डेंजर जोन में मणिपुर

महिलाओं के साथ बर्बरता के वीडियो ने दुनिया को किया शर्मसार

  • सरकार की आफत, क्या मणिपुर बनेगा सियासी ‘भस्मासुर’!  

वीरेंद्र सेंगर 

नयी दिल्ली। मणिपुर (Manipur )में हालात ‘गृह युद्ध’ के बने हुए हैं। महिलाओं को प्रतिशोध के लिए निर्वस्त्र सड़कों पर घुमाया गया। इसके वीडियो वायरल हुए। बर्बर सामूहिक बलात्कार किए गए। इसकी फुटेज भी वायरल हुई। भारत ही नहीं, पूरी दुनिया को शर्मसार करने वाले ‘लाइव’ कुकृत्य सामने आए। इसके बाद भी विश्व गुरु बनने चले प्रधानमंत्री मोदी (Prime Minister Modi)नहीं पिघले।

 लगातार दबाव के बावजूद संसद में एक बयान तक देने के लिए राजी नहीं हुए थे। अंततः संयुक्त विपक्ष ‘इंडिया’ ने एक सियासी दांव चला। लोकसभा में 26 जुलाई को एक अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे दिया। विपक्ष ने प्रधानमंत्री(Prime Minister) को बयान देने के लिए मजबूर करने को रणनीति तैयार की। इसके तहत महज मणिपुर ही नहीं, महंगाई और बेरोजगारी जैसे ज्वलंत मुद्दों की खुली चर्चा का अवसर तलाश लिया। दोनों तरफ से तकरार तेज है। विपक्ष के सियासी दांव में फंसी मोदी सरकार बेहद आक्रामक हो गई है।

लोकसभा स्पीकर ने कानूनी रूप से बाध्य होने के कारण अविश्वास प्रस्ताव की मांग मंजूर भी कर ली। सबसे पहले कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई (असम) ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस स्पीकर को दिया था। इसके बाद भारतीय राष्ट्रीय समिति के एक सांसद नामा नागेश्वर राव ने भी एक और नोटिस दे दिया।

जाहिर है कि प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सत्ता और विपक्ष में धारदार विमर्श चलेगा। आशंका तो ये भी है कि इस सियासी टकराव में कहीं राजनीतिक विमर्श और कोई वीभत्स रूप ना ले ले। क्योंकि 25 जुलाई को भाजपा संसदीय दल की बैठक में पीएम मोदी ने विपक्ष के खिलाफ तमाम अनर्गल प्रलाप कर डाला था। उल्लेखनीय है कि 18 जुलाई को बेंगलुरु में कांग्रेस सहित प्रमुख विपक्ष की 26 पार्टियां जुटी थी। 

उन्होंने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए एकजुट होकर मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का लक्ष्य तय किया। विमर्श हुआ कि सभी दल आपसी समझदारी बनाकर भाजपा के मुकाबले साझा उम्मीदवार खड़ा करें। सबने माना कि यदि भाजपा दोबारा केंद्र में आती है, तो लोकतंत्र ही खत्म हो जाएगा। ऐसे में सभी दल अपने हितों की ‘कुर्बानी’ देकर भी एकता को मजबूत करें। विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का जो नामकरण किया है, उसका सूक्ष्म नाम ‘इंडिया’ है। यह बात भाजपा खेमे को और बेचैन कर रही है।

इंडिया को लेकर प्रातः आदरणीय मोदी जी भी संयम नहीं रख पा रहे। इन्होंने संसदीय दल की बैठक में ‘इंडिया’ की मुजाहिदीन इंडिया और ईस्ट इंडिया कंपनी से तुलना कर दी। उन्होंने इशारों-इशारों में जता दिया कि ‘इंडिया’ नाम रखने से कोई संगठन देशभक्त नहीं हो जाता।

 अब जब मोदी जी खुद इतना आक्रोश दिखा गए, तो उनके सिपहसालार भी कैसे पीछे रहते? पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद तो अपनी सियासी बदजुबानी के लिए वैसे ही बदनाम है। उन्होंने भी जमकर प्रलाप किया। गुस्से से जमकर नथुने फैलाएं। ये तो तब है, जब उन्हें मोदी जी ने अपने मंत्रिमंडल से बाहर फेंक रखा है। लेकिन वफादारी के लिए ऐसे लोग एकदम निम्न स्तर पर आ जाते हैं। हालांकि, वे जाने-माने वकील हैं, लेकिन टीम मोदी को खुश करने के लिए वे एकदम गवार ‘लठैत’ बन जाते हैं। भाजपा अध्यक्ष, जेपी नड्डा भी पद की मर्यादा छोड़कर अक्सर विरोधियों के लिए ‘ट्रोल’ की भूमिका में आ जाते हैं।

26 जुलाई को ही राज्यसभा में कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे को सरासर अपमानित किया गया। खड़गे तपे-तपाए दलित नेता हैं। जब ये बोल रहे थे तो सत्ता पक्ष के इशारे पर उनका माइक बंद कर दिया। खड़गे ने इसे अपना घोर अपमान बताया। इसको लेकर पूरे विपक्ष ने जमकर हंगामा किया।

 भाजपा के सांसदों ने जमकर ‘इंडिया’ के खिलाफ नारे लगाए। इस घटनाक्रम से दोनों पक्षों में तनाव और बढ़ा। 27 जुलाई को लोकसभा अध्यक्ष एक सर्वदलीय बैठक करने वाले हैं। उन्हें फैसला लेना है कि अविश्वास प्रस्ताव पर कब चर्चा कराई जाए? अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार होने के बाद ‘इंडिया’ के हौसले बढ़ गए हैं। इन पंक्तियों को लिखे जाने तक विपक्ष ने एक तरह से खेल का पहला राउंड जीत लिया है‌। इसके सत्ता पक्ष की खींझ और बढ़ी है।

‘आप’ के जोशीले सांसद संजय सिंह को मणिपुर के मामले में ही राज्यसभा से पूरे मानसून सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया था। इसको लेकर भी भारी रोष देखने को मिला। संजय सिंह संसद के गेट पर ही धरना दे रहे हैं। ‘इंडिया’ गठबंधन ने संजय को समर्थन दे दिया है। यहां तक कि कांग्रेस की प्रमुख नेता सोनिया गांधी ने 26 जुलाई को संजय सिंह से मुलाकात की। उन्हें आश्वस्त किया कि वे सब लोग उनके साथ हैं। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस से कई तरह के मतभेदों के बावजूद ‘आप’ ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल है। बदली स्थितियों में जनता दल (एस) के रुख में बदलाव आया है। वह भी ‘इंडिया’ के पक्ष में झुक गया।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में 20 जुलाई, 2018 को भी संसद में विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाया था। हालांकि, ये प्रस्ताव भारी मतों से गिर गया था। कांग्रेस प्रमुख खड़गे ने एक औपचारिक चर्चा के दौरान कहा, ‘विपक्ष हमेशा अविश्वास प्रस्ताव सरकार गिराने के लिए ही नहीं लाता। कई बार अड़ियल सरकार को लोकतांत्रिक मूल्यों पर चलने का दबाव बनाने के लिए भी लाया जाता है। हम जानते हैं कि सत्ता के साथ पर्याप्त बहुमत है। फिर भी तमाम मुद्दों पर चर्चा करके हम लोग इस तानाशाह सरकार को आईना दिखाने वाले हैं। ये हमारा विपक्ष के तौर पर कर्तव्य भी है और जिम्मेदारी भी है। मोदी जी को अनिवार्य रूप से बयान देना ही पड़ेगा। हमारी यही रणनीति है।

मणिपुर में 150 से ज्यादा लोग सामुदायिक हिंसा में मारे गए हैं। काफी संख्या में दोनों पक्षों के धार्मिक स्थलों को निशाना गया। नागा समेत दोनों समुदाय के करीब 50 हजार शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। क्योंकि मणिपुर में मेतैई और कुकी समुदायों के बीच खूनी संघर्ष चल रहा है। वैसे मेतैई यहां बहुसंख्यक हैं। कुकी लोग दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में ही बसे हैं। इन्हें मेतैई ओल्ड कुकी और न्यू कुकी के नाम से बांटते हैं। और न्यू कुकियों म्यांमार और बांग्लादेश के घुसपैठिए मानते हैं। 

 यदि मणिपुर की भौगोलिक स्थिति की बात करें तो प्रदेश का 90 फीसद भूखंड पहाड़ी जिलों में आता है। जिसमें 60 फीसद भूखंड नागा क्षेत्र में है, जबकि 30 फीसद में कुकी समेत अन्य जनजातियों का वर्चस्व है। ऐसे में जनजातीय बहुल होने के कारण संविधान के आर्टिकल 317-सी के तहत भूमि खरीद फरोख्त का अधिकार केवल उनके पास ही है। जबकि 10 फीसद भूखंड मैदानी मैतेई बहुल जिलों में है। यही वजह रही कि मैतेई समुदाय ने आरक्षण की मांग शुरू कर दी। वैसे ताजा तकरार मेतैई को भी जनजाति का दर्जा घोषित करने से हुई थी। कुकी इसका विरोध कर रहे हैं। यहां के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का प्रशासन हिंसा को रोक पाने में एकदम विफल रहे हैं। सैकड़ों प्रमाण है कि राज्य की पुलिस ने मेतैई दंगाइयों की मदद की और कुकी समाज के लोगों को प्रताड़ित किया।

दो चर्चित कुकी महिलाओं को निर्वस्त्र करके सड़कों पर घुमाने और उनके साथ हुई हैवानियत की घटना में पुलिस की भूमिका शर्मनाक रही। पीड़िताओं ने बयान दिया है कि पुलिस वालों ने ही उन्हें भीड़ को सौंपा था। उनकी आंखों के सामने ही दरिंदगी हुई थी। इसका वीडियो वायरल हुआ था। इससे पूरी दुनिया में भारत की गरिमा गिरी है। लेकिन केंद्र सरकार ने मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। जून में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तीन दिन मणिपुर में रहे भी थे। उम्मीद की गई थी कि उनके हस्तक्षेप के बाद हालात सुधर जाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वहां का कुकी समाज एकदम असुरक्षित है। वे नहीं जानते कि मणिपुर में अब उनका भविष्य क्या है?

दरअसल,   मुख्यमंत्री बीरेन सिंह मेतैई समाज से हैं। उनकी भूमिका मुख्यमंत्री के तौर पर ठीक नहीं रही। उनकी पार्टी के नेता आरोप लगाते हैं कि मुख्यमंत्री तो खुद मेतैई दंगाइयों का साथ देते आए हैं। इसी के चलते पुलिस सहित पूरा सरकारी तंत्र कुकी समाज के हिंसक उत्पीड़न का भागीदार है। ऐसे में उन्हें मौजूदा मुख्यमंत्री से किसी तरह के इंसाफ की उम्मीद नहीं है।

राजनीतिक प्रेक्षक भी हैरान है कि इतनी हिंसा और विफलता के बाद भी भाजपा आलाकमान ने मुख्यमंत्री का इस्तीफा क्यों नहीं मांगा? यह जरूर है कि एक बार बीरेन सिंह ने खुद इस्तीफा देने की बात की थी। वे ‘राजभवन’ के लिए रवाना भी हुए। लेकिन ये कहते हुए लौट आए थे कि समर्थकों ने उनसे इस्तीफा छीनकर फाड़ दिया। इस प्रकरण को राजनीतिक तौर पर एक फूहड़ ड्रामा ही माना गया। इसके बाद अब मुख्यमंत्री जमे हैं। क्योंकि अमित शाह भी उनके बचाव में आ गए हैं। उन्होंने यहां तक कह दिया कि मौजूदा स्थितियों में एन बीरेन सिंह का मुख्यमंत्री बने रहना बहुत जरूरी है। गृहमंत्री के इस रवैये से पड़ोसी राज्यों में भी कुकी-मेतैई के बीच तनाव बढ़ गया।

मिजोरम में मेतैई अल्पसंख्यक हैं। यहां इनकी संख्या करीब दस हजार बताई गई है। ये लोग डर गए हैं। कई जगह उन पर हमला भी हुआ है। केंद्र सरकार ने इन्हें दूसरे सुरक्षित स्थानों मं  भेजने का प्रस्ताव दिया है। 26 जुलाई को यहां कुकी समाज के समर्थन में एक बड़ी रैली भी हुई। इससे भी इलाके में तनाव बढ़ा है। सामुदायिक हिंसा और तनाव की आग मेघालय में भी महसूस की गई है। यदि हालात तेजी से नहीं सुधरे, तो पूरी पूर्वोत्तर घाटी हिंसा और आपसी घृणा के शिकंजे में फंस सकती है। यह भी कि मणिपुर का मामला मोदी सरकार के गले की बड़ी फांस बन सकता है। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया के साथ कई और देशों ने मणिपुर की बर्बरता पर तीखी आलोचना की है। ये सिलसिला और विस्तार पा सकता है। राजनीतिक प्रेक्षकों आशंका है कि कहीं मणिपुर का मामला मोदी सरकार के लिए ‘भस्मासुर’  ना बन जाए!

 

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