गजब: अब शोध पत्र छपाने पर भी नोटिस दे रही सरकार
हाइड्रो प्रोजेक्टों पर चेताने वाला एक शोध पत्र साइंस जर्नल में छपना प्रदेश सरकार को नागवार गुजरा
- नोटिस में पछा यदि लेख में प्रकट किए गए विचार निजी तो लेख में लेखकों के विभाग का उल्लेख क्यों
- राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिशासी निदेशक डॉ. पीयूष रौतेला समेत पांच लोगों को नोटिस
देहरादून। गजब है। अब शोध पत्र प्रकाशित होने पर सरकार नोटिस दे रही है। मामला आपदा प्रबंधन विभाग का है। राज्य आपदा
प्रबंधन प्राधिकरण के अधिशासी निदेशक
डॉ. पीयूष रौतेला समेत पांच लोगों का हिमालयी क्षेत्रों में जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण पर चेताने वाला एक शोध पत्र ‘जर्नल ऑफ एनवायरनमेंट एंड अर्थ साइन्सेज’ में छपना प्रदेश सरकार को नागवार गुजरा और आपदा और पुनर्वास विभाग के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी (प्रशासन) जितेंद्र कुमार सोनकर ने डॉ. रौतेला समेत उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के प्रभारी अधिशासी अधिकारी राहुल जुगराण, वरिष्ठ परामर्शदाता डॉ. गिरीश चंद्र जोशी, भू-वैज्ञानिक सुशील खंडूडी़ और ग्राम्य विकास विभाग में यूएनडीपी की जीआईएस कंसल्टेंट सुरभि कुंडलिया को कारण बतांओ नोटिस जारी कर दिया।
28 दिसंबर को जारी इस नोटिस के बाबत अधिकांश नोटिस पाने वालों का कहना है कि वे 25 दिसंबर से अवकाश पर हैं और छुट्टी से लौटने पर नोटिस का जवाब दाखिल करेंगे।
नोटिस में कहा गया है कि एक अंग्रेजी दैनिक में 21 दिसंबर 2021 को जर्नल ऑफ एनवायरनमेंट एंड अर्थ साइन्सेज में अक्टूबर में प्रकाशित रिसर्च पेपर के हवाले से एक खबर छपी है। सोनकर ने शोध लेख के पांचों लेखकों से पूछा है कि लेख में प्रकट किए गए विचार उनके निजी हैं या सरकारी ।
यदि लेख में प्रकट किए गए विचार निजी हैं तो लेख में लेखकों के विभाग का उल्लेख क्यों है और यदि सरकारी विचार हैं तो लेखकों ने किस सक्षम सरकारी प्राधिकारी से इस रिसर्च पेपर को छपवाने की अनुमति ली थी।
वैसे बता दें कि जर्नल ऑफ एनवायरनमेंट एंड अर्थ साइन्सेज एक वैज्ञानिक शोध जर्नल है। इसमें छपा शोध पत्र कहता है कि किसी भी परियोजना के निर्माण से पहले खतरे का आकलन , उस क्षेत्र में पूर्व में हुई आपदाओं को ध्यान में रख कर किया जाना चाहिए और यह हिमालयी क्षेत्र में परियोजना निर्माण करने के लिए कानूनन बाध्यकारी होना चाहिए।
ऐसे खतरों के आकलन वाली रिपोर्टों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। शोध पत्र कहता है कि इससे होगा यह कि बीमा कंपनियों, असुरक्षित योजनाओं के बीमे पर धन नहीं लगाएंगी और तब आपदा संभावित इस क्षेत्र में आपदा के खतरे से सुरक्षित परियोजनाएं ही बनेंगी।
शोध पत्र कहता है कि जलविद्युत परियोजनाओं के लिए यह बाध्यकारी होना चाहिए कि वे पूर्व चेतावनी तंत्र के लिए आंकड़ा और संसाधन मुहैया करवाएं।
शोध कहता है कि जलविद्युत परियोजनाओं और अन्य ढांचागत परियोजनाओं के हिमालयी क्षेत्र पर दीर्घकालीन प्रभाव नकारात्मक ही होंगे।