी व्यवस्था ही बना रहे थे कि उन्हें हटा दिया गया। पुष्कर सिंह धामी ने ऐसा कुछ चमत्कार नहीं किया है कि उत्तराखंड के लोग आंख बंद करके भाजपा को वोट देंगे। विधानसभा चुनाव का समय काफी नजदीक है। लेकिन अब तक ये सारी चीजें उलझी हुई हैं।पार्टी के दिग्गज नेता उत्तराखंड आते हैं लेकिन यह नहीं बता पाते कि किन कारणों से त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री पद से हटाया गया। कहीं की भी जनता हो उसे तो विकास चाहिए। हर पार्टी के अपने-अपने कैडर होते हैं।

लेकिन पार्टी के रणनीतिकारों को यह ध्यान रखना चाहिए कि कैडरों के बूते सरकार नहीं बनती। इसके लिए तो साधारण जनता का भी वोट जरूरी होता है। बिना आम जनता का वोट हासिल किए सत्ता की सीढ़ी चढ़ना जोखिमभरा होता है। यह सर्वविदित है कि उत्तराखंड में वाकई यदि विकास हुआ तो त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल में ही हुआ है। उत्तराखंड की जनता को इस बात का ही तो मलाल है कि पूर्ण बहुमत मिलने के बावजूद मौसम की तरह मुख्यमंत्री बदले गये। तो आखिर क्यों भाजपा को दोबारा मौका दिया जाए।

उत्तराखंड की जनता के मन में कई तरह के सवाल हैं जिसका जवाब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को इस बार चुनाव प्रचार के दौरान देना होगा। हालांकि, कांग्रेस भी उतनी मजबूत स्थिति में नहीं है कि वह सरकार बना ले। कांग्रेस का जनाधार कमजोर है।

कांग्रेस के मुकाबले भाजपा का जनाधार ठीक-ठाक ही दिख रहा है। इसलिए वाकई भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को उत्तराखंड में दोबारा अपनी सरकार बनाना है तो उसे सबसे पहले यह बताना होगा कि आखिर बार-बार मुख्यमंत्री क्यों बदलना पड़ा।

वरना भाजपा के लिए इस बार का डगर आसान नहीं है। क्योंकि, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व बार-बार उत्तराखंड में आकार आम जनता को भ्रमित नहीं कर सकता। आम आदमी पार्टी भी इस बार यहां सक्रिय है लेकिन सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होगी। हां, इतना जरूर है कि कुछ विधानसभा सीटों को जरूर प्रभावित करेगी।

लेकिन यह भी समझना होगा कि आखिर आम आदमी पार्टी किस पार्टी का भाजपा या कांग्रेस किसका वोट काटेगी। क्योंकि यह तो है ही कि आम आदमी पार्टी कुछ न कुछ वोट तो काटेगी ही।

चुनावी विश्लेषकों की मानें तो बसपा के वोट बैंक में आम आदमी पार्टी सेंधमारी कर सकती है। सपा सहित उक्रांद जैसी पार्टियां भी वोट कटवा बन कर ही आगामी विधानसभा चुनाव में दिखाई पड़ेंगी। इसलिए भाजपा को चुनावी रणनीति इस बार बदलनी होगी। वरना, आगामी विधानसभा चुनाव में सत्ता पाना मुश्किल हो जाएगा।

जनता तो चुनाव में परीक्षा लेती है। अब भाजपा को भी परीक्षा देने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। वरना, चुनाव की राह कठिन है। वैसे अभी तो समय है। इसलिए भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों को फूंक-फूंक कर कदम उठाने की आवश्यकता है। संभव है कि कुशल रणनीति से भाजपा की सरकार की दोबारा वापसी हो जाए। शेष तो उत्तराखंड की जनता को तय करना है।

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