सुप्रीम कोर्ट ने मोरेटोरियम मामले में कर्जदारों को राहत दी है। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा की छह महीने की ऋण किस्त स्थगन अवधि के लिए उधारकर्ताओं से कोई चक्रवृद्धि या दंडत्मक ब्याज नहीं लिया जाएगा, और यदि पहले ही कोई राशि ली जा चुकी है, तो उसे वापस जमा या समायोजित किया जाएगा। कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर पिछले साल ऋण किस्त स्थगन की घोषणा की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त 2020 से आगे ऋण किस्त स्थगन का विस्तार नहीं करने के केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि यह एक नीतिगत निर्णय है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि शीर्ष न्यायालय केंद्र की राजकोषीय नीति संबंधी फैसले की न्यायिक समीक्षा तब तक नहीं कर सकता है, जब तक कि यह दुर्भावनापूर्ण और मनमाना न हो।शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वह पूरे देश को प्रभावित करने वाली महामारी के दौरान राहत देने के संबंध में प्राथमिकताओं को तय करने के सरकार के फैसले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।
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आरबीआई ने पिछले साल 27 मार्च को एक परिपत्र जारी की थी
पीठ ने रियल एस्टेट और बिजली क्षेत्रों के विभिन्न उद्योग संगठनों द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर अपने फैसले में यह बात कही। इन याचिकाओं में महामारी को देखते हुए ऋण किस्त स्थगन की अवधि और अन्य राहत उपायों को बढ़ाने की मांग की गई थी। आरबीआई ने पिछले साल 27 मार्च को एक परिपत्र जारी कर महामारी के चलते एक मार्च 2020 से 31 मई 2020 के बीच चुकाई जाने वाली ऋण की किस्तों के भुगतान को स्थगित करने की अनुमति दी थी। बाद में, स्थगन को पिछले साल 31 अगस्त तक बढ़ा दिया गया। शीर्ष न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों से यह नहीं कहा जा सकता है कि केंद्र और आरबीआई ने कर्जदारों को राहत देने पर विचार नहीं किया। पीठ ने कहा कि ब्याज की पूरी छूट संभव नहीं है, क्योंकि इसके बड़े वित्तीय निहितार्थ होंगे।