सुशील उपाध्याय
मशीन (प्रौद्योगिकी) चाहे कितनी भी समर्थ और एडवांस क्यों न हो जाए, लेकिन भाषा के प्रयोग और व्यवहार के मामले में वह मनुष्य का स्थान नहीं ले सकती। भाषा प्रौद्योगिकी उसी स्तर तक अपनी सामर्थ्य का प्रदर्शन कर सकती है, जितनी सूचनाओं के आधार पर उसे तैयार किया गया है।
हाल के दिनों में दो रोचक उदाहरण देखने को मिले जो भाषा के प्रयोग की प्रौद्योगिकी-केंद्रित स्थिति को सामने रखते हैं। और साथ ही, ये भी बताते हैं कि भाषा का प्रयोग कितनी लापरवाही से हुआ है। पहला उदाहरण, जर्मन हिंदी प्रसारण डीडब्ल्यू पर एक जनवरी, 22 को ‘सैन्य क्षमता बढ़ाने के लिए भारत क्या कर रहा है’ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। रिपोर्ट के लेखक भारतीय पत्रकार धारवी वैद हैं। इस रिपोर्ट में लिखा गया है, ‘‘आधुनिकीकरण केवल हथियारों, प्लेटफार्माें और उपकरणों के बारे में नहीं है क्योंकि अब हम तीनों चीजों को साथ लाने के लिए कमांड्स के नाटकीयता की भी बात कर रहे हैं। चीन पहले ही नाट्यकरण की ओर बढ़ चुका है और भारत अभी भी नाट्यकरण के लिए बातचीत ही कर रहा है। अभी आधुनिकीकरण को रंगमंच की ओर ले जाना चाहिए।‘‘
ये रिपोर्ट भारत की सैन्य क्षमताओं के बारे में हैं इसलिए इसमें नाटकीयता, रंगमंच, नाट्यकरण आदि शब्द ध्यान खींचते हैं। आखिर, सैन्य-व्यवस्था में नाटक की शब्दावली क्यों प्रयोग की जा रही है! इन शब्दों के प्रयोग की सच्चाई जानने के बाद प्रौद्योगिकी के मौजूदा स्तर और इसके प्रयोगकर्ता की स्थिति पर हंसी छूट जाएगी।
असल में, ये अंग्रेजी के शब्द मिलिट्री थिएटर कमांड्स, वैपन-प्लेटफार्म्स, थिएटर कमांड सेंटर स्थापित करने की प्रक्रिया से जुड़े हुए हैं। रिपोर्ट लेखक ने इनका अनुवाद मशीन ट्रांसलेशन टूल्स के जरिये किया है। ट्रांसलेशन टूल्स ने अपनी क्षमता के अनुसार इन शब्दों को नाटकीयता, रंगमंच, नाट्यकरण आदि में बदल दिया। और प्रयोग करने वालों ने इन अनुदित शब्दों को ज्यों का त्यों प्रयोग कर लिया। यदि इन्हें एक बार सरसरी निगाह से देख लिया जाता तो फिर ऐसी गड़बड़ी बिल्कुल न होती कि सैन्य-क्षेत्र में नाट्य शास्त्र के शब्द घुस जाते।
इस रिपोर्ट में और डीडब्ल्यू पर उपलब्ध अन्य रिपोर्टाें में इसी प्रकार की रोचक (कुछ हद तक परेशान करने वाले) उदाहरण मौजूद हैं। ऐसी की गलतियां बीबीसी के हिंदी पोर्टल पर भी देखने को मिलेंगी।
दूसरा उदाहरण हिन्दुस्तान अखबार के 21 मार्च, 22 के अंक में प्रकाशित ‘‘शोध चोरी पर सॉफ्टवेयर और गैजेट से नजर रखी जाएगी‘‘ खबर में देखा जा सकता है। इस खबर में यूजीसी की नई गाइडलाइन के उल्लेख के साथ बताया गया है कि अब ‘‘साहित्य चोरी और अकादमिक गड़बड़ी’’ को तकनीक के माध्यम से रोका जाएगा। यहां साहित्य शब्द के प्रयोग को देखिए। सामान्य तौर पर देखें तो किसी लिखित/वाचिक भाषा के माध्यम से अंतःमन की अनुभूति, अभिव्यक्ति कराने वाली रचनाएं साहित्य कहलाती हैं।
बाद साहित्य शब्द का अर्थ विस्तार हुआ तो इसे अन्य सभी विषयों के साथ जोड़ा जाने लगा। जैसे, प्रौद्योगिकी या विज्ञान संबंधी साहित्य (ऐसी लिखित या दस्तावेजी सामग्री जो उस विषय से संबंधित हो)। इसी क्रम में यूजीसी ने रिसर्च संबंधी अपनी अंग्रेजी शब्दावली में रिव्यू ऑफ लिटरेचर, प्लेजरिज्म ऑफ लिटरेचर आदि शब्दों का प्रयोग किया है। अनुवादकों ने आगा-पीछा सोचे बिना लिटरेचर का अनुवाद साहित्य कर दिया है, जबकि शोध के संदर्भ में लिटरेचर का अनुवाद शोध-सामग्री या अकादमिक सामग्री है।
(जिसमें आंकड़े, फोटो, स्कैच, लिखित सामग्री, रिपोर्ट्स, लेक्चर्स, पिक्चर्स, ऑडियो-वीडियो कंटेंट आदि शामिल है और इसका संबंध काव्य, कथा-कहानी आदि से ही नहीं है।) ध्यान देेने वाली बात यह है कि ऑनलाइन माध्यमों पर भी रिसर्च-लिटरेचर के लिए शोध-साहित्य और प्लेजरिज्म के लिए साहित्यिक-चोरी जैसे शब्दों की भरमार है। इन मामलों में प्रौद्योगिकी या ट्रांसलेशन टूल्स का उतना दोष नहीं है, जितना कि अनुवाद करने वालों का है। ये दो उदाहरण अंतिम नहीं हैं।
प्रतिष्ठित मीडिया माध्यमों और बौद्धिक जगत के विख्यात लोगों के लेखन और वाचन में भी इसी प्रकार की न्यूनताएं दिखती हैं। वैसे, इससे पहले यूजीसी के नेट एग्जाम और यूपीएससी की कुछ परीक्षाओं में भी स्टील प्लांट का अनुवाद स्टील का पौधा हो चुका है.