राजेंद्र शर्मा
उत्तर प्रदेश में बहराइच जिले में महसी तहसील के तहत, हरदी थाना क्षेत्र के अंतर्गत, दुर्गा पूजा की मूर्तियों के विसर्जन के जुलूस में हुुई हिंसा और उसके बाद के घटनाक्रम के संकेतों को ठीक इसीलिए रेखांकित किया जाना जरूरी है कि इसमें अब कुछ ऐसा नहीं रह गया है, जो वाकई हैरान करता हो। मूर्ति विसर्जन के जुलूस के नाम पर, जिस तरह अपने हिंदू होने का दिखावा करने वालों ने अपने भड़काने वाले आचरण से हिंसा भड़कायी ; जिस तरह कथित मुस्लिम पक्ष की ओर से इस उकसावे का हिंसक जवाब दिया गया ; इसके बाद जिस तरह पहले कथित रूप से हिंदू भीड़ों ने आम तौर पर प्रशासन-पुलिस की शह पर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के घरों, दूकानों, प्रतिष्ठानों आदि पर कहर बरपा किया ; और अंत में खुद शासन-प्रशासन ने आगे बढ़कर यह जिम्मा संभाल लिया ; यह सब अब कम-से-कम भाजपा-शासित राज्यों में तो इतना जाना-पहचाना हो चुका है कि यह सब न हो, तो ही हैरानी होगी।
मसलन कोई महत्वपूर्ण हिंदू त्यौहार, जिसमें किसी भी प्रकार के जुलूस की गुंजाइश हो, अगर भाजपा की डबल-इंजनिया सरकारों के दायरे से और खासतौर पर हिंदी पट्टी में ऐसी सभी सरकारों के दायरे से होकर शांति से गुजर जाए, तो ही हैरानी की बात होगी।
फिर भी बहराइच में जो कुछ हुआ, उसमें भाजपायी राज में सामने आये इस फिनॉमिना के और आगे बढ़ने के कुछ तत्वों की निशानदेेही करना निरर्थक नहीं होगा। बेशक, इसमें कुछ भी नया नहीं था कि जिद कर के मूर्ति विसर्जन का जुलूस मुस्लिम बहुल इलाके से ले जाया गया। जुलूस में, मुख्यमंत्री योगी के स्पष्ट आदेशों के बावजूद कि किसी जुलूस आदि में डीजे नहीं बजाया जाएगा, न सिर्फ डीजे बजाया गया, बल्कि उस पर सांप्रदायिक रूप से भड़काने वाले गाने बजाए गए। और जैसे इस उकसावे को हिंसा के बिंदु तक बढ़ाने की नीयत से ही, ऐन मस्जिद के सामने रुक कर, हमलावर अंदाज में और भी भड़काने वाले गीतों के साथ, न सिर्फ डीजे बजाया गया, बल्कि मस्जिद पर भीड़ से, अपमानित करने की ही नीयत से तरह-तरह की चीजें उछाली भी गयीं। यह दूसरी बात है कि मस्जिद का ऊपर का हिस्सा कपड़े से ढका हुआ होने के चलते, जो सावधानी अब भाजपा-शासित राज्यों में खुद पुलिस ने सुनिश्चित करानी शुरू कर दी है, मस्जिद को कम से कम दिखाई देने वाला कोई नुकसान नहीं पहुंचा।
बहरहाल, बहराइच के मामले में यह किस्सा इतने पर ही खत्म नहीं हो गया। इस सब के बाद, जो कि जाहिर है कि पुलिस की काफी संख्या में मौजूदगी के बीच हो रहा था, जुलूस में शामिल उग्र तत्वों के हौसले और बढ़ गए। बाद में सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो के अनुसार, इस भीड़ के बीच से एक युवक, जिसका नाम बाद में पता चला कि राम गोपाल मिश्र था, हाथ में भगवा झंडा लेकर एक घर की छत पर चढ़ गया, जहां पर हरे रंग का एक झंडा लगा हुआ था, जो यह घर किसी मुसलमान का होने का इशारा करता था। पहले उसने घर की छत पर लगी रेलिंग पर भगवा झंडा लगाने की कोशिश की। लेकिन, बाद में संभवत: नीचे से भीड़ के उकसावे पर उसका ध्यान हरे झंडे ने खींच लिया और वह इस इस्लामी झंडे को खींचकर गिराने में लग गया, जिस क्रम में घर की छत पर लगी लोहे की रेलिंग भी गिर गयी। बाद में, जो कि जाहिर है कि ये सब वीडियो में दर्ज नहीं हुआ या दर्ज नहीं किया गया था, उसी छत पर मिश्र को गोली मार दी गयी, जिससे बहुत ज्यादा खून बहने से उसकी मौत भी हो गयी। मरने वाला गरीब परिवार से और सिर्फ 22 वर्ष का था। कुछ ही महीने पहले उसका विवाह हुआ था।
जैसा कि होना ही था, यहां से आगे दंगा भड़क उठा। इसके बाद, मुस्लिमविरोधी हिंसा का जो सिलसिला शुरू हुआ, अगली सुबह तक उसने बहुत ही भयंकर रूप ले लिया। महाराजगंज बाइपास बाजार में लाठियों, डंडों तथा अन्य हथियारों से लैस हजारों लोगों की भीड़ ने, पुलिस को मूक दर्शक बनाते हुए, जमकर मुसलमानों के घरों, दूकानों तथा अन्य प्रतिष्ठानों पर आगजनी तथा तोड़फोड़ की, जो सामने पड़ा उसके साथ मार-पीट की और बताया जाता है कि महिलाओं के साथ बदसलूकी भी की। हालात इस कदर बेकाबू हो गए कि बाद में, सीधे मुख्यमंत्री के आदेश पर हालात पर काबू पाने के लिए, शीर्षस्थ पुलिस अधिकारियों को हाथ में पिस्तौल ताने, सड़कों पर उतरकर यह संदेश देना पड़ा कि अब, पुलिस भीड़ के साथ सख्ती करेगी। इसके बाद ही तीसरे दिन कहीं जाकर, हिंसा और आगजनी का यह सिलसिला थमा।
बहरहाल, सांप्रदायिक हिंसा के इस विस्फोट के साथ ही साथ एक विस्फोट और हुआ, झूठ के प्रचार का। खासतौर पर युवक रामगोपाल मिश्र की दु:खद मौत के गिर्द, भगवा झूठ प्रचार तंत्र ने झूठ का तूफान खड़ा कर दिया। तरह-तरह के झूठे दावों के साथ, इस दु:खद मौत को अपर्याप्त मानते हुए, उसके साथ ‘दरिंदगी’ का भयानक आख्यान खड़ा किया गया। एक दावा अगर यातनाएं देने के लिए सारे नाखून उखाड़े जाने का था, तो एक और दावा चाकू के छत्तीस या ज्यादा घाव लगने का। एक और दावा सारा शरीर गोलियों से छलनी किए जाने का था।
आंख निकाले जाने, पेट फाड़कर आंतें बाहर निकाल दिए जाने, आदि-आदि के दावे भी किए जा रहे थे। और यह सब बहुत ही संगठित तरीके से, सोशल मीडिया पर तथा वाट्स एप ग्रुपों के जरिए फैलाया जा रहा था, ताकि इसके तमाम साक्ष्यों को इस झूठ के नीचे दबाया जा सके कि जुलूस में शामिल उग्र भीड़ की करतूतों ने ही, हिंसा भड़कायी थी। बेशक, बाद में पोस्टमार्टम की रिपोर्ट ने इन तमाम झूठे दावों को नकार भी दिया और यह साफ कर दिया कि एक गोली लगने और उसके चलते ज्यादा खून बहने से ही, इस युवक की मौत हुई थी।
लेकिन, तब तक झूठ की मशीन तो जन-धारणा बनाने का अपना काम कर चुकी थी। जन-धारणा यही कि हिंदुओं के साथ मुसलमानों ने ज्यादती की थी! आम तौर पर हिंदू खतरे में हैं और यह भी कि हिंदू बटेंगे, तो कटेंगे! जाहिर है कि इस आखिरी संदेश का एक अपेक्षाकृत तात्कालिक उपयोग भी है। यह उपयोग उत्तर प्रदेश में होने जा रहे नौ सीटों के महत्वपूर्ण उपचुनावों के लिए है, जिन्हें खुद भाजपा में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ पर विश्वास या अविश्वास का निर्णय करने वाला माना जा रहा है। कहने की जरूरत नहीं है कि बहराइच का संदेश सिर्फ बहराइच तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश तक, बल्कि उससे भी आगे तक जाता है।
भगवा झूठ प्रचार तंत्र के इस तरह पूरी तरह से झूठा ‘हिंदू खतरे में’ का आख्यान गढ़ने में, सत्ताधारी भाजपा के नेता भी कूद पड़े। इस मामले में खास मुस्तैदी दिखाई देवरिया से सत्ताधारी पार्टी के विधायक शलभमणि त्रिपाठी ने, जो मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार रहे हैं और खुद टीवी पत्रकारिता में रहे हैं। विधायक जी ने अपने ट्विटर हैंडल से बहराइच की घटनाओं की रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों की उनकी धार्मिक संबद्घता को संकेतित करते हुए बाकायदा सूची ही जारी कर दी, इस दावे के साथ कि उनका मुस्लिम होना इसका सबूत था कि मुस्लिम-पक्षधर रिपोर्टिंग हो रही थी! पत्रकार से भाजपा नेता बने त्रिपाठी जी ने इस सूची में खेल सिर्फ इतना किया था कि उन्हीं तथा अन्य मीडिया संस्थानों के सारे हिंदू पत्रकारों के नाम छांटकर अलग कर दिए थे!
उधर भाजपा के प्रवक्ता, सुधांशु त्रिवेदी ने भाजपा के डबल इंजन राज में सांप्रदायिक हिंसा फूट पड़ने और अगले दिन भी जारी रहने पर किसी भी प्रकार की शर्मिंदगी महसूस करने के बजाए, बड़ी बेशर्मी से ऐसे दंगे होने को पिछले चुनाव के नतीजों से जोड़ने की कोशिश की, जिनमें विपक्ष की ताकत बढ़ी थी। उनका भी इशारा यही था कि विपक्ष की ताकत बढ़ने से, दंगाइयों यानी मुसलमानों के हौसले बढ़ गए हैं! याद रहे कि गुजरात के विधानसभाई चुनाव के मौके पर, 2002 के गुजरात के दंगों के संबंध में, दंगा और मुसलमान को ऐसे ही बाकायदा समानार्थी बनाने की चतुराई, अमित शाह ने दिखाई थी।
जैसे इतना भी काफी नहीं था, दंगे के थोड़ा सा काबू में आते ही शुरू हुए अपने हस्तक्षेप के पक्षपातीपन से, योगी सरकार ने यह स्पष्ट संदेश दे दिया कि उत्तर प्रदेश में ‘हिंदू राज’ चल रहा है। योगी राज ने फौरन दो काम किए। पहला, मुख्यमंत्री ने लखनऊ बुलाकर, मृतक रामगोपाल मिश्र के परिवार से मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया कि ‘किसी भी दोषी’ को नहीं बख्शा जाएगा। दूसरे, उनके पुलिस-प्रशासन ने संभवत: मुख्यमंत्री के बिना कुछ कहे भी उनका इशारा समझ लिया कि रामगोपाल की मौत के मामले में ही नहीं, आम तौर पर भी, किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा का अर्थ, मुसलमानों को बख्शा नहीं जाएगा है।
नतीजा यह कि न सिर्फ एनकाउंटर राज ने अपना जोर दिखाते हुए, रामगोपाल की मौत के मामले में संदिग्ध बताए जा रहे, मोहम्मद सरफराज तथा मोहम्मद तालीम को गोली मार कर गंभीर रूप से घायल कर दिया तथा दर्जनों की संख्या में मुसलमानों को गिरफ्तार कर लिया गया, बल्कि शासन ने सामूहिक दंड की कार्रवाई शुरू करते हुए, मुख्यत: मुसलमानों के दर्जनों घरों तथा दूकानों पर बुलडोजर एक्शन शुरू कर दिया। वह तो इलाहाबाद हाई कोर्ट बीच में आ गयी और उसने सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश का उल्लंघन करने वाली इस तरह की बुलडोजर कार्रवाई पर फिलहाल रोक लगा दी है, वर्ना योगी राज ने व्यवहार में बहराइच में ‘हिंदू राज’ अमल में उतार कर दिखा दिया होता। खैर! बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी।