भाजपा में भी सुलग रही चिंगारी

ममता सिंह
उत्तराखण्ड में भाजपा की भले ही सरकार बन गई हो लेकिन अब भी सब कुछ सामान्य नहीं दिख रहा। चुनाव परिणाम आने से पहले ही कई भाजपा उम्मीदवारों ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर भितरघात का आरोप भी लगाया और बाद में पार्टी ने बकायदा इसकी पड़ताल भी कराई।

महत्वपूर्ण बात यह है कि भितरघात की पड़ताल कर रही टीम ने अपनी रिपोर्ट अनुशासन समिति को सौंप दिया है। कुछ न कुछ एक्शन होना तय है क्योंकि भितरघात के आरोप लगाने वालों में मुख्यमंत्री के करीबी यतीश्वरानंद, संजय गुप्ता सहित भाजपा के कई उम्मीदवार शामिल रहे हैं। खुद पुष्कर सिंह धामी खटीमा से चुनाव हार गए हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा हाईकमान एक्शन तो लेगा ही। अब महत्वपूर्ण बात यह है कि भितरघातियों के बहाने किस पर गाज गिरेगी, यह देखना काफी महत्वपूर्ण है।
यह सच है भाजपा में कई गुट हैं। आने वाले दिनों में यह संख्या बढ़ेगी ही। इसको नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। सरकार और संगठन में तनातनी बढ़ी हुई है। इसका प्रभाव भी भाजपा कार्यकर्ताओं पर पड़ना तय है। मुख्यमंत्री भी चाहेंगे कि संगठन पर उनका वर्चस्व कायम रहे। इसके लिए पहला शिकार वर्तमान पार्टी अध्यक्ष मदन कौशिक को बनाया जा सकता है।

मदन कौशिक को कभी भी अध्यक्ष पद से किनारे लगाया जा सकता है। हालांकि, यह बात मदन कौशिक भी अच्छी तरह से जानते हैं। अब तो स्थिति यह है कि खुद कौशिक भी नहीं चाह रहे कि अध्यक्ष पद पर जमे रहें। दरअसल, कौशिक मंत्री बनना चाह रहे थे लेकिन यह मंशा उनकी पूरी नहीं हो पाई है। धामी मंत्रिमंडल में भी अंदरखाने सब कुछ सामान्य नहीं है।

कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल खुश नहीं हैं। वजह भी ठोस है क्योंकि उनका कद इस बार के मंत्रिमंडल में घटा दिया गया है। क्योंकि जो उनके हिस्सा आया है वो आधा-अधूरा ही है। जैसे उनके पास वन विभाग है, जबकि पर्यावरण खुद मुख्यमंत्री ने अपने पास रखा है। पहले वन एवं पर्यावरण एक साथ मंत्री को दिए जाते थे क्योंकि वन एवं पर्यावरण एक-दूसरे के पूरक हैं।

इसके अलावा सुबोध उनियाल को सरकारी प्रवक्ता के पद से भी अलग कर दिया गया है। स्वाभाविक है, ऐसी स्थिति में सुबोध उनियाल कहीं से प्रसन्न नहीं रह सकते हैं। अब महत्वपूर्ण यह है कि मुख्यमंत्री किस तरह से चीजों को मैनेज करते हैं। क्योंकि बिना व्यवस्था को पटरी पर लाए मुख्यमंत्री खुलकर बैटिंग भी नहीं कर सकते हैं।
इसके अलावा दायित्व आवंटन भी होना है। हर खेमे के लोगों को कहीं न कहीं एडजस्ट करना मुख्यमंत्री के लिए बड़ी चुनौती होगी। वैसे भी सभी को संतुष्ट नहीं किया जा सकता। लेकिन मुख्यमंत्री धामी की कोशिश यही होगी हर धड़े को साथ लेकर चला जाए।

भाजपा हाईकमान ने धामी पर भरोसा जताया है तभी तो खटीमा से हारने के बाद उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री बनाया है। राजनीति क्षेत्रों में भी यही कयास लगाए जा रहे हैं कि मुख्यमंत्री भाजपा के हर गुट को साथ लेकर चलेंगे। हां, मुख्यमंत्री को आगामी 6 महीने के भीतर विधानसभा की सदस्यता भी ग्रहण करनी है। मुख्यमंत्री के लिए सुरक्षित सीट की तलाश की जा रही है, ताकि उन्हें चुनाव में किसी भी तरह की परेशानी नहीं हो।

धारचूला सीट पर खतरा!

भाजपा के कई विधायकों ने मुख्यमंत्री के लिए सीट छोड़ने की पहल की है। इस क्रम में धारचूला से कांग्रेस के विधायक हरीश धामी ने भी अपनी सीट मुख्यमंत्री के लिए छोड़ने की पहल की है। लेकिन यह राह भी आसान नहीं है। ऐसे में अति उत्साह भारी पड़ सकता है। क्योंकि धारचूला सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है और 2014 में हरीश धामी ने हरीश रावत के लिए उक्त सीट छोड़ी जिसमें वो विजयी भी रहे लेकिन हरीश कांग्रेस के उम्मीदवार थे।

ऐसे में धामी के लिए उक्त स्थान से चुनाव लड़ना कतई फाइदा का सौदा नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि धामी के लिए भाजपा विधायकों में से ही किसी एक को सीट छोड़नी चाहिए जो सुरक्षित हो, क्योंकि राज्य में मुख्यमंत्रियों और पूर्व मुख्यमंत्रियों को हराने की परंपरा रही है। ऐसे में पुष्कर धामी को सुरक्षित सीट पर फोकस करना चाहिए। वहीं, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि हरीश धामी, हरीश रावत के ज्यादा करीब हैं ऐसे में इस सीट को कब्जाना आसान नहीं।
बहरहाल, अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री क्या निर्णय लेते हैं। बहरहाल, सरकार और संगठन के बीच सामंजस्य बेहद जरूरी है। इस दिशा में संगठन और सरकार दोनों को ही ठोस पहल करनी होगी। क्योंकि अभी चिंगारी सुलग रही है लेकिन हालात पर नियंत्रण नहीं हुआ तो बड़े विस्फोट की संभावना से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है।

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