सांसदों की जिम्मेदारी बढ़ी 

उत्तराखंड की सभी पांचों सीटों पर भाजपा उम्मीदवार विजयी हुए हैं। ऐसे में उत्तराखंड के सांसदों से यहां के लोगों की उम्मीदें काफी बढ़ गई हैं। निर्धारित सांसद निधि के अलावा केंद्र की कई ऐसी योजनाएं हैं जिनके सहारे उत्तराखंड के लोगों का भला किया जा सकता है

रणविजय सिंह

देश की बागडोर एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथ में है। एनडीए की सरकार ने कामकाज भी शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रियों को 100 दिन के कामकाज का टारगेट भी दे दिया है, ताकि मंत्री विकास के लक्ष्य की शुरुआत कर सकें। बात उत्तराखंड के सांसदों की है। बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने बूते पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं कर पाई। खासकर, उत्तर प्रदेश में मतदाताओं ने भाजपा को पहले की तरह तवज्जो नहीं दिया। लेकिन उत्तराखंड की सभी पांचों सीटों पर भाजपा उम्मीदवार विजयी हुए हैं। ऐसे में उत्तराखंड के सांसदों से यहां के लोगों की उम्मीदें काफी बढ़ गई हैं। निर्धारित सांसद निधि के अलावा केंद्र की कई ऐसी योजनाएं हैं जिनके सहारे उत्तराखंड के लोगों का भला किया जा सकता है। उत्तराखंड के सांसदों को भी पता है कि यहां की जनता ने उन पर भरोसा जताया है, तभी देवभूमि में विकास की बेहद धीमी रफ्तार के बावजूद सभी सीटें भाजपा की झोली में गई हैं। दरअसल, लोगों ने राज्य सरकार के बजाय केंद्र सरकार पर भरोसा किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लोगों ने विश्वास जताया है। दूसरा सच यह भी है कि उत्तराखंड में जिस तरीके से विकास की गंगा बहनी चाहिए थी,ऐसा नहीं हो पाया है।

अब पलायन कैसे रूके। सड़कों का जाल कैसे बिछे। पेयजल, बिजली तथा स्वास्थ्य सुविधाएं सबको किस तरह से उपलब्ध हो। ये तमाम चीजें आम जनता को किस तरह से उपलब्ध हो, इस पर फोकस करने की जरूरत है। सांसदों को अपनी क्षमता का उपयोग विकास कार्यों में लगाना चाहिए। राज्य सरकार को भी चाहिए वह सांसदों का सहयोग करे। ताकि विकास बाधित नहीं हो।

हालांकि, इसके लिए स्थानीय सरकार ही जिम्मेदार है। इसमें केंद्र की कोई भूमिका नहीं है। केंद्र तो शुरू से ही राज्य सरकार की मदद करता रहा है। केंद्रीय योजनाओं को क्रियान्वित कराने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है। केंद्र तो विकास के लिए भारी भरकम फंड उपलब्ध कराता है। शेष कार्यों की जिम्मेदारी तो राज्य सरकार की होती है। खैर, जो हो अब तो लोकसभा की सभी पांचों सीटों पर भाजपाई सांसदों का कब्जा है। सांसदों की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे विकास कार्यो को गति दें।

उत्तराखंड में कई तरह की समस्याएं हैं। सबसे पहले इन समस्याओं को समझना होगा। उसके बाद ही समस्याओं से निजात कैसे पाया जाए, इस पर मंथन करना होगा। आज रोजी रोटी के अभाव में युवकों को अन्य प्रांतों में भटकना पड़ता है। यदि पहाड़ में सब कुछ मिल जाए तो कोई युवक नौकरी की तलाश में जहां तहां क्यों भटकेगा। सांसदों को यह सुनिश्चित करना होगा कि केंद्रीय धन प्रचुर मात्रा में उत्तराखंड लाएंगे ताकि फंड के अभाव में विकास बाधित नहीं हो। कृषि पर भी विशेष ध्यान देना होगा। क्योकि उत्तराखंड में कृषि योग्य भूमि काफी कम है। उत्तराखंड में सीमित खेती है, इसकी उर्वरक शक्ति बढ़ाने की दिशा में कार्य करने होंगे। जैविक खेती पर खुद को फोकस करना होगा। इस दिशा में किसानों को विशेष रूप से प्रशिक्षित करना होगा। प्रदेश के सांसद इसमें बड़ी भूमिका अदा कर सकते है। करने के लिए उत्तराखंड में काफी कुछ है। बशर्ते इच्छा शक्ति होनी चाहिए। सांसदों को इस दिशा में भी खुद ही पहल करने की जरूरत है।

उम्मीद की जानी चाहिए कि सांसद, संसद में उत्तराखंड की बात प्रमुखता से रखेंगे। राज्य की जनता भी यही चाहती है कि सांसद उनकी समस्याओं को प्रमुखता के संसद में रखें। वैसे भी उत्तराखंड आपदा प्रभावित राज्य है। हर साल आपदा से नुकसान होता है। नुकसान को कैसे कम किया जाए। इस पर भी सांसदों को गंभीरता से चिंतन करने की जरूरत है। राज्य सरकार को भी सांसदों की मदद करनी चाहिए। ऊर्जावान सांसद जनहित में प्रदेश के लिए बहुत कुछ कर सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रदेश के सांसद चुनाव के दौरान अपने किए गए वादों को नहीं भूलेंगे। साथ ही, मन लगाकर राज्य हित में कार्य करेंगे।

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