JHARKHAND: एक ऐसा गांव जहां हमेशा रहता है खौफ का साया

ढ़िबरी युग मे जीने को विवस है लोहरदगा का डहरबाटी गाँव

केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से आज भी गांव के लोग हैं अछूता

किशोर कुमार वर्मा 

रांची: आजादी के अमृत महोत्सव पर अपना भारत देश विकास के मामले में पूरी दुनिया में खुद को लोहा मनवाने का कार्य कर दिखाया है, अनेकों उपलब्धियां हमारे देश के पास अपनी काबिलियत और बेहतर क्रियान्वयन के बदौलत हासिल हुआ है।

परंतु देश के कई ऐसे इलाके हैं जहां के लोग आज भी खुद को भेड़ बकरी और जंगली जानवरों की तरह जीवन व्यतीत करने को मजबूर और लाचार हैं। आज एक ऐसा ही जमीनी हकीकत तैयार कर देश और राज्य के मुखियाओं तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है, ताकि इन मजलूम बेवस लोगों की दर्द और परेशानियों का समाधान हो सके। गांव में पहुंचते ही लोग एकपल के लिए भावुक और स्तब्ध हो गये, धीरे-धीरे कुछ लोग सामने आये जब बताया कि आपकी समस्याओं को सुनने और इसके निराकरण हेतु समाचार तैयार करने के लिए आया हूँ, पत्रकार हूँ, तब गांव वालों के द्वारा अपने रीति-रिवाज के साथ स्वागत किया, बैठने के लिए जंगल से लाकर बनाई हुई खिजूर की चटाई दिया और सखुआ पत्तल के दोना में चुड़ा और बिस्किट खाने के लिए दिया गया। साथ ही नदी से लाया हुआ दूषित पानी पीने के लिए दिया गया और जोहार शब्द के साथ झारखंड की सभ्यता को प्रस्तुत किया गया। इस बीच उनके द्वारा दी गई भेंट को सस्वीकार करते हुए थोड़ी देर के बाद गांव का भ्रमण करने पर काफी अचंभित करने वाला दृश्य दिखाई दिया जिससे मन को विचलित कर दिया। लगा इस विकसित भारत के लोग आज भी सरकारी योजनाओं से अन्नभिग्य हैं, इसके बाद गांव के लोग खुलकर अपनी बखान दर्द भरी अंदाज में करने लगे और नेताओं एवं प्रशासनिक विभाग को कोस रहे थे। यहां पर बता दें कि वह टूटा फूटा कच्चा मकान जो हर वक्त इन मजलूम परिवार वालों के सिर पर मौत का खतरा साबित हो रहा है जिसपर रात दिन गुजारना इनकी मजबूरी बन गई है। उल्लेखनीय है कि झारखंड के लोहरदगा जिला अंतर्गत किस्को प्रखंड क्षेत्र के अति सुदूरवर्ती एवं घोर नक्सल प्रभावित ग्राम पंचायत पाखर के डहरबाटी इलाका में सौ साल पूर्व से कंदमूल खाकर और दूषित पानी पीकर जीवन व्यतीत कर रहे सैकड़ों नगेसिया समाज के लोगों को अपनी बदकिस्मती और नेता व प्रशासनिक तंत्र के आश्वासन के घेरे में दबकर भेड़ बकरी और जंगली जानवरों की तरह डर और खौफ के साये में जिंदगी गुजारना पड़ रहा है। बात करें डहरबाटी गांव के ईर्द-गिर्द स्थित गांव टोला मुहल्ला की तो आजादी के 70 दशक बीत जाने के बाद भी केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से गांव के लोग आज भी अछूता हैं, इन्हें न तो आवागमन हेतु सड़क नसीब हुआ है और न ही बीमारी से दम तोड़ने वालों लोगों के इलाज हेतु स्वास्थ्य सुविधाएं बहाल की गई है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि गांव में पेयजल की उपलब्धता हेतु जलमीनार, चापानल, कुप, डांड़ी, चुआं जैसे पेयजल श्रोत भी महज एक सपना बना हुआ है। गांव के लोग अपने प्रयासों से नदी की बहती दूषित पानी को पाइपलाइन के जरीये अपने घरों तक पहुंचाने का कार्य कर दिखाया है जिसमें भी दूषित पानी लोगों के लिए जीवनरक्षी बनकर हर सुख दुःख में सहारा बना हुआ है। हद की बात तो यह है कि प्रखंड और जिला मुख्यालय आवागमन हेतु सड़क नहीं रहने के कारण गांव के लोग बरसात के दिनों में अपने घरों में मवेशियों की तरह दुबके रहते हैं, फिर भी इनकी दर्द भरी दास्तान को किसी ने दूर करने का कोशिश नहीं किया है जिससे गांव वाले काफी मायूस हैं। पूरे मामले पर समाजसेवी सुखनाथ नगेसिया, प्रभु नगेसिया, मुलईर नगेसिया, सोमारी नगेसिया, विनीता नगेसिया, सुमंता नगेसिया, बिफनी नगेसिया, बिरसमुनी नगेसिया, रिंकी नगेसिया, सरिता नगेसिया, संझवा नगेसिया, नदरू नगेसिया, एतवा नगेसिया, मंगल नगेसिया, सुखन नगेसिया, उर्मिला नगेसिया, बसंती नगेसिया, मुनीता नगेसिया सहित अन्य का कहना है कि आखिर कब तक केंद्र और राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं से हमारे गांव समाज को ठगा जायेगा। इन लाचार बेवस लोगों का कहना है कि जो हमारे गांव समाज की दुःख दर्द को दूर करेगा उसे ही हम लोग साथ देंगे। इन बेवस मजलूम लोगों की आंखों से दिखाई दे रहा आंसू की बहती धारा यह साफ बयां कर रहा था कि इस माॅडल भारत में भी इतनी दर्द जो सहने लायक नहीं था। बात जो भी हो लोकतन्त्र के विजेता सिपाहियों को इनके दुःखों को दूर करने के लिए आगे आने की आवश्यकता है तब जाकर हमारे देश के अंतिम पायदान पर खड़ा व्यक्ति का विकास की गुनगान सच साबित होगा।

पगडंडी के सहारे भविष्य संवारने में जुटे विद्यार्थी

किस्को प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत डहरबाटी गांव के बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु किस्को और जिला मुख्यालय प्रति दिन पगडंडी के सहारे आवागमन कर विद्यार्थी अपना बेहतर भविष्य के निर्माण में जुटे हुए हैं, लेकिन इन होनहार बच्चों के हित में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है जिससे बच्चों की भविष्य अंधकारमय होने की स्थिति में आ पहुंचा है।

बीमार की इलाज हेतु एकमात्र खाट है सहारा

डहरबाटी गांव के लोग कभी भी बीमार हो जाते हैं तो उन्हें इलाज हेतु गांव की वैकल्पिक व्यवस्था खाट का सहारा लेना पड़ता है। गांव समाज के लोग इस बदलते भारत में गांव का विकास से अपेच्छित को नेता और प्रशासनिक अमला को जिम्मेदार बता रहे थे।

अब भी ढिबरी युग बना है सहारा

पाखर पठारी क्षेत्र के ग्राम कटहलडीपा, ढोठी, सेमराखाड़, सिकरा गढा़, दियापखल में निवास करने वाले लोगों को आज भी ढिबरी युग से निजात नहीं मिल सका है, गांव के लोगों का कहना है कि बिजली व्यवस्था हमारे लिए महज एक सपना बना हुआ है, रात के अंधेरे में बेटी बहुओं को घरों से बाहर निकलना खतरों से खाली नहीं होता है।

कंपनी से गांव की विकास हेतु अनेकों मरतबा कर चुके हैं मांग, पर नहीं हुआ पहल

सबसे दुःखद बात तो यह है कि पाखर पठारी क्षेत्र में वर्षों से लोगों की जमीन पर खनन कर रहे बाक्साइट कंपनी क्षेत्र के लोगों की एक नहीं सुनती है, और तो और ग्रामीणों की छोटी-छोटी मांग को भी पूरा करने में कंपनी की ओर से कोई दिलचस्पी नहीं दिखाया जाता है जिससे गांव के लोग कंपनी के क्रियाकलाप से काफी खफा हैं।

गांव के विकास हेतु बुलाई गई आम सभा की बैठक, बनी रणनीति

पाखर डहरबाटी के बहेरा कोना में गांव की जन समस्याओं को सूचीबद्ध कर निपटारा हेतु मांग रखे जाने के उद्देश्य से समाजसेवी सुखनाथ नगेसिया की अध्यक्षता में पाखर बहेरा कोना, ढोठी, सिकरा गढ़ा, डहरबाटी, भैंस बथान, भुरसाखाड़, पटियापानी, बंदरी तरिया, मड़ूवापाठ, बेंकरपाठ कटहलडीपा, दियापखल के ग्रामीणों की आम सभा बैठक की गई। बैठक में एक स्वर में लोगों ने कहा कि आज हम लोग पहाड़ी क्षेत्र में निवास करते हैं इसलिए सिर्फ वोटर बनकर खुद को ठगा महसूस करते हैं, चुनाव के वक्त नेताओं के सूर और ताल अलग राग अलापने लगता है ऐसे में इस बार गांव की विकास की बीड़ा उठाने वाले का चयन किया जायेगा ताकि हमारा कल बेहतर हो सके। आज चुनाव संपन्न भी हो गया लोग आये और बड़े बड़े आश्वासन भी दिए गए लेकिन होंगे वही” ढाक के तीन पात ” डहरबाटी आज भी आजादी के बाद से विकास की बाट जोह रहा है देखना होगा की संसदीय चुनाव के बाद भी इसकी विकासगाथा और चेहरे पर मुस्कान दिखाई देगा या नहीं ये आने वाला कल बताएगा लेकिन इतना तो है की इन्होने आजादी के बाद से आज तक तो दुःख और मुसीबत झेली है शायद किसी को और न झेलना पड़े |

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