तो रावत को लालकुआं में ही उलझाकर थी हराने की साजिश !
कुमाऊं एवं गढ़वाल की एक दर्जन सीटों में हुआ कांग्रेस को नुकसान
- पहले चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे रावत, रावत की मीडिया मैनेजमेंट की टीम में शामिल एक पत्रकार ने किया खुलासा
हल्द्वानी । लालकुआं में पूर्व सीएम हरीश रावत के मीडिया मैनेजमेंट टीम में शामिल एक वरिष्ठ पत्रकार तरेंद्र बिष्ट ने रावत के हारने के कारणों की पड़ताल शुरू कर दी है। साथ ही सोशल मीडिया में एक पोस्ट भी डाल दी है।
बिष्ट कई कडिय़ों में रावत के हार के कारणों की पोस्ट सोशल मीडिया में साझा करने वाले हैं। उन्होंने पहली पोस्ट में रावत की हार का कारण लालकुआं के उनके चुनाव से जुड़े नेताओं पर ही डाल दी है।
इसमें साफ कर दिया गया कि रावत को लालकुआं में उलझाकर एक रणनीति के तहत हराया गया। इससे कुमाऊं की करीब दस विस सीट कांग्रेस जीतने से रह गई।
बिष्ट लिखा है कि ‘रावत संध्या डालाकोटी के कोप भाजन का शिकार तो हुए ही साथ में बाकी नेताओं पर आंख बंद करके विश्वास करना भारी पड़ गया। पार्टी के अंदर ही रावत के धुर विरोधी कभी नहीं चाहते थे कि रावत चुनाव जीते, वह उन्हें लालकुआं विस के अंदर ही उलझाए रखना चाहते थे, इसमें वह सफल भी हो गए।
पूरे चुनाव प्रचार के बीच रावत सिर्फ एक बार अपनी बेटी अनुपमा रावत के प्रचार में हरिद्वार जा पाए थे। इसका परिणाम रहा कि वह चुनाव जीतने में सफल रही।
चुनाव जीतने के लिए रावत जी ने दो नेतओं पर पूरा विश्वास कर लिया और पूरे चुनाव भर उन्हें ही अपनी गाड़ में घुमाते भी रहे। इसके अलावा उनके कुछ चित परिचित नेता ही इर्द-गिर्द घूमते रहे।
हल्द्वानी से लालकुआं, बिंदुखत्ता और गौलापार से चोरगलिया तथा दूरस्थ खत्तों तक लंबे चौड़ क्षेत्र में फैली विधानसभा में कार्यकर्ताओं को कहीं भी तवज्जो नहीं दी गई कहीं भी संगठनात्मक स्तर पर कार्यकर्ताओं की बैठकें नहीं हुई। पार्टी के आब्जर्वर तो यहां दूर-दूर तक नहीं दिखे।
बिष्ट यहीं पर नहीं रूकते हैं वे कह रहे हैं कि चंद सलाहकार चुनावी सभाएं रख रहे थे। एक दिन में 1 से 15 बैठकें तक रखी जा रही थी जिस कारण एक भी मीटिंग में रावतजी समय पर नहीं पहुंच पा रहे थे जिस कारण जनता या तो रावतजी के पहुंचने से पहले ही उठकर चली जा रही थी, या घंटों इंतजार कर बोर हो रही थी। यह बात भी रावतजी को बताने वाला कोई नहीं था, जब भी सलाहकारों को यह बात बताने की कोशिश की तो वह सब ठीक चल रहा है कहकर बात को टाल दे रहे थे।
रात में रावतजी के यहां नेताओं और सलाहकारों की खूब लग रही थी, वह उन्हें यही बता रहे थे कि सब कुछ ठीक चल रहा है जबकि पार्टी के चुनाव कार्यालयों और कार्यकर्ताओं तक समय पर कोई भी सामान नहीं पहुंच पा रहा था।
बिष्ट की इस तरह के चुनाव प्रबंधन से जुड़े रहस्यों की पर्त खोलने के सिलसिले में कुछ बातें शामिल नहीं हो सकती हैं। मसलन आचार संहिता लगने तक पूर्व सीएम हरीश रावत चुनाव नहीं लडऩा चाहते थे, वे पार्टी को बहुमत दिलाने के बाद चुनाव लडऩे की बात कर रहे थे। उन्होंने मतदान के बाद लालकुआं में भी यह बात साझा की।
उन्होंने कहा कि उनके चुनाव लडऩे से कुमाऊं एवं गढ़वाल की करीब दस बारह सीटें फंस गई हैं। भाजपा के कुछेक बड़े नेताओं ने भी यह बात स्वीकार की है कि रावत के लालकुआं में उलझने से अल्मोड़ा, चम्पावत, बागेश्वर और पिथौरागढ़ की कई सीटों में भाजपा को लाभ मिल रहा है।