धेरे पर रोशनी की जीत और नयी उम्मीदों का त्योहार है दीपावली। दीपावली भारतीय जनमानस के लिए महज एक उत्सव ही नहीं, बल्कि एक समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा पर अगाध श्रद्धा और वश्विास का प्रतीक है। हिंदू जहां इसे राम के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या वापस लौटने की खुशी में मनाते हैं, वहीं हिंदू धर्म से निकले अन्य संप्रदायों के लोग भी दिवाली धूमधाम से मनाते हैं। जैन इसे भगवान महावीर के मोक्ष प्राप्ति दिवस के रूप में मनाते हैं। सिख इसे छठे गुरु हरगोविंद सिंह के जहांगीर की कैद से छूटने पर बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं। वहीं बौद्ध, महात्मा बुद्ध के 17 साल बाद कपिलवस्तु लौटने की खुशी में मनाते हैं। और इन सबके अलावा दिवाली पर धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसलिए दिवाली पर हर भारतीय चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला क्यों ना हो, खुशहाली और समृद्धि की कामना करता है।
सभी कारोबारी और व्यवसायी अच्छे मुनाफे की उम्मीद करते हैं। वहीं, किसान और खेती से जुड़े मजदूरों के चेहरों पर भी अच्छी फसल होने की खुशी छलकती है। भारत का आम आदमी किसी भी नयी चीज की खरीददारी के लिए दिवाली का इंतजार करता है। व्यापारी और उद्योगपति भी छूट देकर उपभोक्ताओं को आकर्षित करते हैं। कहने का तात्पर्य ये है कि हर भारतवासी को दिवाली पर भाग्योदय और सौभाग्य की आस होती है। लेकिन इस बार दिवाली पर वश्विव्यापी महामारी कोरोना का साया है।
नोटबंदी और अव्यवहारिक जीएसटी लागू करने से लड़खड़ा रही देश की अर्थव्यवस्था कोरोना के कारण किये गये लॉकडाउन के चलते पाताल में पहुंच गयी है। कोरोना के कारण ना केवल भारत, बल्कि चीन को छोड़कर पूरे वश्वि की अर्थव्यवस्था बेपटरी हो चुकी है। भारत की अर्थव्यवस्था में 3.7 फीसद गिरावट का अनुमान था, हमारी जीडीपी 10.2 फीसद तक नीचे जा सकती है। यानी जीडीपी के मामले में हम बंग्लादेश से भी पीछे रह सकते हैं। चालू वत्तिीय वर्ष की पहली तिमाही के आंकडे़ भयावह हैं। बेरोजगारी बेहताशा बढ़ी है। लॉकडाउन और आर्थिक मंदी के चलते करोड़ों लोग बेरोजगार हुए हैं। व्यवसाय और उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। सरकार ने भी अपने कर्मचारियों के महंगाई भत्ते आदि पर रोक लगा दी है। साथ ही, केंद्र और राज्य सरकारों ने नयी भर्तियों पर भी रोक लगा दी है। ऐसे में निजी क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों और मजदूरों की हालत का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। ज्यादातर निजी संस्थानों ने अकुशल श्रमिकों को हटा दिया। वहीं, कुशल श्रमिकों के वेतन में भी भारी कटौती कर दी गयी है। जहां तक कृषि की बात है तो पिछली तिमाही के जीडीपी के जो आंकडे़ आये हैं, उनमें केवल कृषि का ही सकारात्मक योगदान रहा है। हालांकि, लॉकडाउन के दौरान फल और सब्जियां उगाने वाले किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
आर्थिक मंदी की मार से जूझ रहे लोग दिवाली पर अच्छे कारोबार की उम्मीद कर रहे हैं। अब तक सरकार की ओर से जारी किये 20 हजार करोड़ रुपये के विशेष राहत पैकेज का भी अर्थव्यवस्था पर कोई खास असर दिखाई नहीं पड़ा है। इसलिए सरकार को एक और राहत पैकेज देने पर विचार करना चाहिए, जिससे मांग बढ़ाई जा सके। सरकार ने विगत 27 मार्च को लॉकडाउन लागू करने के बाद कर्जदारों को राहत देने लिए 6 महीने की मोरिटोरियम अवधि की घोषणा की थी। उसे अब लागू करके सरकार ने कर्जधारकों को दिवाली का तोहफा दिया है। इससे सरकार पर 6500 करोड़ रुपये का बोझ पड़ने का अनुमान है। इसमें मोरिटोरियम की अवधि के दौरान कस्ति ना भरने वालों के साथ-साथ नियमित कस्ति अदा करने वालों को भी इसका लाभ मिलेगा। राज्यों और केंद्र में खाली पडे़ पदों को भरने की प्रक्रिया जल्द शुरू करनी चाहिए।
प्रधानमंत्री ने लोगों को आत्मनर्भिर बनने और देश को भी आत्मनर्भिर बनाने का संदेश दिया है। उन्होंने स्वदेशी सामान खरीदने और वोकल फॉर लोकल का जो संदेश दिया है, उसका असर लोगों पर दिखाई देने लगा है। इसका एक कारण है लॉकडाउन के दौरान लोकल उत्पादों और स्थानीय दुकानदारों ने ही लोगों की जरूरतें पूरी की। उन्हें ये समझ भी आया कि विदेशी सामान के बिना भी जीवन सुगमता से चल सकता है। दूसरा कारण चीन के साथ सीमा पर तनाव है, इसके चलते बिना किसी विशेष मुहिम के लोग ना केवल चीनी सामान, बल्कि अन्य विदेशी उत्पाद खरीदने से भी परहेज कर रहे हैं। क्योंकि उन्हें अब ये अहसास हो गया है कि विदेशी, खासतौर पर चायनीज सामान खरीदकर वो दुश्मन देशों को फायदा पहुंचा रहे हैं।
स्वदेशी अपनाने में लोगों के सामने सबसे बड़ी दक्कित है कम गुणवत्ता और ज्यादा कीमत। इस बारे में सरकार को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने और लागत कम करने के लिए कारगर कदम उठाने चाहिए। निजी क्षेत्र के साथ मिलकर सरकार को नयी तकनीक विकसित करने के लिए खोज व अनुसंधान पर बल देना चाहिए। ऐसे में हम उम्मीद करते हैं कि इस बार भी दिवाली पर अच्छा कारोबार हो, जिससे अर्थव्यवस्था को गति मिले तथा आम आदमी को काम मिले।