प्रभारी नई, चुनौतियां वहीं

प्रभारी बदलने से नहीं, हरीश रावत को आगे लाने से बचेगी कांग्रेस!

देवेंद्र की जगह शैलजा के आने से भी गुटबाजी के खात्मे के आसार नहीं

-डॉ. गोपाल नारसन , रुड़की

उत्तराखंड कांग्रेस में जान फूंकने के लिए फिर से प्रयास किए जा रहे हैं। कांग्रेस हाईकमान ने उत्तराखंड में कांग्रेस प्रभारी बदल दिया है। देवेंद्र यादव की जगह अब कुमारी शैलजा को उत्तराखंड का प्रभार सौंपा गया है। उन्हें इससे पहले छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया था। कुमारी शैलजा वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं। लोकसभा चुनाव से पहले हुए इस बदलाव के कई मायने निकाले जा रहे हैं। कांग्रेस के उत्तराखंड प्रभारी रहे देवेंद्र यादव को लेकर कई बार कई वरिष्ठ नेताओं ने अपनी नाराजगी जाहिर की थी। लोकसभा चुनाव से पहले यह बदलाव काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। कांग्रेस में लगातार गुटबाजी की खबरें सामने आते रहती हैं। जिसे खत्म करने के लिए कांग्रेस हर संभव प्रयास कर रही है, इस बदलाव को भी इस प्रयास से जोड़ कर देखा जा रहा है। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में कांग्रेस की हार के बाद प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव वरिष्ठ नेताओं के निशाने पर आ गए थे। मौजूदा विधायकों व पूर्व विधायकों के साथ ही वरिष्ठ नेताओं ने विधानसभा चुनाव के बाद उन्हें हटाए नहीं जाने पर नाराजगी जाहिर की थी। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत एवं पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह समेत कई वरिष्ठ नेता समय-समय पर इस बात को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं।
देवेंद्र यादव भी लगातार नाराजगी से जूझ रहे थे, ऐसे में काफी समय से इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि कांग्रेस जल्दी ही प्रदेश प्रभारी बदल सकती है और उनकी जगह किसी परिपक्व नेता को ये जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। कुमारी शैलजा को जिम्मेदारी मिलने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें बधाई दी है। अब अहम सवाल है कि उनके उत्तराखंड का प्रभारी बनने के बाद कांग्रेस में क्या बदलाव आता है, क्या उत्तराखंड कांग्रेस में चलती आ रही गुटबाजी समाप्त हो पाएगी? साल 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का परफॉर्मेंस कैसा रहेगा? इसे लेकर माथापच्ची जारी है।
शैलजा मूल रूप से हरियाणा के हिसार की रहने वाली हैं, जो पूर्व की यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुकी हैं। उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत साल 1990 में महिला कांग्रेस की अध्यक्ष बनने से हुई थी। इससे पहले साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कुमारी शैलजा उत्तराखंड स्क्रीनिंग कमेटी की अध्यक्ष रह चुकी हैं। शैलजा कुमारी अंबाला की सांसद रह चुकी हैं और उन्होंने इस निर्वाचन क्षेत्र में दो कार्यकालों तक काम किया है। यूपीए सरकार के दौरान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री का पद उन्होंने संभाला था। उन्होंने साल 1990 में महिला कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अपने राजनीतिक मैदान में प्रवेश किया था। उसके बाद साल 1991 में पहली बार दसवीं लोकसभा के चुनाव में हरियाणा के सिरसा लोकसभा सीट से चुनाव जीतीं और नरसिम्हा राव सरकार में शिक्षा और संस्कृति राज्य मंत्री रही।
अब तक कुमारी शैलजा छत्तीसगढ़ का प्रभार संभाल रही थी, लेकिन अब उनकी जगह राजस्थान के डिप्टी सीएम रहे सचिन पायलट को यह जिम्मेदारी की गई है, और देवेंद्र यादव के बदले कुमारी शैलजा को उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी का प्रभारी बनाया गया है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह से लेकर पार्टी के कई बड़े नेता देवेंद्र यादव के खिलाफ बयानबाजी कर रहे थे। इससे पहले हरीश रावत भी देवेंद्र यादव से नाराज थे, इसी गुटबाजी के वजह से साल 2022 में कांग्रेस को लगातार दूसरी बार उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था।
कांग्रेस अपना वजूद बचाए रखने व सन 2024 के लोकसभा चुनाव में सत्ता तक पहुंचने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। इसके लिए कांग्रेस ने पहले भारत जोड़ो यात्रा और फिर हाथ से हाथ मिलाओ अभियान तथा तपस्या कार्यक्रम चलाए हैं, लेकिन कांग्रेस के हाथ फिर भी तेलंगाना को छोड़कर सत्ता नहीं आई। संगठन चुनाव के तहत मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष बनने के बाद भी संगठन स्तर पर कोई बदलाव नहीं आया। जमीन से जुड़े  कांग्रेसी अब भी उपेक्षित होकर घरों में बैठे हैं। कांग्रेस आपसी गुटबाजी और बड़े नेताओं द्वारा अपनों को दूध, परायों को छाछ के रास्ते पर चलने के कारण लोगों के दिलो में जगह नहीं बना पा रही है। कोई कार्यकर्ता संगठन के लिए काम क्यों करेगा, जब उसे सम्मान ही नहीं मिलेगा। कांग्रेस जब सत्ता में होती है तो अवसरवादी, दलबदलू व कुछ पैसे के बल पर सरकार में दायित्व पा जाते हैं, और जमीनी कार्यकर्ता हाथ मलते रह जाते हैं। चुनाव के समय टिकट आवंटन मामले में भी कांग्रेस यह जानते हुए भी कि अमुक कि हार निश्चित है, उसी को टिकट थमा देती है और बेचारा वर्षों से कांग्रेस के दुःख-सुख का साथी रहा कार्यकर्ता टिकट से वंचित हो जाता है।
कांग्रेस ने शायद ही किसी आम कार्यकर्ता को जिसके पास पर्याप्त धन,बल न हो टिकट दिया हो। उत्तराखंड में ही अनेक ऐसी सीटें हैं जहां बार-बार हारने पर भी कांग्रेस प्रत्याशी नहीं बदलती। कई जगह ऐसे लोगों को टिकट थमा दिया जाता है जिनका कांग्रेस से कोई लेना देना नहीं है। सच यह है कि कांग्रेस कभी सत्ता से हटती ही नहीं, यदि कांग्रेस के नेता अपने कार्यकर्ताओं को सम्मान देकर चलते। दूसरे कुर्सी के लिए एक दूसरे की टांग खींचने की प्रवृत्ति ने कांग्रेस को कमजोर किया है।
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद साल 2002 के विधानसभा चुनाव को तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हरीश रावत के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया था। कांग्रेस सत्ता में भी आ गई परन्तु मुख्यमंत्री हरीश रावत के बजाय नारायण दत्त तिवारी को बना दिया गया, जो उत्तराखंड बनने के ही विरोधी थे। इसी प्रकार दूसरी बार जब कांग्रेस को हरीश रावत के नेतृत्व में बहुमत मिला तो मुख्यमंत्री की कुर्सी विजय बहुगुणा को दे दी गई। जो उत्तराखंड में आई भयंकर आपदा तक को नहीं संभाल पाए जिस कारण उन्हें बीच मे ही हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद सत्ता के लालच में कांग्रेस के अपने कहे जाने वाले ही कांग्रेस के दुश्मन हो गए। कांग्रेस के विद्रोही विधायकों ने भाजपा में शामिल होकर कांग्रेस को धराशायी कर दिया। काश! हरीश रावत अपने शासनकाल में विजय बहुगुणा को राज्यसभा भेज देते तो कांग्रेस का तख्ता पलट न होता। इसी तरह तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को राज्यसभा मिल गई होती तो आज किशोर भाजपा के बजाय कांग्रेस के विधायक होते।
सबसे ज्यादा मजे में उत्तराखंड के मौजूदा नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य रहे, जो पिछली विधानसभा में अपने पुत्र के साथ भाजपा से विधायक बनकर 5 वर्षो तक मंत्री रहे और चुनाव से पहले पुनः दलबदल कर कांग्रेस में आने पर नेता प्रतिपक्ष बन गए। जिससे साफ है कांग्रेस निष्ठा के बजाए अवसरवादी को तरजीह देती है। यही कांग्रेस के लिए घाटे का कारण बन रहा है। इतना सब होने व कांग्रेस के बार बार हारने के बावजूद कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव लम्बे समय तक अपनी कुर्सी पर जमे रहे, अब जाकर उन्हें हटाया गया है। जबकि पिछले साल से ही कांग्रेस विधायक हरीश धामी कांग्रेस के तत्कालीन प्रभारी देवेंद्र यादव को कांग्रेस की लुटिया डुबोने के लिए जिम्मेदार मानते रहे हैं। उन्होंने खुले रूप से उन्हें प्रभारी पद से हटाने की भी मांग की थी। साथ ही, समय पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को कमजोर करने की उनकी कोशिश ने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया है। यही हरीश रावत की हार का कारण भी बना है।
वहीं, राजनीति में झूठ किस सफाई और ढीढता से बोला जाता है वह कांग्रेस के एक नेता के बयान से ही उजागर होता है। कांग्रेस की कमान जब उनके हाथों में थी, तब भी वे गुटबाजी से बाहर नहीं निकल पाए और चुनाव से पहले टिकट आवंटन मामले में और चुनाव के दौरान चुनाव प्रचार मामले में भी वे वहां दिखाई नहीं दिये जो उनके गुट के नहीं थे। अब जब उनकी कलई कांग्रेस हाईकमान के सामने खुल गई और कांग्रेस हाई कमान ने उन्हें गत वर्ष पद से बेदखल कर दिया तो उनके पेट मे जोर जोर से दर्द होने लगा और अब वे सफाई देते घूमने लगे हैं कि उनकी उपेक्षा की जा रही है।
कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष पद पर करन महारा, नेता प्रतिपक्ष पद पर यशपाल आर्य और उपनेता  पद पर भुवन कापड़ी की नियुक्ति के बाद से ही कांग्रेस में खींचतान शुरू हो गई थी, जो आज तक जारी है। कांग्रेस बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के लिए ध्रु्वीकरण, मुफ्त राशन को मुख्य कारण मानती है। जबकि मुख्य कारण कांग्रेस का गलत टिकट आवंटन भी है। धड़ेबाजी की वजह से भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचा है, लेकिन ध्रुवीकरण और मुफ्त राशन ज्यादा असरदार कारण रहे हैं। कांग्रेस में शीर्ष पदों पर नियुक्ति और चुनावी हार की वजहों को लेकर उपजे असंतोष को थामने के लिए प्रदेश प्रभारी शैलजा को अब आगे आना चाहिए। उन्हें समय रहते जमीनी स्तर तक अपनी पहुंच बनानी होगी और योग्य कार्यकर्ताओं को टिकट के लिए खोजना होगा। कांग्रेस को शीर्ष पदों पर नियुक्तियों को क्षेत्र और जातीय चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। चुनावी हार के कारणों पर पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह की नाराजगी पर तत्कालीन कांग्रेस प्रभारी देवेंद्र यादव टिप्पणी करने से बचते रहे हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय नेतृत्व को दी गई रिपोर्ट में गुटबाजी भी एक पहलू रहा है। लेकिन उनकी अपनी रिपोर्ट कौन देगा जिसके कारण आज कांग्रेस सत्ता के बजाय विपक्ष में है, इस सवाल पर भी विचार करना जरूरी है।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का कहना है कि 2024 की चुनावी लड़ाई देश को आजादी दिलाने वाली कांग्रेस व उसके सहयोगी गठबंधन दलों तथा आजादी के आंदोलन में अंग्रेजों की मुखबिरी करने वाले लोगों के बीच है, इनमें से किसी चुनना है यह देश की जनता तय करेगी। उन्होंने साथ ही कांग्रेस को भारत के विकास का प्रतीक बताते हुए कांग्रेस शासनकाल की उपलब्धियों को अभूतपूर्व बताया तो मोदी सरकार के समय देश के प्रतिष्ठित प्रतिष्ठानों के निजीकरण को देश के लिए घातक बताया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि कांग्रेस ही नहीं, देश की विपक्षी पार्टियों के लिए देश को बचाने का यह आखिरी मौका है, अन्यथा इस देश के लोकतंत्र को कुचलकर तानाशाही की ओर बढाया जा रहा है। हरीश रावत ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अब फिर से कांग्रेस को सींचने का काम शुरू कर दिया है। इसके लिए उन्होंने लोगो को कांग्रेस से जुड़ने के लिए अपील की है। हरीश रावत ने अपनी अपील जिसे वे घर घर जाकर बांट रहे है,उनका मानना है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस समाज के सभी वर्गों, समुदायों, धर्मों और जातियों को साथ लेकर चलती है। वही पहले जाति आधारित राजनीति करके और अब हिन्दू-मुसलमान के आधार पर समाज को बांटने वाली पार्टियों ने कांग्रेस के जनाधार को कमजोर किया है।
वहीं, उक्त पार्टियों के कारण देश भी कमजोर हुआ है। जबकि कांग्रेस सर्वधर्म समभाव अपनाते हुए सबके कल्याण के लिए तत्पर रहकर अमीर-गरीब के बीच की खाई को पाटने, देश के किसानों, मजदूरों, नौजवानों, महिलाओं, दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों, अल्पसंख्यक, कर्मचारियों, व्यापारियों के प्रति व्याप्त असम्मान व आर्थिक विषमता के प्रतिकूल समय में कांग्रेस उनके पक्ष में संघर्ष के लिए आगे आ रही है। यही कांग्रेस का संवैधानिक धर्म है और महात्मा गांधी, डॉ. भीमराव अंबेडकर के सिद्धांतों को आगे लेकर चलने का संकल्प भी है। जिसके लिए हरीश रावत ने कांग्रेस से जुड़ो अभियान की 51 यात्राएं करने व आने वाले सभी चुनाव में कांग्रेस को ताकत देने का अभियान शुरू किया है।
पहाड़ हो या मैदान, शहर हो या गांव, घर हो या चैपाल, शायद ही ऐसी कोई जगह हो, जहां पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का अपना कोई कार्यकर्ता मौजूद न हो। प्रत्येक कार्यकर्ता के दुःख -सुख के साथी कहे जाने वाले हरीश रावत की एक बड़ी विशेषता यह भी है कि उन्हों अपने हर कार्यकर्ता का नाम व पता याद रहता है। किस कार्यकर्ता से उन्हें क्या काम लेना है, कैसे काम लेना है और कार्यकर्ता को क्या सम्मान देना है, यह भी हरीश रावत को बखूबी आता है। मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए और मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतरने के बाद भी वे अपने कार्यकर्ताओं को वही मान सम्मान देते रहे हैं जो पहले से देते आए हैं। छोटे से छोटे कार्यकर्ता के महत्व और सम्मान को तरजीह देने में माहिर हरीश रावत को अपने कार्यकर्ताओं के बीच रहकर विशेष ऊर्जा मिलती है। तभी तो मुख्यमंत्री आवास रहा हो या उनकी कोई जनसभा या फिर उनका अन्य कोई कार्यक्रम, जब तक कार्यकर्ताओं से वे घिरे न हो, तब तक उन्हों आनंद की अनुभूति नहीं होती।
अपने छोटे से छोटे घरेलू कार्यक्रमों में भी वे अपने आम और खास कार्यकर्ताओं को आमंत्रित करना नहीं भूलते, वहीं वे यह भी कोशिश करते हैं कि सभी कार्यकर्ताओं के यहां उनके सुख-दुख के अवसरों पर हाजिरी दे सकें। उनके इसी गुण के कारण उनके कार्यकर्ता उनके लिए उनके विरोधियों से भी भिड़ जाते हैं और हरीश रावत के पैरोकार बनकर चुनाव के समय उन्हें सफलता के सोपान तक पहुंचाते हैं। हालांकि, हरीश रावत को कई बार चुनावी असफलताएं भी झेलनी पड़ी है परन्तु न तो हरीश रावत का और न ही उनके कार्यकर्ताओं का मनोबल कम हुआ है। आज भी ऐसे कई कार्यकर्ता हैं जिन्हें हरीश रावत सरकार बन जाने पर भी कुछ नहीं दे पाए, लेकिन न तो हरीश रावत यह बात भूलते हैं और न ही उनके वे कार्यकर्ता उनसे रुठते हैं। वे फिर भी कन्धे से कन्धा मिलाकर हरीश रावत के उत्तराखंडियत मिशन में न सिर्फ भागीदार बन रहे हैं, बल्कि आमजन के बीच जाकर हरीश रावत सरकार के समय की उपलब्धियों को भी बता रहे हैं। उनके इस अभियान के साथ ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन महारा जहां संगठन को धार दे रहे हैं, वहीं कांग्रेस की गुटबाजी दूर करने के लिए राहुल गांधी स्वयं नसीहत दे चुके है। हालांकि, गुटबाजी दूर हो पाएगी ऐसा कम से कम फिलहाल तो नहीं लगता। लेकिन इसके लिए कांग्रेस हाईकमान को हरीश रावत को आगे लाने का निर्णय करना होगा। हमें यह भी सोचना होगा कि पहाड़ के संरक्षण, संवर्धन और विकास के लिए उत्तराखंड राज्य के विकास की जो परिकल्पना राज्य के लोगों द्वारा उत्तराखंड आंदोलन के दौरान की गई थी वह विकास परिकल्पना पूरा करने का हरीश रावत दावा कर रहे है। हरीश रावत को पिछले चुनाव में जीत नहीं मिल सकी थी। जिसके पीछे  आम जनता तक पहुंच बना कर आम जनता को कांग्रेस व सरकार की उपलब्धियां न बताने से जीत के लक्ष्य को प्राप्त करने में कांग्रेस विफल रही थी।
उत्तराखण्ड की राजनीति में कांग्रेस के वर्चस्व को बनाये रखने और मिशन 2024 को फतेह करने के लिए कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत एकजुटता के साथ चल रहे हैं। हरीश रावत पार्टी की मजबूती के लिए  चलाये गए कांग्रेस से जुड़िए अभियान को सफल बनाने में भी वे कारगर रहे हैं। कांग्रेस चाहती है कि पहाड या मैदान उत्तराखंड के विकास कार्यों में कोई ठहराव न आने पाए। जिस पहाड़ और मैदान की संस्कृति तथा उसके भोलेपन पर सारी दुनिया फिदा है, उसके महत्व को कांग्रेस ने समझा है। जिसका दावा स्वयं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा कर रहे हैं। पहाड़ की हरियाली, उसकी खूबसूरती, उसकी जड़ी बूटी, पहाड़ी व मैदानी व्यंजनों जैसी विरासत को बचाने के लिए हरीश रावत सदैव आगे रहे हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की सोच है कि पहाड़ी क्षेत्रों में रह कर पहाड़ की सांस्कृतिक विरासत को जिंदा रखा जाए, क्योंकि जब तक पहाड़ को अपनी आत्मा समझ कर हम पहाड़ को संरक्षित करने की पहल नहीं करेंगे, जब तक पहाड़ की मजबूती और सुन्दरता के लिए पहाड़ पर नये पौधों का रोपण नहीं करेंगे। जब तक विकास के नाम पर बारूद से पहाड़ तोड़ने के लिए विस्फोट करना बंद नहीं करेंगे, जब तक पहाड़ में आत्म स्वावलंबन के लिए रोजगार का सृजन नहीं करेंगे, तब तक पहाड़ को बचा पाना मुश्किल भरा रहेगा। इसके लिए आम जनमानस की एकजुटता, संगठन शक्ति, उत्साह ,जोश और स्फूर्ति की आवश्यकता है जो कभी नये राज्य की मांग को लेकर पैदा हुई थी। तभी राज्य के विकास की कभी धुरी रही कांग्रेस सत्ता में लौट सकती है।

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