- पांच राज्यों में से सर्वाधिक सियासी दांवपेंच यूपी में
- यूपी फतह करने से लोकसभा चुनाव की राह होगी आसान
प्रमोद झा, नई दिल्ली।
विकास के बल पर उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज रहने का दंभ भर रही डबल इंजन सरकार का आत्म-विश्वास शायद डगमगाने लगा है। क्योंकि देश के पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का सबसे ज्यादा फोकस यूपी पर ही है। हो भी क्यों ना, आबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा सूबा जो ठहरा।
यही वजह है कि चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश में सात चरणों में मतदान करवाने का एलान किया है। अव्वल तो यह कि भीड़भाड़, धक्कापेल से बचने के लिए फिलवक्त रैलियों और रोड शो पर रोक है। आखिर कोरोना के कहर से लोगों को बचाने की जिम्मेदारी भी तो है।
उत्तर प्रदेश में यूरोप की सबसे घनी आबादी वाले तीन प्रमुख देश जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस से ज्यादा लोग बसते हैं। तकरीबन 24 करोड़ की आबादी वाले इस सूबे का शायद ही ऐसा कोई जिला हो जिसकी आबादी 10 लाख से कम हो, जबकि कुछ जिलों की आबादी 50 लाख से भी अधिक है। लिहाजा, चुनाव होंगे तो भीड़ जुटना लाजिमी है। क्योंकि यह लोकतंत्र का महापर्व जो ठहरा, जिसमें लोगों के जोश से ही उनकी जीत का अनुमान लगाया जाता है।
मगर, कोरोना महामारी चुनावी माहौल में खलल डाल रही है। इसके खौफ से राजनीतिक दल इस समय ज्यादा खौफजदा हैं। विपक्ष भी कोरोना को लेकर किसी प्रकार की बयानबाजी करके पचडे़ में नहीं पड़ना चाहता है और फरमान जब चुनाव आयोग का है तो उसे हर हाल में मानना ही पड़ेगा।
हालांकि, जिन्हें न तो चुनाव कराना है और न ही चुनावी मैदान में उतरना है, बस घर बैठे जुगाली करना है उनको इन जरूरी उपायों में भी भाजपा को फायदा होता दिख रहा है। ऐसे पोल पंडित समझते हैं कि जब रैलियां आभासी होंगी तो इसका वास्तविक फायदा भाजपा को ही मिलेगा, क्योंकि उसका नेटवर्क किसी भी दल से ज्यादा ताकतवर है।
वहीं, छोटे-छोटे दलों व आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में किस्मत आजमाने वालों के पास तो संसाधन की भी कमी होती है। वहीं, मतदाताओं को टेक्नोफ्रेंडली भी बनाना पड़ेगा। हालांकि, सपाइयों का दावा है कि उनके मुखिया अखिलेश यादव अपने पिछले शासन काल में लैपटॉप बांटकर अपने मतदाताओं को पहले ही टेक्नो-फ्रेंडली बना चुके हैं।
कोरोना को लेकर चुनावी सभाओं पर यदि इसी प्रकार की पाबंदी बनी रही तो आभासी रैली से भी वास्तविक फायदा उठाने की भरपूर कोशिश में जुटे सपाइयों को रेलमपेल करने वाली भीड़ नहीं देख पाने का मलाल जरूर रहेगा। विगत दिनों चुनावी चश्मे से रैलियों को देखने वालों की मानें तो सपा प्रमुख की रैली में भारी भीड़ जुटती थी, जिससे सत्ताधारी दल का विश्वास हिलने लगा था।
हालांकि, उनका यह भी मानना है कि सात चरणों में यूपी में मतदान होने से इस भरोसे को मजबूत करने का मौका मिलेगा क्योंकि भाजपा के लिए यूपी में जीत हासिल करना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। वैसे यूपी विधानसभा की 403 सीटों पर इससे पहले ही सात ही चरणों में चुनाव हुए थे, क्योंकि इससे कम में संभव नहीं है। दीगर बात है कि पंजाब में 117 विधानसभा सीटों पर एक चरण में चुनाव पूरा हो जाएगा, जबकि यूपी के मुकाबले सीटों की संख्या एक चौथाई से ज्यादा है।
गौरतलब है कि उत्तराखंड और मणिपुर पर्वतीय प्रांत हैं जहां चुनावकर्मियों और सुरक्षा बलों की तैनाती में मुश्किलें आती हैं। लिहाजा, मणिपुर की 60 सीटों पर मतदान दो चरणों में होंगे। वहीं, उत्तराखंड विधानसभा की 70 सीटों पर एक ही चरण में मतदान होगा।
वहीं, गोवा में सभी 40 सीटों पर एक ही चरण में मतदान होगा। चुनाव कहां कितने चरण में करवाए जाएंगे, यह चुनाव आयोग का फैसला होता है। इसलिए इस पर टीका-टिप्पणी करना उचित नहीं है। लेकिन, दिल्ली की सत्ता का द्वार उत्तर प्रदेश से खुलता है, लिहाजा देश और प्रदेश की सरकार में काबिज दल हर हाल में यूपी विधानसभा जीतने की कोशिश करेगा।
हालांकि, राष्ट्रीय स्तर के मीडिया के ओपिनियन पोल के मुताबिक भाजपा पांच में से चार राज्यों में दोबारा सत्ता में वापसी कर रही है, लेकिन यह बात कई पोल पंडितों के गले नहीं उतर रही है। उनका मानना है कि पंजाब में तो भाजपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन उत्तराखंड में वापसी आसान नहीं है। वहीं, गोवा और मणिपुर में ज्यादा जोर लगाने की जरूरत इसलिए नहीं लगती है वहां येन-केन प्रकारेण भाजपा सरकार बना ही लेगी।
यही वजह है कि भाजपा और इसके सहयोगी संगठनों ने पूरा जोर यूपी को जीतने में लगा दिया है। उधर, कांग्रेस अपने संगठन को मजबूत कर रही है, लेकिन उसके पास अब तक चुनावी बस्ता लगाने वाला दस्ता पूरी तरह नहीं हो पाया है, जबकि बहुजन समाज पाटी भी वैसा कुछ दमखम नहीं दिखा रही है। ऐसे में यूपी विधानसभा चुनाव दो-ध्रुवीय मुकाबला बनता दिख रहा है।
मुकाबल जब दो-ध्रवीय होगा तो कब किसका पलड़ा भारी होगा, यह कहना मुश्किल है। लिहाजा, भाजपा यूपी विधानसभा चुनाव जीतने की जुगत में जुटी हुई है और सूबे के मतदाताओं को रिझाने के लिए विकास का प्रकाश दिखाने के साथ-साथ सभी समीकरणों को साधने की कोशिश कर रही है।
उत्तर प्रदेश में यूरोप की सबसे घनी आबादी वाले तीन प्रमुख देश जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस से ज्यादा लोग बसते हैं। तकरीबन 24 करोड़ की आबादी वाले इस सूबे का शायद ही ऐसा कोई जिला हो जिसकी आबादी 10 लाख से कम हो, जबकि कुछ जिलों की आबादी 50 लाख से भी अधिक है।
लिहाजा, चुनाव होंगे तो भीड़ जुटना लाजिमी है। क्योंकि यह लोकतंत्र का महापर्व जो ठहरा, जिसमें लोगों के जोश से ही उनकी जीत का अनुमान लगाया जाता है। मगर, कोरोना महामारी चुनावी माहौल में खलल डाल रही है।
इसके खौफ से राजनीतिक दल इस समय ज्यादा खौफजदा हैं। विपक्ष भी कोरोना को लेकर किसी प्रकार की बयानबाजी करके पचडे़ में नहीं पड़ना चाहता है और फरमान जब चुनाव आयोग का है तो उसे हर हाल में मानना ही पड़ेगा।
हालांकि, जिन्हें न तो चुनाव कराना है और न ही चुनावी मैदान में उतरना है, बस घर बैठे जुगाली करना है उनको इन जरूरी उपायों में भी भाजपा को फायदा होता दिख रहा है। ऐसे पोल पंडित समझते हैं कि जब रैलियां आभासी होंगी तो इसका वास्तविक फायदा भाजपा को ही मिलेगा, क्योंकि उसका नेटवर्क किसी भी दल से ज्यादा ताकतवर है।
वहीं, छोटे-छोटे दलों व आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में किस्मत आजमाने वालों के पास तो संसाधन की भी कमी होती है। वहीं, मतदाताओं को टेक्नोफ्रेंडली भी बनाना पड़ेगा। हालांकि, सपाइयों का दावा है कि उनके मुखिया अखिलेश यादव अपने पिछले शासन काल में लैपटॉप बांटकर अपने मतदाताओं को पहले ही टेक्नो-फ्रेंडली बना चुके हैं।
कोरोना को लेकर चुनावी सभाओं पर यदि इसी प्रकार की पाबंदी बनी रही तो आभासी रैली से भी वास्तविक फायदा उठाने की भरपूर कोशिश में जुटे सपाइयों को रेलमपेल करने वाली भीड़ नहीं देख पाने का मलाल जरूर रहेगा। विगत दिनों चुनावी चश्मे से रैलियों को देखने वालों की मानें तो सपा प्रमुख की रैली में भारी भीड़ जुटती थी, जिससे सत्ताधारी दल का विश्वास हिलने लगा था।
हालांकि, उनका यह भी मानना है कि सात चरणों में यूपी में मतदान होने से इस भरोसे को मजबूत करने का मौका मिलेगा क्योंकि भाजपा के लिए यूपी में जीत हासिल करना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। वैसे यूपी विधानसभा की 403 सीटों पर इससे पहले ही सात ही चरणों में चुनाव हुए थे, क्योंकि इससे कम में संभव नहीं है।
दीगर बात है कि पंजाब में 117 विधानसभा सीटों पर एक चरण में चुनाव पूरा हो जाएगा, जबकि यूपी के मुकाबले सीटों की संख्या एक चौथाई से ज्यादा है।
गौरतलब है कि उत्तराखंड और मणिपुर पर्वतीय प्रांत हैं जहां चुनावकर्मियों और सुरक्षा बलों की तैनाती में मुश्किलें आती हैं।
लिहाजा, मणिपुर की 60 सीटों पर मतदान दो चरणों में होंगे। वहीं, उत्तराखंड विधानसभा की 70 सीटों पर एक ही चरण में मतदान होगा। वहीं, गोवा में सभी 40 सीटों पर एक ही चरण में मतदान होगा। चुनाव कहां कितने चरण में करवाए जाएंगे, यह चुनाव आयोग का फैसला होता है। इसलिए इस पर टीका-टिप्पणी करना उचित नहीं है। लेकिन, दिल्ली की सत्ता का द्वार उत्तर प्रदेश से खुलता है, लिहाजा देश और प्रदेश की सरकार में काबिज दल हर हाल में यूपी विधानसभा जीतने की कोशिश करेगा।
हालांकि, राष्ट्रीय स्तर के मीडिया के ओपिनियन पोल के मुताबिक भाजपा पांच में से चार राज्यों में दोबारा सत्ता में वापसी कर रही है, लेकिन यह बात कई पोल पंडितों के गले नहीं उतर रही है। उनका मानना है कि पंजाब में तो भाजपा के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन उत्तराखंड में वापसी आसान नहीं है। वहीं, गोवा और मणिपुर में ज्यादा जोर लगाने की जरूरत इसलिए नहीं लगती है वहां येन-केन प्रकारेण भाजपा सरकार बना ही लेगी।
यही वजह है कि भाजपा और इसके सहयोगी संगठनों ने पूरा जोर यूपी को जीतने में लगा दिया है। उधर, कांग्रेस अपने संगठन को मजबूत कर रही है, लेकिन उसके पास अब तक चुनावी बस्ता लगाने वाला दस्ता पूरी तरह नहीं हो पाया है, जबकि बहुजन समाज पाटी भी वैसा कुछ दमखम नहीं दिखा रही है। ऐसे में यूपी विधानसभा चुनाव दो-ध्रुवीय मुकाबला बनता दिख रहा है।
मुकाबल जब दो-ध्रवीय होगा तो कब किसका पलड़ा भारी होगा, यह कहना मुश्किल है। लिहाजा, भाजपा यूपी विधानसभा चुनाव जीतने की जुगत में जुटी हुई है और सूबे के मतदाताओं को रिझाने के लिए विकास का प्रकाश दिखाने के साथ-साथ सभी समीकरणों को साधने की कोशिश कर रही है।