संसद चलाने की जितनी जिम्मेदारी सत्ता पक्ष की है, उतनी ही प्रतिपक्ष की। लेकिन अनावश्यक हठधर्मिता के चलते देश की जनता ने जिस काम के लिए सांसदों को चुना है, वो ही नहीं हो रहा है। प्रतिपक्ष के शोर-शराबे के बीच तमाम जरूरी विधेयक बिना चर्चा के पास किये जा रहे हैं। इस सत्र में मणिपुर के संवेदनशील मसले पर संसद में व्यवधान खड़ा किया जा रहा है, तो इससे पिछले सत्र में अडानी की कंपनियों की जांच के लिए जेपीसी से करवाने की मांग को लेकर कामकाज ठप रहा…
धर्मपाल धनखड़
मणिपुर जातीय हिंसा(Manipur Violence) की आग में तीन महीने से जल रहा है। इस पर चर्चा करवाने को लेकर शोर-शराबे के चलते संसद में आवश्यक विधाई कार्य नहीं हो पा रहे। प्रतिपक्ष प्रधानमंत्री के बयान के साथ नियम 267 के तहत चर्चा करवाना चाहता है, तो सत्ता पक्ष नियम 176 के सीमित चर्चा करने को सहमत है। सरकार राजहठ पर अडिग रही, तो प्रतिपक्ष सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र को घेरने की कोशिश में लगा है।
इसके चलते संसद में गतिरोध जारी है। सत्तापक्ष प्रतिपक्ष पर संसद ( parliament)नहीं चलने देने का आरोप लगाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा है। गौरतलब है कि आज जो सत्ता में हैं, जब वे विपक्ष में थे, तो विभिन्न मुद्दों पर सदन (parliament)में हंगामा करते थे और सत्ता पक्ष उन पर सदन की कार्रवाई नहीं चलने देने के आरोप लगाया था। ठीक वैसा ही अब हो रहा है।
संसद चलाने की जितनी जिम्मेदारी सत्ता पक्ष की है, उतनी ही प्रतिपक्ष की। लेकिन अनावश्यक हठधर्मिता के चलते देश की जनता ने जिस काम के लिए सांसदों को चुना है, वो ही नहीं हो रहा है। प्रतिपक्ष के शोर-शराबे के बीच तमाम जरूरी विधेयक बिना चर्चा के पास किये जा रहे हैं। इस सत्र में मणिपुर के संवेदनशील मसले पर संसद में व्यवधान खड़ा किया जा रहा है, तो इससे पिछले सत्र में अडानी की कंपनियों की जांच के लिए जेपीसी से करवाने की मांग को लेकर कामकाज ठप रहा। काम के मामले में देखा जाये तो 17वीं लोकसभा 1952 की लोकसभा के बाद सबसे कम काम करने वाली लोकसभा का रिकॉर्ड बनाने जा रही है।
सीमावर्ती राज्य में तीन महीने से चली आ रही हिंसा और महिलाओं के साथ दरिंदगी निःसंदेह अति संवेदनशील मसला है। केंद्र सरकार को इस पर जैसी तत्परता दिखानी चाहिए थी, वो नहीं दिखी। जब तीन मई को मणिपुर में हिंसा शुरू हुई उस समय प्रधानमंत्री समेत पूरा मंत्रिमंडल और प्रमुख विपक्षी दल कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में व्यस्त थे।
किसी को मणिपुर की पीड़ित जनता की चीख-पुकार सुनाई नहीं दे रही थी। चुनाव खत्म हुए तो मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने गृहमंत्री अमित शाह को प्रदेश के हालात की जानकारी दी। गृहमंत्री ने मई माह के अंत में मणिपुर का दौरा करके हालात का जायजा लिया और शांति बहाली के लिए राज्यपाल की अध्यक्षता में समिति बना दी। तब विपक्ष को भी मणिपुर की चिंता हुई। कांग्रेस नेता राहुल गांधी मणिपुर गये और पीड़ितों से मिले। केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों को राहुल गांधी का मणिपुर जाना बिल्कुल पसंद नहीं आया।
इस बीच विपक्षी दल मणिपुर को लेकर सरकार पर आरोप लगाते रहे। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह मौन रहे। 19-20 जुलाई को मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाने का वीडियो वायरल हो गया। उस हकीकत से पर्दा उठ गया, जिसे छुपाने की कोशिशें हो रही थीं। रही सही कसर मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के इस कथन ने पूरी कर दी कि ऐसे सैकड़ों केस हो रहे हैं। वैसे इसके पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महिलाओं के साथ दरिंदगी की घटना पर दुःख जताया और रोष का इजहार करते हुए दोषियों को नहीं बख्शने की चेतावनी दी। वो भी संसद में जाते हुए मीडिया के सामने। अच्छा होता कि प्रधानमंत्री इस मुद्दे पर संसद में बयान देते और शांति बहाली तथा मसले के समाधान के लिए सार्थक चर्चा करवाते।
विपक्षी दलों ने ये जानते हुए कि सदन में उनकी संख्या कम है, तब भी लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव रखा। इसे लोकसभा अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया। अब संसद में मणिपुर और अन्य राज्यों में महिलाओं के साथ हो रही आपराधिक घटनाओं के साथ-साथ दलितों, आदिवासी जनजातियों पर अत्याचार, महंगाई व बेरोजगारी जैसे तमाम मुद्दों पर भी चर्चा होगी।साथ ही सदन के नेता के नाते प्रधानमंत्री जवाब भी देंगे। ये काम बिना शोर-शराबे के पहले भी हो सकता था।
चूंकि संसद बनायी ही विमर्श के लिए है। केंद्र सरकार ने महिलाओं के साथ दरिंदगी की घटना की जांच सीबीआई को सौंप दी है। विपक्षी दलों का एक प्रतिनिधि मंडल भी मणिपुर में पीड़ितों से मिलकर लौटा है। प्रतिनिधिमंडल के सदस्य मणिपुर समस्या के समाधान और स्थायी शांति बहाली के लिए सुझाव सदन में रखेंगे। ऐसे संवेदनशील मामलों में सत्ता पक्ष को अड़ियल रुख नहीं अपनाना चाहिए और विपक्ष को भी संयम से काम लेना चाहिए। सरकार ने मणिपुर में शांति बहाली के लिए अब तक क्या प्रयास किये हैं और आगे क्या करेगी? ये सारी जानकारी तो अविश्वास पर बहस के जवाब में सदन के नेता को देनी ही होगी। ऐसे संवेदनशील मसलों पर राजनीति से ऊपर उठकर पक्ष और विपक्ष को देश हित में परस्पर सहयोग और एक दूसरे को विश्वास में लेकर काम करना चाहिए।