सुशील उपाध्याय
ये विज्ञापन बेहद प्रभावपूर्ण है कि गूगल से कुछ भी पूछें, वह सब कुछ बताने में सक्षम है। जरा ठहरिए, ढोकला बनाने या किसी मिठाई की दुकान का रास्ता पूछने की बात अलग है, लेकिन भाषा के संदर्भ में कोई मानक और प्रामाणिक बात पूछना चाहते हैं तो थोड़ा रुक जाइए।
ऐसा बिल्कुल नहीं है कि आप गूगल से भाषा, व्याकरण अथवा अनुवाद से सम्बंधित कोई जानकारी मांगे और वह एकदम सही-सही बता दे। इसकी संभावना अभी कमजोर है।
जहां तक शब्दों के अर्थ बताने की बात है, उसकी प्रमाणिकता पर अब ज्यादा संदेह नहीं है। दुनिया की किसी भी भाषा के शब्दों का अर्थ आसानी से गूगल बता सकता है।
अलबत्ता, बहुत छोटी भाषाओं और बोलियों को अपवाद माना जा सकता है क्योंकि अभी उनकी डिक्शनरी तैयार नहीं हुई हैं।
वर्ष 2020 और 2021 में यूजीसी-नेट, संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) और विभिन्न राज्यों के चयन आयोगों में कुछ ऐसे मामले सामने आए, जिनमें अनुवाद संबंधी हास्यास्पद गलतियां की गई थी।
इनके पीछे गूगल द्वारा किए गए मशीनी अनुवाद को जिम्मेदार माना गया। (यहां हम गूगल ट्रांसलेशन टूल्स और उसके जैसे दूसरे निशुल्क अनुवाद प्लेटफार्म को संयुक्त रुप से गूगल संज्ञा से ही संबोधित कर रहे हैं।) ऑनलाइन अनुवाद करने वाले इन सभी प्लेटफार्म की कुछ स्पष्ट सीमाएं हैं।
जब समान प्रकृति की भाषाओं के साधारण वाक्यों का अनुवाद किया जाता है तो वह अनुवाद लगभग मानक स्तर का होता है, लेकिन जब अलग भाषा परिवारों की भाषाओं के बीच अनुवाद की कोशिश की जाती है तो उसे औसत अनुवाद भी नहीं माना जा सकता है।
मसलन अंग्रेजी और जर्मन के बीच अच्छा मशीनी अनुवाद हो सकता है, लेकिन हिंदी और चीनी (मंडारिन) के बीच अच्छा मशीनी अनुवाद अभी सम्भव नहीं है।
अनुवाद के लिए अभी तक जो मशीनी संसाधक उपलब्ध हैं, उनसे शाब्दिक अनुवाद तो किया जा सकता है, लेकिन वे विषय की पृष्ठभूमि और साम्य के अनुरूप शब्दों का चयन करने में समर्थ नहीं हैं।
इसी कारण अनूदित सामग्री अपने मूल कंटेंट से बहुत दूर हो जाती है। उदाहरण के लिए अभी हिंदी-अंग्रेजी अनुवाद के संदर्भ में ऐसी एप्लीकेशन अथवा अनुवाद प्लेटफार्म उपलब्ध नहीं हैं, जो अपने स्तर पर यह तय कर सकें कि अंग्रेजी के लैंडलॉर्ड शब्द का किस स्थान पर ‘भू-स्वामी’ और किस स्थान पर ‘जमींदार’ अनुवाद किया जाना है।
यही स्थिति कैपिटल शब्द के लिए भी है। कोई भी सामान्य अनुवादक कंटेंट को देखकर यह तय कर लेगा कि कैपिटल शब्द का अनुवाद ‘पूंजी’ किया जाना है अथवा ‘राजधानी’।
इसी प्रकार रिजर्व शब्द का अनुवाद ‘भंडार’ होना है अथवा ‘संचित/संचय’ या फिर ‘आरक्षित’, गूगल उसे तय करने में समर्थ नहीं है। वाणिज्य में एक शब्द आता है, ग्रीन-वाशिंग। इसका अर्थ है’ किसी उत्पाद को उसकी वास्तविकता से ज्यादा नैतिक दिखाया जाना है। जबकि मशीनी अनुवाद के दौरान ग्रीनवाशिंग का अर्थ ‘हरित धुलाई’ दिख सकता है।
कॉमर्स से ही जुड़ा हुआ एक और शब्द है, माइनॉरिटी इंटरेस्ट। इसका शाब्दिक अनुवाद करें तो यह ‘अल्पसंख्यक कल्याण’ हो जाएगा, लेकिन कॉमर्स में इसे ‘अल्पमत-हित’ के रूप में ग्रहण किया जाता है।
यूजीसी-नेट के एग्जाम में प्लांट शब्द का अनुवाद पौधा कर दिया गया था। जबकि यह शब्द औद्योगिक विकास से संबंधित वाक्य में मौजूद था। ‘स्टील प्लांट’ का अनुवाद ‘इस्पात का पौधा’ देखकर सिर पीटने का ही मन करेगा। वर्ष 2021 की यूपीएससी की एक परीक्षा में अंग्रेजी में दिए गए प्रश्नों का हिंदी अनुवाद करते समय सूत्र कणिका, प्रक्षादित कार्बन, तंत्रिका आवसी, शेषमूलक, वज्रशल्क जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया।
(इस पर अमर उजाला के पोर्टल पर एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की गई है।) ये शब्द सब आसानी से किसी डिक्शनरी में भी नहीं मिलेंगे क्योंकि ये सामान्य तौर पर किसी डिक्शनरी का हिस्सा होते ही नहीं है, बल्कि ये भारत के वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा तैयार कराए गए पारिभाषिक शब्द हैं।
पारिभाषिक शब्दों के प्रयोग के संदर्भ में कोई भी अनुवादक आसानी से यह निर्धारण कर लेता है कि इनका प्रयोग कहां किया जाना है और कहां नहीं, लेकिन अभी मशीनी अनुवाद उस स्थान पर नहीं है जो यह तय कर सके की प्लांट शब्द बाटनी में ‘पौधा’ होता है जबकि औद्योगिक संदर्भ में ‘औद्योगिक इकाई’ होगा।
कमीशन और लॉयल्टी शब्द को यदि कॉमर्स विषय के दायरे से बाहर ले जाकर देखें तो इनके ‘आयोग’ और ‘वफादारी’ अर्थ में बदलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। यहां समझने की बात यह है कि वर्तमान में उपलब्ध सबसे बेहतरीन अनुवाद संसाधक भी संयुक्त और मिश्रित वाक्यों का मानक अनुवाद करने की स्थिति में नहीं हैं।
इस संदर्भ में बालेन्दु शर्मा दाधीच ने अपने एक लेख में लिखा, ” मशीनी अनुवाद मानवीय मेधा और तर्क−शक्ति के आगे हमेशा नतमस्तक ही रहेगा। लेकिन मशीन के पीछे भी इंसानी दिमाग ही है जो प्रयास करना नहीं छोड़ता। यही वजह है कि अंग्रेजी से हिंदी और हिंदी से अंग्रेजी अनुवाद सुविधा में धीरे−धीरे, क्रमिक सुधार आ रहा है। लेकिन ये अनुवाद कब विश्वसनीयता के स्तर तक पहुंचेगे, कहा नहीं जा सकता। इस मायने में हाल ही में जुड़ी नई भाषाओं की स्थिति और भी कमजोर प्रतीत होती है।
इस बात को खुद गूगल भी महसूस करता है और इसीलिए उसने अपने ब्लॉग में लिखा है कि पश्चिमी भाषाओं और भारतीय भाषाओं में वाक्य विन्यास का ढांचा अलग−अलग है और इसीलिए उनके बीच आपस में अनुवाद टेढ़ी खीर है। इसके मुकाबले में यूरोपीय भाषाओं के बीच आपसी अनुवाद अपेक्षाकृत ज्यादा सटीक हो जाते हैं क्योंकि उनका व्याकरणिक ढांचा काफी हद तक मिलता−जुलता है। मशीन अनुवाद की दुनिया में यह एक मान्य तथ्य है।”
वस्तुतः यह कहना गलत नहीं होगा कि जो अनुवादक मशीनी अनुवाद पर जरूरत से ज्यादा भरोसा कर रहे हैं, उनके अनुवाद सार्थक होने की बजाय अनर्थकारी होने की आशंका से भरे हुए होते हैं। हालांकि, मशीनी अनुवाद की उपयोगिता को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। यह संभव है कि निकट भविष्य में ट्रांसलेशन टूल्स किसी भी शब्द का उसकी पृष्ठभूमि और विषय साम्य के साथ जोड़ते हुए सार्थक अनुवाद कर सकें। फिलहाल, उस विज्ञापन पर भरोसा करना मुश्किल है जो कहता है कि गूगल से कुछ भी पूछिये, हर बात का जवाब मिलेगा।