जदयू का ‘मिशनकुनबा”

  • कयास लगाए जा रहे कि दरक सकता है भाजपा-जदयू गठजोड़
  • असंतुष्ट विधायकों के पाला बदलने से जदयू को मिल सकता है फायदा

कृष्ण किसलय

पटना।17वीं बिहार विधानसभा के गठन के बाद से ही विभिन्न राजनीतिक दलों की संख्या गणित के मद्देनजर पिछले महीनों से यह चर्चा लगातार गर्म है कि भाजपा कभी भी जदयू से नाता तोड़ सकती है, क्योंकि कम विधायक के होने के बाद जदयू के नेता नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनाए गए हैं और मंत्रिमंडल के विस्तार में उनका दबाव होने के कारण भाजपा के विधायकों में सुगबुगाहट है। यह चर्चा की जाती रही है कि बिहार विधानसभा का मध्यावधि चुनाव राज्य के पंचायत चुनाव के साथ किए जाने की स्थिति पैदा हो सकती है। कयास यह भी लगाया जाता रहा है कि या तो असंतुष्ट विधायक जदयू से टूटकर राजद में जाएंगे, जो विधानसभा में सबसे अधिक संख्या बल में होने की वजह से सरकार बनाने के प्रयास में अब भी लगी हुई है या फिर जदयू, राजद और कांग्रेस तीनों से विधायक टूटकर भाजपा में शामिल हो सकते हैं। हालांकि, संख्या बल के हिसाब से दल-बदल कानून के कारण विधायकों को अपनी मौजूदा पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाने का गणित आसान नहीं है। इन कयासों और गर्म चर्चाओं के बीच विधानसभा चुनाव परिणाम में कम विधायक संख्या के कारण बड़े भाई से छोटे भाई की भूमिका पहुंच गए नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने संख्या बल विस्तार का अपना अभियान मिशन कुनबा जारी रखा है।

बसपा के एकमात्र विधायक जदयू में शामिल

जब 10 नवंबर 2020 को बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम आया तो लंबे अर्से के बाद बसपा को बिहार में खुशी हासिल हुई थी कि उसके भी खाते में एक सीट आई। बसपा के टिकट पर चैनपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर मोहम्मद जमा खान उसके एकमात्र विधायक के रूप में बिहार विधानसभा में पहुंचे। लेकिन मोहम्मद जमा खान ने बिहार बसपा और बसपा सुप्रीमो उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को तेज झटका दिया। वह ढाई महीने के भीतर ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस जयंती पर 23 जनवरी को जदयू में शामिल हो गए। जमा खान के जदयू में आने से बिहार की सरकार में शामिल जदयू के विधायकों की संख्या 44 हो गई। अब पूर्ववर्ती नीतीश सरकार में कृषि मंत्री रहे नरेंद्र सिंह के पुत्र सुमित सिंह ने भी विधानसभा में जदयू को समर्थन देने की बात कही है। इस बीच कांग्रेस के दो विधायकों ने भी जदयू के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह से मुलाकात की है, जिनके जदयू में शामिल होने की चर्चा भी गर्म है।

लोजपा और निर्दलीय विधायकों के भी जाने की चर्चा

सुमित सिंह चकाई विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय जीतकर बिहार विधानसभा में पहुंचे हैं। वह बिहार के इस बार एकमात्र निर्दलीय विधायक हैं। यह समझा जा रहा है कि सुमित सिंह को नए नीतीश मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। इसके बाद वह जदयू की विधिवत सदस्यता भी ग्रहण कर सकते हैं। सुमित सिंह के जदयू में शामिल होने के बाद जदयू के विधायकों की संख्या 45 हो जाएगी। सुमित सिंह के जदयू में शामिल होने की चर्चा के माहौल में नीतीश कुमार और उनकी सरकार पर विधानसभा चुनाव के दौरान बेहद आक्रामक रहे रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान की पार्टी लोजपा से एकमात्र विधायक चुने गए राजकुमार सिंह का मुख्यमंत्री कार्यालय में उनसे मुलाकात करने से प्रदेश में आग में घी डालने वाला सियासी माहौल पैदा हो गया है। इससे पहले राजकुमार सिंह ने बिहार के भवन निर्माण मंत्री अशोक चैधरी से भी मुलाकात की थी। मुख्यमंत्री से मुलाकात के बाद लोजपा विधायक राजकुमार सिंह ने कहा है कि उनकी भेंट का राजनीतिक अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी कहा है कि बिहार के विकास के लिए वह कृतसंकल्प हैं, जिसका खास अर्थ निकाला जा रहा है।

एनडीए की बैठक में जाने से चिराग का इनकार

संसद के बजट सत्र पर चर्चा के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ओर से रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा का एनडीए का हिस्सा होने के नाते लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान को भी बुलाया गया, लेकिन तबीयत खराब होने की वजह से उन्होंने बैठक में जाने से इनकार कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुखर समर्थक रहे चिराग पासवान का बिहार चुनाव परिणाम के बाद एनडीए संबंध अच्छा नहीं माना जा रहा है। बिहार के चुनाव में उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और अन्य एनडीए नेताओं की तारीफ की, लेकिन मुख्यमंत्री पद के एनडीए प्रत्याशी नीतीश कुमार की खूब आलोचना की और भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए नीतीश कुमार को जेल भेजे जाने तक की धमकी दी। चिराग पासवान की रुख की वजह से विधानसभा चुनाव में जदयू को कम सीटों पर ही जीत हासिल हो सकी।

ओवैसी की पार्टी के विधायक भी ताक में?

बिहार में लगातार बदलते सियासी माहौल में मुस्लिम राजनीति करने वाले सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से जीतकर विधानसभा पहुंचे उसके सभी पांचों विधायकों ने नीतीश कुमार से 28 जनवरी को भेंट की। असदुद्दीन ओवैसी के इन विधायकों की नीतीश कुमार से मुलाकात ने भी सत्ता के गलियारे में हलचल बढ़ा रखी है। एआईएमआईएम वह पार्टी है, जिसने इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का समीकरण बिगाड़ दिया। इसी पार्टी के कारण कांग्रेस को बिहार में करारी हार का सामना करना पड़ा और माना गया कि मुस्लिम मतदाताओं का कांग्रेस से पूरी तरह मोहभंग हो चुका है। कयास यह लगाया जा रहा है कि एआईएमआईएम के पांचों विधायक जदयू में शामिल हो सकते हैं। हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद इन विधायकों ने कहा है कि उनकी मुख्यमंत्री से मुलाकात बिहार के सीमांचल की कटाव से विस्थापन और अन्य समस्यों के समाधान को लेकर हुई। बहारहाल, आने वाले दिन बिहार में सियासत के हिसाब से बेहद हलचल भरे रहने वाले हैं।

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