नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बागेश्वर जिले के कपकोट में पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाने के मामले में गुलमपरगढ़ गांव में अगली सुनवाई तक खड़िया खनन पर रोक लगा दी है और सरकार व सभी पक्षकारों से दो सप्ताह में जवाब देने को कहा है।
अदालत ने औद्योगिक विकास निगम को भी पक्षकार बनाया है। इस मामले को बागेश्वर के कपकोट तहसील के गुलमपर गढ़ गाँव निवासी हीरा सिंह की ओर से जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी गयी है। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी की अगुवाई वाली पीठ में इस मामले पर सुनवाई हुई।
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि गुलमपर गढ़ गाँव समुद्र तल से 1150 मीटर की ऊंचाई पर बसा है। यह भूकंपीय दृष्टि से उच्च जोखिम वाला क्षेत्र है लेकिन खड़िया खनन कारोबारी माधो सिंह पपोला द्वारा गाँव में बड़ी मशीनों से खड़िया खनन किया जा रहा है।
जेसीबी जैसी भारी मशीनों से पहाड़ियों को काटा जा रहा है जिससे यहाँ के पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा उत्पन्न हो रहा है। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि खनन कारोबारी की ओर से अवैध तरीके से वन भूमि पर तीन किमी सड़क का निर्माण भी कर दिया गया है।
प्रशासन और वन विभाग की जांच में इसकी पुष्टि हुई है लेकिन न तो प्रशासन और न ही बागेश्वर के प्रभागीय वनाधिकारी की ओर से दोषी के खिलाफ कोई कार्यवाही की गई है।
याचिकाकर्ता की ओर से आगे कहा गया कि खनन कारोबारी की ओर से पर्यावरण क्लीयरेंस से जुड़े नियमों का पालन भी नहीं किया जा रहा है जिससे गाँव में भूमि कटाव के साथ ही पर्यावरण व जैव विविधता का खतरा पैदा हो गया है।
याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि खनन कारोबारी को सरकार खड़िया खनन के लिए नयी लीज भी देने जा रही है। इससे गांव को और भी खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
अंत में अदालत ने वन एवं पर्यावरण सचिव, बागेश्वर के जिलाधिकारी और खनन कारोबारी माधोसिंह को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब देने के निर्देश दिए हैं। साथ ही तब तक खड़िया खनन और नयी लीज जारी करने पर रोक लगा दी है। इस मामले में अगली सुनवाई 12 नवम्बर को होगी।