कोलकाता। दुर्गा प्रतिमा में महिषासुर का चेहरा महात्मा गांधी के जैसा बनाने को लेकर जारी विवादों के बीच राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुप्पी साध रखी थी। इतने दिनों के बाद उन्होंने इस पर अपनी राय दी है और कहा है कि दुगार्पूजा के मौके पर लोगों के उत्सव को नष्ट नहीं करने की सोच की वजह से सब कुछ जानकर भी वह चुप रहने पर मजबूर थी क्योंकि एक बयान से पूरे पूजा का आनंद भी खत्म हो सकता है।
उन्होंने कहा कि पूरा देश महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता मानता है और उन्हें श्रद्धा करता है। लेकिन इस एक घटनाक्रम ने साबित कर दिया कि कुछ लोग ऐसे भी हैं जो महात्मा गांधी को महिषासुर बताने से परहेज नहीं करते हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर उन्हें चर्चा में लाने से बेहतर है कि इसका फैसला जनता पर छोड़ दिया जाए। जनता ऐसे लोगों को सही समय पर सजा देगी।
एक विजया सम्मेलन में शामिल होने के दौरान पहली बार तृणमूल प्रमुख ने इस पर अपनी राय दी है। अपने इलाके में आयोजित विजया सम्मेलन में भाग लेते हुए उन्होंने कहा कि दुगार्पूजा के मौके पर राष्ट्रपति को ही महिषासुर बनाने वालों की सोच को समझना होगा। ऐसे लोग अंदर से कितनी घृणा रखते हैं, यह उनके आचरण से स्पष्ट हो जाता है। दक्षिण कोलकाता के रूबी पार्क मे अखिल भारतीय हिंदू महासभा के पूजा के आयोजन को लेकर यह विवाद अब भी जारी है।
इस पूजा पंडाल में महिषासुर का चेहरा महात्मा गांधी के जैसा कर दिया गया था। शिकायत मिलने तथा हंगामा होने के बाद पुलिस ने हस्तक्षेप करते हुए आनन फानन में इस महिषासुर को नकली बाल और मुंछ लगाकर असुर के जैसा बना दिया था।
इस पूजा के मुख्य आयोजक चंद्रचूड़ गोस्वामी हैं जो खुद को अखिल भारतीय हिंदू महासभा का अध्यक्ष होने का दावा करते हैं। वर्ष 2021 में वह चुनाव भी लड़ चुके हैं लेकिन उन्हें सिर्फ 81 वोट मिले थे। विवाद बढ़ने के बाद गोस्वामी ने साफ साफ कहा है कि वे लोग गांधी को राष्ट्रपिता के तौर पर नहीं मानते हैं। हमलोग नेताजी सुभाष चंद्र बोस का सम्मान करते हैं। लेकिन उन्होंने सफाई दी है कि असुर का चेहरा महात्मा गांधी के जैसा नहीं था।
बिना किसी का नाम लिये ममता बनर्जी ने कहा कि कुछ लोग बार बार यह आरोप लगाते हैं कि ममता बनर्जी उन्हें पूजा करने से रोकती हैं। लेकिन जो लोग पूजा करते हैं, वे दरअसल क्या करते हैं यह तो एक घटना ने ही स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने साफ कर दिया कि घटना की सूचना पाकर वह अंदर से बहुत दुखी हुई थी लेकिन अपने आवेश को बाहर आने नहीं दिया ताकि दुगार्पूजा शांतिपूर्वक हो।