मुद्दों में फंसी सियासत

राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट
राष्ट्रवाद की लहर पर भाजपा
समान नागरिक संहिता भी बनेगा मुद्दा
कांग्रेस का सीटों का लक्ष्य तक तय नहीं
जात से जंग जीतने की कवायद
क्या खड़गे साबित होंगे छुपे रुस्तम

  • भाजपा राम मंदिर, धारा 370 हटाए जाने व यूसीसी बिल आदि मुद्दों को भुनाने में जुटी
  • कांग्रेस ‘हैं तैयार हम’ और ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के जरिए चुनाव को धार देने में जुटी

-अमित नेहरा, नई दिल्ली।

आगामी तीन महीनों में लोकसभा चुनाव लगभग सम्पन्न हो जाएंगे। उम्मीद है कि निर्वाचन आयोग 10 मार्च तक लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर ही देगा। सत्ताधारी भाजपा की कोशिश है कि लगातार तीसरी बार सत्ता में आकर हैट्रिक लगाई जाए, उधर 10 वर्षों से केंद्र की सत्ता से दूर कांग्रेस भी इस चुनाव को जीतने की कोशिशों में जुटी हुई है। भाजपा लोकसभा चुनाव में अयोध्या के राम मंदिर में राम की प्राण प्रतिष्ठा, जम्मू कश्मीर में धारा 370 को हटाए जाने व उत्तराखंड में यूसीसी बिल को पारित करवाकर इसे सम्पूर्ण देश में लागू करवाने आदि मुद्दों को जोर शोर से उछालने में जुटी है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने अपने स्थापना दिवस के मौके पर आरएसएस के गढ़ नागपुर में बड़ा कार्यक्रम करके ‘हैं तैयार हम’ का नारा देकर व राहुल गांधी की 14 जनवरी से 20 मार्च तक ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ निकालकर सत्ता वापसी के प्रयास तेज कर दिए हैं। कांग्रेस इन चुनावों में जातिगत जनगणना को मुद्दा बनाने के प्रयास में है। इस स्पेशल रिपोर्ट में हम जानेंगे कि भाजपा और कांग्रेस लोकसभा चुनाव में किन-किन मुद्दों को लेकर मैदान में उतरेंगी।
भाजपा
पिछले साल नवंबर में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बड़ी जीत का परचम फहराने के बाद भाजपा के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे। पार्टी और कार्यकर्ताओं के हौसले पूरी तरह बुलंद हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन राज्यों की इस जीत को लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत की हैट्रिक की गारंटी बताया है। लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले इन पांच राज्यों के चुनाव को लोकसभा के सेमीफाइनल के रूप में प्रचारित किया गया था। इसे जीतने के बाद भाजपा का पूरा जोर सत्ता का फाइनल जीतने पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में जीत का टारगेट भी फिक्स कर दिया है। दरअसल जब भाजपा ने 2019 का चुनाव जीता था, तो सबसे पहले जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 खत्म करके अपना सबसे पुराना वादा पूरा किया था। अत: मोदी ने 2024 के चुनाव में भाजपा की जीत का लक्ष्य भी 370 रखा है। मोदी के अनुसार भाजपा आगामी चुनाव में 370 और एनडीए 400 से ज्यादा सीटें जीतकर आएगी और तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाएगी।

राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा के आयोजन से भाजपा ने जो राजनीतिक एजेंडा सेट किया है, उसका तोड़ आसानी से ढूंढ़ पाना विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस के लिए बहुत आसान नहीं दिख रहा है। कांग्रेस इस कार्यक्रम में शामिल होने से इंकार करके बैकफुट पर है। नरेन्द्र मोदी ने यह समझाने का प्रयास किया कि अयोध्या में सिर्फ रामलला का मंदिर भर नहीं बना है, बल्कि ये सांस्कृतिक सरोकार के तौर पर भी है। राम मंदिर की भव्यता को लोकसभा चुनाव से पहले घर-घर पहुंचाने का भी भाजपा ने प्लान बना रखा है। जिसके लिए देश भर से हर गांव से लोगों को 24 जनवरी से राम मंदिर के दर्शन करवाने का अभियान शुरू हो चुका है। इसके लिए भारतीय रेलवे देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों स्पेशल रेलगाड़ियां अयोध्या तक चला रही है। विभिन्न प्रान्तों से खासकर भाजपा शासित प्रदेशों से रोडवेज की बसें चलाई गई हैं। हवाई यात्रियों के लिए अयोध्या में अत्याधुनिक एयरपोर्ट बनाया गया है। आने वाले कुछ महीनों में करोड़ों लोगों को राममंदिर के दर्शन करवाए जाएंगे।इससे पहले प्राण प्रतिष्ठा के निमंत्रण पत्र और अयोध्या से देश भर में अक्षत भेजे गए। राम के आने के उपलक्ष्य को त्योहार की तरह मनाया गया और दीप जलाए गए। विश्लेषकों का मानना है कि ये सब भाजपा और आरएसएस के चुनावी एजेंडे के तहत किया गया है।कांग्रेस को इस मुद्दे की काट खोजना बेहद मुश्किल है क्योंकि उसने लगातार यह कहकर भाजपा का मखौल उड़ाया है कि ‘मंदिर वहीं बनाएंगे पर तारीख नहीं बताएंगे’ अब मन्दिर भी बनने लगा है और राम की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा भी कर दी गई है!

राष्ट्रवाद की लहर
भाजपा भली भांति जानती है कि वह 2024 का लोकसभा चुनाव सिर्फ राम मंदिर के भरोसे नहीं जीत सकती। क्योंकि सारे के सारे राम भक्त भाजपा के वोटर नहीं हैं। इसकी वजह यह है कि अगर हिन्दू धर्म को मानने वाले सारे वोटर राम के नाम पर भाजपा को वोट देते तो अस्सी परसेंट तो नहीं, कम से कम साठ पर्सेंट वोट तो उसे मिलते ही। मगर भाजपा को 2019 में केवल 37 पर्सेंट के करीब वोट मिले थे और उसके हिस्से में 303 लोकसभा सीटें आई थीं। लेकिन, 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की रणनीति 50 परसेंट प्लस वोट हासिल करने की है और कम से कम 370 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है।इसके लिए भाजपा ने राम मंदिर के साथ राष्ट्रवाद के मुद्दे के पर 2024 की चुनावी पिच तैयार की है।
भाजपा ने संसद के जरिये जम्मू-कश्मीर से जुड़ी धारा 370 तो पहले ही खत्म कर दी थी। अब इस बाबत सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आ गया है। अदालत के फैसले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अखबार को दिये इंटरव्यू में कहा कि अब ब्रह्मांड की कोई भी ताकत आर्टिकल 370 की वापसी नहीं करा सकती है। भाजपा आर्टिकल 370 को पूरी तरह भुनाने का प्रयास करेगी। बीते साल 2023 के आखिरी ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने ‘राष्ट्र प्रथम’ की बात करके भाजपा के राष्ट्रवाद के मुद्दे को भुनाने की कोशिश की है। इसके साथ-साथ ‘विकसित भारत संकल्प यात्रा’ भी राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने की रणनीति रही है। आने वाले समय में भाजपा राष्ट्रवाद को और ज्यादा असरदार व आक्रामक तरीके से पेश करेगी।

यूसीसी का तीर
देश में एक समान कानून हो, भाजपा का यह दशकों पुराना एजेंडा है। भाजपा ने उत्तराखंड में इस एजेंडे पर ऐतिहासिक पहल की है। हाल ही में उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पारित करवाने के बाद भाजपा के तरकश में एक और तीर आ गया है। भाजपा अब लोकसभा चुनाव में यूसीसी के मुद्दे को भी भुनाएगी। भाजपा पूरी तरह आश्वस्त है कि धार्मिक आस्था और सामाजिक ताने-बाने का कानूनी बंधन वोटरों को रिझाने में जादू का काम करेगा। जिन मुद्दों को असंभव माना जा रहा था, उन्हें मोदी सरकार और भाजपा एक-एक करके जमीन पर उतार रही है। भाजपा ने साफ कर दिया कि वह राम मंदिर, राष्ट्रवाद के साथ यूसीसी के मुद्दे को प्रचारित करने में कोई कौर कसर बाकी नहीं छोड़ेगी। वैसे उत्तराखंड के हल्द्वानी में इस प्रयोग के परिणाम सामने आए भी हैं। यूसीसी ध्रुवीकरण का हथियार साबित हो सकता है। और यही बीजेपी चाहती भी है। केंद्र सरकार ने चुनाव के ठीक पहले कपूर्री ठाकुर को भारत रत्न देकर ओबीसी को, चौधरी चरण सिंह को देकर किसानों को, पीवी नरसिम्हा राव व एमएस स्वामीनाथन को देकर दक्षिण भारत को साधने का प्रयास किया है। भाजपा इन नेताओं को सम्मान देने को भी मुद्दा बनाएगी। गौरतलब है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को भी इस साल भारत रत्न दिया गया है। इससे एक साल में भारत रत्न पाने वाले व्यक्तियों की संख्या 5 हो गई है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे पहले एक साल में सर्वाधिक 4 भारत रत्न 1999 में दिए गए थे।इसके अलावा एक देश एक चुनाव, महिला आरक्षण कानून आदि ऐसे मुद्दे हैं जिनको लेकर भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में वोट मांगती नजर आएगी। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भाजपा के पास मुद्दों की कोई कमी नहीं है।

कांग्रेस
अगर सरसरी नजर से देखा जाए तो भाजपा के मुकाबले कांग्रेस चुनावी तैयारी में काफी पिछड़ती हुई नजर आ रही है। एक तरफ भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव के लिए युद्धस्तर पर तैयारी करती नजर आ रही है, वहीं कांग्रेस अभी वैचारिक स्तर तक ही सीमित है। कांग्रेस के सबसे बड़े नेताओं में से एक राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ निकाल रहे हैं, जो 20 मार्च तक चलेगी। इसी दौरान लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा हो चुकी होगी। इस यात्रा को लेकर पार्टी में एक राय नहीं थी। महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले साल 21 दिसंबर को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में जब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने राहुल गांधी से भारत यात्रा निकालने का आग्रह किया था, तो कई वरिष्ठ नेताओं ने बैठक में ही इसका विरोध किया था। उनका कहना था कि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं अत: पार्टी को यात्रा ननिकालकर, चुनाव जीतने की योजना बनाकर अभी से उस पर अमल करना चाहिए। लेकिन इस राय को नजरअंदाज करके बैठक के दो दिन बाद ही राहुल गांधी की यात्रा का ऐलान कर दिया गया।
सीटों का लक्ष्य तय नहीं

रैली में ‘हैं तैयार हम’ का नारा लगाने भर से चुनावी तैयारी पूरी नहीं मानी जा सकती। चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस को ठोस रणनीति बनाकर उसे अमली जामा पहनाना होगा, मुद्दे बनाकर जनता के सामने रखने होंगे। मगर, जहां भाजपा लोकसभा चुनाव में 370 प्लस सीटें जीतने का लक्ष्य तय करके चुनावी तैयारी में जुट गई है, वहीं कांग्रेस की तरफ से ऐसा कोई लक्ष्य तय नहीं किया गया है। अभी तक यह भी साफ नहीं है कि कांग्रेस अकेले कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी और अपने सहयोगी दलों के लिए कितनी सीटें छोड़ेगी। तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी व समाजवादी पार्टी से तो कांग्रेस का सीटों के बंटवारे पर मतभेद चल ही रहा था। उधर, बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनवाने के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश से इंडिया गठबंधन का एक मजबूत सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल भी भाजपा ने तोड़कर अपने पाले में कर लिया।
लचर संगठन

चुनाव में जीत हासिल करने के लिए पार्टी का संगठन उसकी सबसे बड़ी ताकत होता है। कांग्रेस का कमजोर संगठन उसकी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हो रहा है। मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी को नई कमेटी बनाने में साल भर से भी ज्यादा का वक्त लग गया। क्योंकि विभिन्न पदों पर बैठे नेताओं के साथ राज्य की इकाइयों ने सहयोग नहीं किया। कई महीने की मशक्कत के बाद महासचिवों और राज्यों के प्रभारियों के नामों का हाल ही में ऐलान हुआ है। ?अनेक राज्यों में जिला स्तर पर कमेटी तक नहीं है। बूथ स्तर की कमेटियां तो बहुत दूर की बात है। जहां भाजपा बूथ स्तर के आगे ‘पन्ना प्रमुख’ बनाकर अपने मतदाताओं को सीधे पोलिंग बूथ तक लाने की रणनीति को अमलीजामा पहनाने की कवायद में जुटी है, वहीं कांग्रेस अभी बूथ स्तर तक की तैयारी भी नहीं कर पाई है।
घोषणापत्र समिति तय करेगी मुद्दे
चुनाव के लिए कांग्रेस ने घोषणा समिति का गठन कर दिया है। इस 16 सदस्यों वाली घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम हैं और छत्तीसगढ़ के पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंह देव ‘बाबा’ को संयोजक नियुक्त किया गया है। समिति में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा, आनंद शर्मा, जयराम रमेश, शशि थरूर, प्रवीण चक्रवर्ती, इमरान प्रतापगढ़ी, के राजू, ओमकार सिंह मरकाम, रंजीता रंजन, जिग्नेश मेवानी और कुलदीप सप्पल, गैखंगम और गौरव गोगोई को शामिल किया गया है। ये 16 सदस्यीय समिति ही लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के लिए मुद्दे तय करेगी।
जाति से जंग जीतने की कवायद
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ओडिशा के झारसुगुड़ा जिले के बेलपहाड़ में 8 फरवरी को अपनी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दुनिया से झूठ बोलने के लिए निशाना साधा और कहा कि मोदी का जन्म अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी देश में कभी भी जाति जनगणना नहीं करवाएंगे। दरअसल, कांग्रेस ने भाजपा के हिंदुत्व आख्यान का मुकाबला करने के लिए जाति जनगणना की मांग को आगे बढ़ाने का फैसला किया है। राहुल गांधी बार-बार कह रहे हैं कि केवल कांग्रेस ही जाति जनगणना कराएगी लेकिन मोदी जाति जनगणना नहीं कराएंगे।
राहुल का दावा है कि देश में 8 परसेंट आदिवासी, 15 पर्सेंट दलित और 50-55 परसेंट ओबीसी हैं। कांग्रेस इन्हीं ओबीसी वोटरों पर ध्यान केंद्रित करके जीतने के मंसूबे पाले हुए है।
गौरतलब है कि गुजरात विधानसभा के 1980 के चुनावों में माधवसिंह सोलंकी की अगुआई में कांग्रेस ने खाम कार्ड (जातिगत कार्ड) खेल कर कामयाबी हासिल की थी। इसके बाद 1985 के विधानसभा चुनावों में भी जातीय आरक्षण के सहारे हीसोलंकी की अगुआई में कांग्रेस ने गुजरात विधानसभा की 182 में से 149 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बना दिया। जिसे सैंतीस साल बाद, 2022 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 156 सीटें जीतकर तोड़ा। वैसे हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में जाति जनगणना ने कोई ज्यादा असर नहीं दिखाया। कांग्रेस और कई विपक्षी दलों ने इस विचार को आक्रामक रूप से बढ़ावा दिया था। कांग्रेस तो एक कदम आगे बढ़ गई और उसने नारा दिया ‘जितनी आबादी, उतना हक’ (किसी समुदाय की जनसंख्या के अनुपात में अधिकार) का नारा भी लगाया। भाजपा शुरू में इस कदम से घबरा गई थी, क्योंकि उसके वोटों का एक बड़ा हिस्सा ओबीसी समुदाय से आता है, जिसे विपक्षी दलों के अनुसार जाति जनगणना से लाभ होना था। बाद में, यह नारा नरम पड़ गया।

तीनों राज्यों (मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़) जिनमें से प्रत्येक में ओबीसी समुदायों की काफी बड़ी आबादी है, ने जाति जनगणना या ओबीसी के लिए उच्च आरक्षण का वादा करने के लिए कांग्रेस को पुरस्कृत नहीं किया। कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े ओबीसी नेता माने जाने वाले भूपेश बघेल भी छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार नहीं बचा पाए।
मुफ्त की रेवड़ियां

पिछले साल मई में कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद ऐसा लगा कि पार्टी ने एक नए हथियार का परीक्षण किया है और यह जबरदस्त तरीके से काम कर गया। कांग्रेस ने कर्नाटक में ‘गारंटी’ के साथ मतदाताओं के विभिन्न वर्गों को टारगेट करके मुफ्त उपहारों की एक श्रृंखला का वादा करके प्रयोग किया। संभवत: यह रणनीति इस गणना पर आधारित थी कि राजकोषीय रूप से रूढ़िवादी भाजपा इस मोर्चे पर मुकाबला करने में सक्षम नहीं होगी। यदि कांग्रेस ने ऐसा सोचा था, तो यह पूरी तरह गलत नहीं था। हालांकि केंद्र के साथ-साथ राज्यों में भी भाजपा सरकारों ने मुफ्त सुविधाएं, कल्याणकारी योजनाएं और नकद सहायता की पेशकश की है। लेकिन भाजपा ने इसे कभी भी अपनी चुनावी राजनीति का मुख्य आधार नहीं बनाया। नरेंद्र मोदी तो इन्हें मुफ्तखोरी की रेवड़ियां कहकर आलोचना करते रहे हैं।
कर्नाटक में कांग्रेस की जीत ने उसे आश्वस्त कर दिया था कि उसे निश्चित सफलता वाला एक चुनावी हथियार मिल गया है और उसने अपनी मुफ्त रणनीति को दोगुना कर दिया। छह गारंटी के रूप में एक स्मार्ट ब्रांडिंग ने कांग्रेस के इस हथियार को आगामी चुनावों में अपने कर्नाटक अभियान से भी इस्तेमाल करने के इरादे की ओर इशारा किया। इसी के चलते राजस्थान
के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चुनाव से ठीक पहले जनता को कई तरह की मुफ्त सुविधाएं दीं। मगर राजस्थान में यह हथियार कारगर साबित नहीं हुआ। तीन राज्यों के चुनाव नतीजों ने भले ही यह निर्णायक रूप से साबित नहीं किया हो कि मुफ़्त चीजें कांग्रेस के लिए बिल्कुल भी काम नहीं आईं, लेकिन वे संकेत देते हैं कि कांग्रेस अपने मुख्य मुद्दों में से एक के रूप में मुफ़्त चीजों पर भरोसा नहीं कर सकती है।
कांग्रेस की मुफ्त की रेवड़ियों से भयभीत भाजपा ने ‘मोदी की गारंटी’ का नारा गढ़ना पड़ा है जो आज चारों तरफ गूंज रहा है।

क्या खड़गे साबित होंगे संकटमोचक!

ओबीसी जाति पर राजनीति करने के साथ-साथ कांग्रेस दलितों की राजनीति को भी मुद्दा बना सकती है। इस समय देश में दलित राजनीति में वैक्यूम बना हुआ है। भाजपा में कोई बड़ा दलित चेहरा नहीं है। मायावती ने पिछले कुछ समय से बड़े दलित चेहरे की पहचान बनाई थी लेकिन इस समय मायावती एक तरह से राजनीति से बिल्कुल आउट हो चुकी हैं। ऐसे में कांग्रेस के पास एक तुरुप का पत्ता है और वह है मल्लिकार्जुन खड़गे!
हो सकता है कि कांग्रेस उन्हें अपने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में उतार दे। इंडिया गठबंधन भी इसके लिए तैयार हो सकता है क्योंकि ज्यादा अड़ने वाले दल एक तरह से गठबंधन से दूरी बना चुके हैं। चूँकि मल्लिकार्जुन खड़गे दलित समाज से आते हैं और आज तक भाजपा या कांग्रेस ने कभी भी प्रधानमंत्री पद के लिए किसी दलित को मैदान में नहीं उतारा है। ऐसे में अगर यह फामूर्ला काम कर गया तो भाजपा को अपनी सभी रणनीतियों की समीक्षा नए सिरे से करनी पड़ सकती है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यदि कांग्रेस नए मुद्दों की तलाश करने का निर्णय लेती है जो लोकसभा चुनाव में उसके लिए गेमचेंजर हो सकते हैं, तो उसके पास ऐसा करने के लिए बहुत कम समय है। नए विचारों का समय के साथ विश्लेषण और परीक्षण किया जाना आवश्यक है। पार्टी के पास अब ऐसी कोई जगह नहीं बची है। हो सकता है कि लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के पास कुछ अन्य कार्ड भी हों। यह भी हो सकता है कि जो मुद्दे उसके लिए इन विधानसभा चुनावों में काम नहीं आये क्या पता वे लोकसभा चुनावों में काम कर जाएं!

 

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