देहरादून । पृथक राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में हो रहे पांचवें आम विस चुनाव में भाग्य आजमा रहे हर दिग्गज की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इनमें बड़ी सरकार (राज्य सरकार) के मुख्यमंत्री व काबीना मंत्री भी हैं तो पक्ष व विपक्ष के सिटिंग विधायक भी।
यही नहीं छोटी सरकार (नगर निगम) के मेयर व पार्षदों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। बात अगर देहरादून नगर निगम के अंतर्गत आने वाली छह विस सीटों की ही करें तो यहां पर वार्डों के पार्षद तथा छावनी व नगर पालिका परिषद के सभासद भी कहीं न कहीं किंगमेकर की भूमिका में खड़े हैं।
इन पार्षदों व सभासदों की संख्या 100से अधिक है। जबकि ग्रामीण पृष्ठभूमि वाली चार (सहसपुर विस का आधा हिस्सा भी) अन्य विस सीटों पर प्रधान से लेकर जिला पंचायत सदस्य तक बतौर किंगमेकर प्रत्याशियों के पीछे खड़े हैं।
पार्षद से लेकर सभासद, प्रधान व जिला पंचायत अध्यक्ष व सदस्य की रणनीतिक भूमिका किस प्रत्याशी को राजा और किसको रंक बनाने में कामयाब होती है यह तो आगामी 14 फरवरी को होने वाले मतदान और 1 मार्च को चुनाव नतीजे सामने आने के बाद ही साफ हो पायेगा।
लेकिन इससे पहले सियासी दंगल में उतरे प्रत्याशियों में नगर निगम के पार्षद से लेकर गांव के प्रधान व बीडीसी मेंबर तक को अपने साथ खड़ा करने की होड़ लगी हुई है। दिलचस्प यह भी कि अभी तक जिन पार्षदों, सभासदों व प्रधानों से छत्तीस का आंकड़ा रहा है उनको मनानी में भी पूरी ताकत प्रत्याशियों द्वारा झोंकी जा रही है।
वर्तमान में देहरादून नगर निगम के अंतर्गत आने वाले 100 वार्ड छह विधानसभा सीटों रायपुर, कैंट, राजपुर, धर्मपुर, मसूरी व सहसपुर में बंटे हुए हैं। सबसे ज्यादा वार्ड राजपुर विस क्षेत्र के अंतर्गत हैं।
जबकि कैंट विस क्षेत्र में भी 13 वार्ड नगर निगम के और चार वार्ड छावनी परिषद गढ़ी के शामिल हैं। धर्मपुर विस क्षेत्र में नगर निगम के 12 वार्ड और क्लेमेंटटाउन कैंट के सात वार्ड हैं। इसी तरह मसूरी विस क्षेत्र में नगर निगम के पांच और छावनी परिषद गढ़ी व लंढौर के दस वार्ड व नगर पालिका परिषद के ग्यारह वार्ड शामिल हैं।
इसी तरह रायपुर व सहसपुर में भी नगर निगम के दो दर्जन से अधिक वार्ड हैं। नगर निगम का विस्तार होने के बाद गांवों की जगह इन वार्डों का गठन हुआ था। इस तरह देखा जाए तो इन छह विस सीटों में नगर निगम, छावनी परिषद व नगर पालिका परिषद के 100 से अधिक पार्षद व सभासद किंगमेकर की भूमिका में हैं।
पूर्व मेयर, डिप्टी मेयर व सभासद भी आजमा रहे भाग्य
धर्मपुर विस सीट से इस बार नगर निगम देहरादून के पूर्व मेयर व सिटिंग विधायक चमोली बतौर भाजपा प्रत्याशी फिर मैदान में हैं। उनका मुकाबला कांग्रेस के पूर्व काबीना मंत्री दिनेश अग्रवाल के साथ ही भाजपा से बगावत कर मैदान में उतरे वीर सिंह पंवार व अन्य प्रत्याशियों से है। वहीं रायपुर विस सीट से नगर निगम में डिप्टी मेयर रह चुके उमेश शर्मा काऊ भी तीसरी बार भाजपा प्रत्याशी के तौर पर मैदान में खड़े हैं।
उन्हें भी कांग्रेस के प्रत्याशी हीरा सिंह बिष्ट, आप के नवीन पिरशाली व दूसरे प्रत्याशियों से टक्कर मिलनी स्वाभाविक है। नगर निगम में दो—तीन बार पार्षद रहे व पूर्व विधायक राजकुमार भी राजपुर आरक्षित सीट से बतौर कांग्रेस प्रत्याशी मैदान में खड़े हैं। उनका सीधा मुकाबला भाजपा के प्रत्याशी सिटिंग विधायक खजान दास से है।
मसूरी सीट से भाजपा प्रत्याशी व कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी और कांग्रेस प्रत्याशी गोदावरी थापली का सियासी वास्ता भले ही किसी नगर निगम, पालिका व छावनी परिषद से न रहा हो। लेकिन उनके पीछे भी निगम, पालिका व छावनी के पार्षद/सभासद भी किंगमेकर बनकर खड़े हैं।
विस चुनाव की गहमागहमी में कैंट विधानसभा में भी पार्षदों व सभासदों की भूमिका अहम मानी जाती है। इस सीट से खुद नगर निगम के मेयर सुनील उनियाल गामा भाजपा से टिकट मांग रहे थे।
इसके इत्तर जनपद के अंतर्गत आने वाली चार सीटें डोईवाला, ऋषिकेश, सहसपुर व विकासनगर ग्रामीण पृष्ठभूमि के साथ ही नगर निगम व नगर पालिका के वार्डों की मिश्रण वाली सीटें हैं। जबकि चकराता विस सीट ग्रामीण पृष्ठभूमि व छावनी परिषद के वार्डों की मिश्रण वाली सीट है।
ऐसे में इन सीटों पर भी बीडीसी मेंबर से लेकर ग्राम प्रधान तथा वार्डों के पार्षद व सभासद भी अहम भूमिका में प्रत्याशियों के पीछे खड़े हैं। बहरहाल, लोकतंत्र का पर्व है और यहां जनता ही जर्नादन है। सियासत के मैदान में भाग्य आजमाने वाले प्रत्याशियों की तकदीर का फैसला भी जनता (मतदाता) को करना है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि वार्डों के पार्षद-सभासद और गांव के प्रधान अपने क्षेत्र के मतदाताओं को किस तरह अपने साथ खड़ा कर अपने-अपने समर्थक प्रत्याशी का राजतिलक कराने में कहां तक कामयाब हो पाते हैं।
निगम में भाजपा का दबदबा, कांग्रेस विपक्ष में
100 वार्डों वाले नगर निगम देहरादून में इस बार बोर्ड भाजपा का है। जबकि कांग्रेस विपक्ष में है। वहीं छावनी परिषद क्लेमेंटाउन व गढ़ी में भी भाजपा का दबदबा था। कुछ समय पहले छावनी परिषदों का कार्यकाल खत्म होने के बाद फिलहाल यहां एक-एक ही सभासद मनोनीत हैं।
नगर निगम के अंतर्गत आने वाले वार्डों में पार्षद ऐसा चुना हुआ जनप्रतिनिधि होता है जिसका सीधा संवाद वार्ड के लोगों से बना रहता है। क्षेत्र की हर छोटी-बड़ी जनसमस्या की जानकारी पार्षद को होती है। इसलिए वार्ड में रहने वाले हर परिवार को वह नजदीक से जानते हैं। ऐसे में विस चुनाव के दौरान पार्षद की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।