नयी दिल्ली। दिल्ली शराब घोटाले को हजारों करोड़ रुपए का भ्रष्टाचार बताते हुए कांग्रेस ने कहा कि मुख्यमंत्री केजरीवाल और आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया इधर उधर की बातें खूब कर रहे हैं लेकिन घोटाले को लेकर पूछे गए सवालों पर चुप्पी साधे हुए हैं।
कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता अजय माकन ने यहां पार्टी मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो(सीबीआई) को इस मामले में श्री सिसोदिया की गहराई से जांच पड़ताल करने के साथ ही दिल्ली विकास प्राधिकरण(डीडीए) और दिल्ली नगर निगम(एमसीडी) की भूमिका की भी जांच करनी चाहिए।
उनका कहना था कि जब दिल्ली में शराब की दुकानें खुल रही थीं तो डीडीए तथा एमसीडी ने इस मामले में कार्रवाई क्यों नहीं की। प्रवक्ता ने कहा कि आम आदमी पार्टी (आप) दो महत्वपूर्ण मुद्दों स्वराज लाने और भ्रष्टाचार मिटाने को लेकर के सत्ता में आई लेकिन दिल्ली के रिहायशी इलाकों में शराब की दुकानें खोलकर उन्होंने अपने इन दोनों बुनियादी बातों को तार-तार कर दिया।
कमाल यह है कि एमसीडी तथा डीडीए भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) की सरकार के तहत आते हैं लेकिन उसने इन शराब की दुकानों को सील करने का काम नहीं किया। श्री माकन ने कहा कि मास्टर प्लान 2021 के तहत रिहायशी इलाकों में शराब की दुकानें खोलने की अनुमति नहीं है, लेकिन केजरीवाल सरकार ने रिहायशी इलाकों में शराब की दुकानें खोली है।
इसके बावजूद एमसीडी तथा डीडीए ने दिल्ली के रिहायशी इलाकों में खुली 460 शराब की दुकानों को सील नहीं किया। प्रवक्ता ने कहा कि केजरीवाल सरकार ने 2020 में शराब नीति बनाने को लेकर एक समिति का गठन किया था।
समिति ने दो महत्वपूर्ण बातें कही थी, जिसमें से एक के तहत कर्नाटक की तर्ज पर सरकार शराब का होलसेल काम खुद देखें ताकि उस में कहीं कोई गड़बड़ी न हो और दूसरा राजस्थान की तर्ज पर रिटेल का काम लोगों को लॉटरी सिस्टम के आधार पर दिया जाना चाहिए।
इसमें एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि एक व्यक्ति को दो से ज्यादा ठेके नहीं देने हैं, लेकिन दिल्ली सरकार ने दोनों सिफारिशों को नहीं माना और मनमानी कर शराब नीति बनाई। उन्होंने कहा कि दिल्ली में हजारों करोड़ रुपए का शराब घोटाला हुआ है। इसमें इतनी गड़बड़ी हुई है कि शराब निर्माताओं ने दूसरी कंपनी बनाकर होलसेल का काम किया और तीसरी कंपनी बना करके रिटेल का भी काम शुरू कर दिया।
प्रवक्ता ने कहा कि इसी तरह का घोटाला शराब बेचने के लाइसेंस के काम में भी हुआ है। नियम के तहत जहां दिल्ली में 425 लाइसेंस दिए जाने थे वहीं महज 30 लाइसेंस दिए गए।