निशंक ने किया साहित्यकारों का सम्मान

देहरादून। यहां प्रीतम रोड़ में स्थित एक सभागार में हिमालय विरासत न्यास एवं कुसुम कांता फाउन्डेशन की ओर से हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित ‘साहित्यकार संगम’ समारोह में सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं पूर्व शिक्षामंत्री भारत सरकार डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ द्वारा कार्यक्रम में जुटे तमाम साहित्यकारों को सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर डा.निशंक ने कहा कि देश की एकता के लिए हिंदी जरूरी है। उनका कहना था, निश्चित तौर भारत की सभी मातृ भाषाएं सम्पन्न हैं किन्तु हिंदी के अलावा कोई भी भाषा एक से अधिक प्रांतों में व्यवहार में नहीं है।

ऐसे में हिंदी ही ऐसी भाषा है जो देश की अधिसंख्य जनता द्वारा बोली-समझी जाती है। यही नहीं यह दुनिया के दर्जनों देशों और 100 से अधिक विश्वविद्यालयों में पढ़ी-पढ़ाई जाती है। यह राजभाषा व राष्ट्रभाषा के साथ-साथ अन्तराष्ट्रीय भाषा भी है। उन्होंने कहा, हिंदी हिन्दुस्तान की पहचान है।
डा. निशंक ने अपने शिक्षा मंत्री कार्यकाल में नई शिक्षा नीति और हिंदी को लेकर मुख्यतः दक्षिण भारतीय राज्यों का व्यक्तिगत अनुभव भी साझा किया। उन्होंने हिंदी के प्रति तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश आदि की जनता और खासतौर से युवा पीढ़ी में हिंदी के प्रति बड़ते लगाव को शुभ संकेत बताया।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन में बनी नयी शिक्षा नीति में जिस तरह से मातृ भाषाओं को प्रमुखता और सम्मान देते हुए हिंदी को आगे बढ़ाने की रूप रेखा तैयार की गयी है उससे आने वाले दिनों में हिंदी सशक्त होकर भारत की राजभाषा ही नहीं राष्ट्रभाषा के रूप में भी स्थापित होगी।

सम्पर्क भाषा बनने से देश-विदेश में हिंदुस्तान का मान बड़ेगा। उन्होंने हिंदी को हिंदुस्तान का गौरव और पहचान बताया। साथ ही साहित्यकारों का इस दिशा में पुरजोर प्रयासों की उन्होंने सराहना की और उनका आभार जताते हुए सम्मानित भी किया।
कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार असीम शुक्ल ने पुराने साथियों और साहित्यकारों का हिंदी के प्रति लगाव और उसकी श्रीवृद्धि की दिशा में प्रयासों की चर्चा की।

उन्होंने हिंदी को शीघ्र अतिशीघ्र राजभाषा बनाये जाने की मांग की। वयोवृद्ध साहित्यकार डा. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरूण’ ने हिंदी को हिंदुस्तान की बिन्दी बताया और इसे भारत की सबसे सशक्त सम्पन्न भाषा करार दिया। डा. राम विनय सिंह, पद्मश्री डा. वीकेएस संजय ने भी हिंदी के माहत्मय पर अपने विचार व्यक्त किये। डा. बंसती मठपाल, डा.नीता कुकरेती, अलका तिवारी आदि ने भी हिंदी के प्रचार-प्रसार पर बल दिया और हिंदी पर इस विशेष कार्यक्रम के लिए डा. निशंक का हार्दिक आभार भी जताया।
देश की समस्त मातृ भाषाओं को पूरा संरक्षण एवं सम्मान दिये जाने पर जोर देते हुए साहित्य जगत की विभूतियों ने हिंदी को देश की राजभाषा बनाये जाने की मांग की। वक्ताओं का कहना था कि देश की पहली संविधान सभा ने व्यस्था दी थी कि हिंदी देश की राजभाषा होगी और अंग्रेजी को सह भाषा का दर्जा दिया गया मगर दुर्भाग्य ये है कि आज अंग्रेजी राजभाषा के रूप में चल रही है और हिंदी को संहभाषा बनाकर रख दिया गया है।

साहित्यकारों ने साहित्य साधना के साथ-साथ सड़क से संसद तक हिंदी को लेकर डा. रमेश पोखरियाल निशंक के प्रयासों की जमकर सराहना की। नई शिक्षा नीति और इसमें विशेष रूप से मातृ भाषाओं के संरक्षण और सम्मान को लेकर उन्होंने डा. निशंक को साधुवाद भी दिया।
कार्यक्रम की आयोजक हिमालय विरासत न्यास की अध्यक्ष आश्ना नेगी एवं कुसुम कांता फाउंडेशन की अध्यक्ष सुश्री विदुशी निशंक ने सबका आभार व्यक्त किया और हिंदी के सशक्तिकरण के लिए अभिनंदन किया।

कार्यक्रम में उक्त साहित्यकारों के अलावा डा. अतुल शर्मा, डा. चन्द्र सिंह तोमर, शिव मोहन सिंह, दिनेश बलूनी, हेमवती नंदन कुकरेती, जगदीश बाबला, वर्तिका त्रिपाठी, रजनी कुकरेती, डा. इन्दु नवानी, सोनिया रावत, अभिनंदन अभि, पं. ज्वाला प्रसाद, डा. प्रमोद भारती, डा. राकेश बलूनी, मुकेश नौटियाल, मेदिनी प्रसाद, डा. आंनद जोशी, आचार्य सुभाष डोभाल, आचार्य मनोज शर्मा, बबीता डोभाल, वृजेश नारायन आदि समेत अनेक साहित्यधर्मी रचनाकार उपस्थित रहे।

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