जाति जनगणना का प्रश्न

चाणक्य मंत्र ब्यूरो

देहरादून। बिहार में जातिवार जनगणना का रास्ता साफ हो गया है लेकिन सवाल यह है कि क्या यह एक राज्य तक सीमित रहेगा। बता दें कि इससे पहले महाराष्ट्र में भी विधानसभा पिछले साल जातिवार जनगणना के पक्ष में प्रस्ताव पारित कर चुकी है। उधर, तमिलनाडु की सरकार भी केंद्र से जातिवार जनगणना करवाने की मांग कर चुकी है।
जैसी कि संभावना थी बिहार में हुई सर्वदलीय बैठक में जातिवार जनगणना के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पास कर दिया गया। इसके बाद अब इसे कैबिनेट की मंजूरी मिलना एक औपचारिकता ही है।

यानी तय हो गया कि केंद्र सरकार के स्पष्ट रुख के बाद राष्ट्रीय स्तर पर भले जातिवार जनगणना होना मुमकिन न रह गया हो, बिहार सरकार अपने तई राज्य में यह गिनती करवाएगी।

चाहे तकनीकी अड़चनों से बचने के लिए इसे औपचारिक तौर पर जनगणना न कह कर जातिवार गणना कहा जाए या इसी तरह का कोई और नाम दे दिया जाए, मामला यही है कि जब केंद्र सरकार ने कास्ट सेंसस की राह रोकी तो बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने इसके लिए एक नई राह निकाल ली।

पर सवाल है कि क्या यह राह बिहार तक ही सीमित रहेगी? ऐसा लगता नहीं है। महाराष्ट्र में भी विधानसभा पिछले साल जातिवार जनगणना के पक्ष में प्रस्ताव पारित कर चुकी है। तमिलनाडु की सरकार भी केंद्र से जातिवार जनगणना करवाने की मांग कर चुकी है।

अब जब बिहार इस राह पर आगे बढ़ चुका है तो इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि अन्य राज्य सरकारें भी इस दिशा में पहल करेंगी।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो सर्वदलीय बैठक के बाद बाकायदा यह उम्मीद जाहिर कर चुके हैं कि एक बार बिहार में यह प्रक्रिया पूरी हो जाए तो अन्य राज्य भी आगे बढ़ेंगे और पूरा देश कवर हो जाएगा।

अगर कुछ राज्यों में भी ऐसा हुआ तो देश में किस तरह के हालात बनेंगे? क्या जैसा कि केंद्र सरकार और सत्तारूढ़ बीजेपी के कई नेता कहते रहे हैं, इन राज्यों में जातिवार जनगणना से विभाजनकारी प्रवृत्तियां जोर पकड़ेंगी? और क्या इन राज्यों में बीजेपी का रुख बिल्कुल वैसा ही रहेगा जैसा बिहार में रहा? क्या जनगणना से जुड़े आंकड़ों में राज्यवार अंतर आगे चलकर कई और जटिलताओं को जन्म नहीं देंगे? क्या बीजेपी शासित राज्यों में भी सरकारें केंद्र के रुख से अलग जातिवार जनगणना के पक्ष में फैसला करेंगी? कुल मिलाकर, बिहार की इस पहल ने ढेरों सवाल खड़े कर दिए हैं।

इन्हीं में एक बड़ा सवाल यह भी है कि केंद्र में सत्तारूढ़ कोई राष्ट्रीय पार्टी इतने महत्वपूर्ण मसले पर ऐसा ढीला-ढाला रुख कैसे अपना सकती है कि श्जातिवार जनगणना देश और समाज के हित में है या नहींश्, इस सीधे सादे सवाल का भी पार्टी की सभी इकाइयां कोई एक स्पष्ट जवाब न दे सकें? वोट बैंक की राजनीति से जुड़ी विवशताओं का ही एक रूप शायद यह भी है।

बहरहाल, बिहार की इस पहल ने साफ कर दिया है कि जातिवार जनगणना का यह प्रश्न केंद्र सरकार के स्पष्ट फैसले के बावजूद निपटा नहीं है। तमाम दलों और सरकारों को आगे इस बहस से निपटने की तैयारी जारी रखनी होगी ताकि दुविधा, संदेह और उलझन की स्थितियां भविष्य में उनसे गलत फैसले न करवा लें।

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