मांगों पर अड़े किसान

  • कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर डटे किसान
  • केंद्र बातचीत के आमंत्रण के साथ आंदोलन को लंबा खींच रही

सिंघू बॉर्डर से सुमित्रा 

केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ करीब एक महीने से दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर किसानों ने डेरा डाला हुआ है। किसान इन कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हैं। कानून रद्द करवाए बिना वे बॉर्डर से हटने वाले नहीं हैं। छह महीने के राशन-पानी का बंदोबस्त करके ही वे बॉर्डर पर पहुंचे हैं। खुले आसमान के नीचे ठंड से बेपरवाह किसानों का मनोबल ऊंचा दिखाई दे रहा है। केंद्र सरकार बातचीत के आमंत्रण के साथ किसानों के इस आंदोलन को लम्बा खींचना चाहती है। किसान संगठन भी केंद्र की मंशा को समझ रहे हैं। उनका दावा है कि वे झुकने वाले नहीं हैं। इतिहास गवाह है कि किसानों के सामने कभी कोई सरकार नहीं टिक पाई है।

इस आंदोलन के दौरान अब तक 44 से ज्यादा किसान अपनी जान गंवा चुके हैं। जान गंवाने वाले परिवारों को सिख पंचायत गोद लेगी। पंचायत मृतक किसानों के बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाएगी। मृतक किसानों के परिवारों को दस हजार रुपए महीने पेंशन की भी व्यवस्था की जाएगी। आंदोलन खत्म होने के बाद जो धन राशि किसान जत्थेबंदियों के पास बच जाएगी, उसे भी पीड़ित परिवारों की मदद के लिए दे दिया जाएगा। किसान नेता जतिंदर सिंह छीना का कहना है कि बेहतर होता ठंड के बजाय आंदोलनकारी किसान सरकार की गोलियों से शहीद हों।

किसान संगठनों का कहना है कि आंदोलन के दौरान जिन किसानों की किसी भी वजह से मौत हुई है, उसके लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है। केंद्र ने काले कानून लागू कर किसानों को ठंड और कोरोना महामारी के बीच आंदोलन करने के लिए मजबूर कर दिया है। केंद्र पर जिद पकड़ने का आरोप लगाते हुए किसान संगठनों ने कहा कि आंदोलन के लिए दिल्ली कूच कर रहे किसानों पर ठंड के मौसम में वाटर कैनन से पानी की बौछारें छोड़ी गईं।

ठंड के दौरान सड़क पर बैठ कर धरना दे रहे किसानों में केंद्र के प्रति गुस्सा लगातार बढ़ रहा है। किसान यह मान रहे हैं कि जानबूझ कर मामले को हल करने में देरी की जा रही है। इसका एकमात्र मकसद किसानों का मनोबल तोड़ना है लेकिन किसानों ने भी तय कर लिया है कि कृषि कानून रद्द करवाए बिना उनका वापस लौटना मुश्किल है।

बॉर्डर पर जिन अन्नदाताओं की मौत हुई है, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए संकल्प लिया गया कि जब तक किसानों की जीत नहीं हो जाती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। उल्लेखनीय है कि बॉर्डर पर आने वाले किसानों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। रोजाना बड़ी संख्या में बॉर्डर पर आने वाले पंजाबी कलाकार और गायक भी किसानों का मनोबल बढ़ा रहे रहे हैं। पंजाब के अलावा अब राजस्थान के किसान भी बॉर्डर पर पहुंचने लगे हैं। राजस्थान के सांसद हनुमान बेनीवाल अपने तीन विधायकों के साथ हजारों किसानों को लेकर बॉर्डर पर पहुंच गए हैं। किसानों के समर्थन में उन्होंने एनडीए से अपना समर्थन भी वापस ले लिया है। उधर, पंजाब में भाजपा के पूर्व सांसद हरिंदर सिंह खालसा ने भाजपा को अलविदा कह दिया है।

आंदोलन के लंबा खिंचने से हरियाणा में खट्टर सरकार का विरोध भी तेज होने लगा है। विरोध की संभावनाओं को देखते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को भिवानी जिले के बहल गांव में 27 दिसंबर को होने वाली अपनी जल अधिकार रैली स्थगित करनी पड़ी है। अब इस रैली के लिए 3 जनवरी की तारीख तय की गई है। इससे पहले अंबाला में किसानों ने मुख्यमंत्री की गाड़ियों के काफिले पर डंडे चलाये थे।

 इससे पहले उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चैटाला भी अपने चुनाव क्षेत्र उचाना में एक शादी समारोह में जाने का कार्यक्रम स्थगित कर चुके हैं। करसिंधु गांव में दुष्यंत के हेलीकॉप्टर को उतारने के लिए हेलीपैड तैयार किया गया था, जिसे किसानों ने उखाड़ फेंका। दुष्यंत को विरोधस्वरूप काले झंडे दिखाने की योजना भी तैयार कर ली गई थी लेकिन हालात के मद्देनजर दुष्यंत को अपना कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा है।

मुख्यमंत्री खट्टर और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत के बाद हरियाणा के किसानों का गुस्सा अब जनप्रतिनिधियों पर भी फूटने लगा है। टोहाना में सैकड़ों किसानों ने सरकार में हिस्सेदार जननायक जनता पार्टी के विधायक देवेंद्र बबली के कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया। इस दौरान किसानों ने डांगरा रोड को जाम कर दिया और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। टोहाना में भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले सैकड़ों की संख्या में किसानों ने डांगरा रोड स्थित विधायक देवेंद्र सिंह बबली के कार्यालय के सामने प्रदर्शन करते हुए खट्टर सरकार के खिलाफ रोष जताया। किसानों ने विधायक बबली को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि किसानों का समर्थन करते हुए उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया तो आने वाले समय में विधायक का हर गांव में विरोध किया जाएगा।

हरियाणा में खाप-पंचायतें शुरू से ही बड़ी भूमिका निभाती रही हैं। खाप-पंचायतें भी अब न केवल किसानों के पक्ष में आ खड़ी हुई हैं, बल्कि मंत्रियों का हुक्का-पानी बंद करवाने के फरमान भी जारी करने लगी हैं। दलाल खाप ने कृषि मंत्री जयप्रकाश दलाल के सामाजिक बहिष्कार का फैसला किया है। इस फैसले के बाद दलाल का हुक्का-पानी बंद कर दिया जाएगा। दलाल खाप का कहना है कि जो इंसान कृषि मंत्री होकर किसानों का नहीं हुआ, वह हमारा और हमारे समाज का कैसे हो सकता है, ऐसे में उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा।

कृषि मंत्री दलाल किसान आंदोलन को लेकर विवादित बयान देते रहे हैं. उन्होंने पहले कहा था कि दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों में हरियाणा के किसान शामिल नहीं हैं। फिर उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन में पाकिस्तान और चीन का हाथ है। इसके बाद पंजाब से हरियाणा के हिस्से का पानी लेने के लिए नारनौल में जल अधिकार रैली आयोजित की गई, जिसे आंदोलन कर रहे पंजाब व हरियाणा के किसानों को आपस में बांटने का आरोप लगाया। दलाल अब अपने गृह जिले भिवानी में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की जल अधिकार रैली करवाने जा रहे हैं। किसान इस बात को लेकर भी दलाल से खफा हैं। बहल गांव में होने वाली खट्टर की रैली की तैयारियों के सिलसिले में बैठक आयोजित करने पर भी दलाल को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा। किसानों का कहना है कि दलाल उनके वोटों से चुन कर मंत्री बने और अब वे ही सबसे ज्यादा किसानों की खिलाफत कर रहे हैं। किसानों ने कहा कि दलाल को समझ जाना चाहिए कि उनकी जुबान और करनी की वजह से ही उन्हें पुलिस के साए में बैठक करने को मजबूर होना पड़ रहा है। कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन में फूट डालने के लिए दलाल अब सतलुज यमुना जोड़ नहर के निर्माण का राग अलाप रहे हैं। किसानों ने दलाल का पुतला भी फूंक दिया।

किसान इस बात को अच्छी तरह से समझ रहे हैं कि बॉर्डर पर बैठे पंजाब और हरियाणा के किसानों को आपस में बांटने के इरादे से ही सतलुज यमुना जोड़ (एसवाईएल) नहर के मुद्दे को तूल देने की कोशिशें की जा रही हैं। इसी सिलसिले में दक्षिण हरियाणा के नारनौल शहर में मुख्यमंत्री खट्टर ने एक रैली आयोजित की। रैली में खट्टर ने आंदोलनकारी हरियाणा के किसानों से कहा कि हमें पंजाब के किसान भाइयों से अपने हक के पानी के बारे में भी बात करनी चाहिए।

पंजाब और हरियाणा के बीच एसवाईएल नहर के निर्माण और पानी के बंटवारे को लेकर कई दशकों से विवाद चला आ रहा है। नहर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट हरियाणा के हक में पहले ही फैसला दे चुका है। पंजाब का कहना है कि किसी दूसरे राज्य को देने के लिए उसके पास फालतू पानी नहीं है। खट्टर सरकार को लगता है कि पानी एक ऐसा मुद्दा है, जो कृषि कानूनों को लेकर एकजुट हुए दोनों राज्यों के किसानों के बीच दूरियां बढ़ा सकता है। यही वजह रही कि भाजपा ने आनन-फानन में नारनौल में जल अधिकार रैली आयोजित कर इस मामले को एक बार फिर से गर्म करने की कोशिश की है।

 आंदोलन कसमर्थन कर रहे विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कहना है कि भाजपा को उपवास नहीं, प्रायश्चित करना चाहिए। लोग समझ गए हैं कि भाजपा की नीयत नहर बनाने की नहीं, बल्कि पंजाब व हरियाणा के किसानों को आपस में भिड़ाने की है। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के वरिष्ठ नेता अभय सिंह चैटाला का कहना है कि केंद्र और हरियाणा में भाजपा की सरकार है और सुप्रीम कोर्ट हरियाणा के हक में फैसला दे चुका है, ऐसे में भाजपा को नहर बनाने से कौर रोक रहा है? लोग समझ नहीं पा रहे कि सत्तारूढ़ पार्टी रैलियां कर किससे नहर बनाने की मांग कर रही है?

बहरहाल, सवाल यह है कि क्या भाजपा दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर बैठे पंजाब-हरियाणा के किसानों के बीच कोई मतभेद पैदा कर पाएगी? इस बात को दोनों ही राज्यों के किसान अच्छी तरह से समझ रहे हैं। उन्हें मालूम है कि किसानों को बांटने के प्रयास शुरू किये जा चुके हैं, लेकिन दोनों ही राज्यों के किसानों का मकसद इस समय एसवाईएल नहर नहीं, बल्कि कृषि कानूनों को रद्द करवाना है। सब का ध्यान भी इस समय इसी मुद्दे पर केंद्रित है। किसान करीब एक महीने से बॉर्डर पर डटे हुए हैं और उन्होंने साफ कह दिया है कि फतह हासिल करने के बाद ही वापस लौटेंगे। किसान यह भी कह रहे हैं कि जब उनके पास जमीन ही नहीं बचेगी तो वे पानी लेकर भी क्या करेंगे?

कुल मिलाकर यह कि किसानों ने सिंघू बॉर्डर पर किसान गढ़ नाम का गांव बसा लिया है। अब यही उनका दूसरा घर है। परेशानियां तो हैं, लेकिन जंग जीत लेने का जज्बा भी है। देखना है कि केंद्र सरकार कब तक उनका इम्तिहान लेती है?

नए साल से एसवाईएल के लिए दिल्ली कूच

कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन अभी खत्म भी नहीं हुआ है कि हरियाणा युवा किसान संघर्ष समिति ने सतलुज-यमुना जोड़ (एसवाईएल) नहर के निर्माण को लेकर दिल्ली कूच का ऐलान कर दिया है। इसके लिए जल्दी ही जन जागरण अभियान शुरू हो जाएगा। इससे पहले भी समिति पानी की समस्या को लेकर नारनौल से दिल्ली तक पैदल मार्च कर चुकी है। युवा किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष एवं अटेली क्षेत्र से पूर्व विधायक नरेश यादव का कहना है कि नहर निर्माण के मामले में केंद्र सरकार का रवैया ढुलमुल है, इसलिए आज तक दक्षिण हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र को उसके हिस्से का पानी नहीं मिल पाया है। किसान एक-एक बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। भूजल स्तर लगातार गिरता जा रहा है, जो अब हजारों फीट नीचे पहुंच चुका है। इसी वजह से इस क्षेत्र को डार्क जोन भी घोषित किया जा चुका है। ऐसे में किसान ट्यूबवेल नहीं लगा सकते। अहीरवाल क्षेत्र की समस्या का एकमात्र समाधान नहरी पानी ही है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद हरियाणा को पंजाब पानी नहीं देने की जिद पकड़े हुए हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से हठ छोड़ने का आग्रह करते हुए यादव ने कहा है कि उन्हें हरियाणा के किसानों के बारे में भी सोचना चाहिए। किसान अन्नदाता हैं, चाहे वे हरियाणा के हों या फिर पंजाब के हों। सबसे पहले वे किसान हैं और उनके किसी राज्य विशेष के होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।यादव ने अपील की है कि जिस तरह से मोदी सरकार ने धारा-370 जैसे कभी नहीं खत्म होने वाले मुद्दे का समाधान निकाला है, उसी तरह उन्हें दशकों से चली आ रही एसवाईएल की समस्या का भी समाधान निकालना चाहिए।

 

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