लद्दाख एवं नैनीताल की वेधशाला भविष्य हेतु दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए संभावनाओं से भरपूर

नैनीताल। नैनीताल की देवस्थल स्थित एशिया की दूसरी सबसे बड़ी 3.6 मीटर व्यास की ऑप्टिकल वेधशाला एवं लद्दाख में लेह के निकट हान्ले में स्थित भारतीय खगोलीय वेधशाला-आईएओ सहित पहाड़ की वेधशालाएं दुनिया भर में संभावनाओं से भरपूर वेधशालाएं स्थल बन रही हैं। हाल के एक अध्ययन में यह कहा गया है।
ऐसा इसलिये कि यहां की रातें बहुत साफ होती हैं, प्रकाश से उत्पन्न होने वाला प्रदूषण नाममात्र को होता है, हवा में तरल बूंदों की मौजूदगी के साथ अत्यंत शुष्क परिस्थितियां हैं और मानसून से किसी प्रकार की बाधा नहीं आती।
उल्लेखनीय है कि दुनिया भर के खगोल-विज्ञानी लगातार दुनिया में ऐसे आदर्श स्थानों की तलाश में हैं, जहां वे अपनी अगली विशाल दूरबीन लगा सकें, जो कई वर्षों के जमा किये हुये स्थानीय मौसमी आंकड़ों के आधार पर लगाई जायें।
इसी कड़ी में भारत के भारतीय तारा भौतिकी संस्थान (आईआईए) बेंगलुरू के डॉ. शांति कुमार सिंह निंगोमबाम और आर्यभट्ट वेधशाला विज्ञान अनुसंधान संस्थान, नैनीताल के वैज्ञानिकों ने ने आठ ऊंचे स्थान पर स्थित लद्दाख की हान्ले और मेराक स्थित भारतीय खगोलीय वेधशाला, देवस्थल नैनीताल की वेधशाला, चीन के तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र की अली वेधशाला, दक्षिण अफ्रीका की लार्ज टेलिस्कोप, टोक्यो यूनिवर्सटी, अटाकामा ऑबजर्वेटरी, चिली, पैरानल और मेक्सिको की नेशनल एस्ट्रॉनोमिकल ऑबजर्वेटरी आदि वेधशालाओं के ऊपर रात के समय बादलों के जमघट का विस्तार से अध्ययन किया।
इन वेधशालाओं में नैनीताल की देवस्थल सहित तीन भारत की वेधशालायें भी थीं। अनुसंधानकर्ताओं ने एवं फोटोमेट्री और स्पेक्ट्रोस्कोपी जैसे उपकरण विभिन्न खगोलीय उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए पुनर्विश्लेषित आंकड़ों के साथ ही पिछले 41 वर्षों के दौरान किये जाने वाले मुआयनों एवं उपग्रह से जुटाये गये 21 वर्ष के आंकड़ों को शामिल करते हुए यह निर्णय निकाला है कि हान्ले चिली के अटाकामा रेगिस्तान जितना ही शुष्क है और देवस्थल से कहीं अधिक सूखा है। वहां वर्ष में 270 रातें बहुत साफ होती है। इसलिए यह स्थान इंफ्रारेड और सब-एमएम ऑप्टिकल एस्ट्रोनॉमी के लिये सर्वथा उचित है।
वैज्ञानिकों ने यह भी देखा कि अन्य स्थानों की तुलना में देवस्थल में साफ रातें ज्यादा होती हैं, लेकिन वहां साल में तीन महीने बारिश होती है। बहरहाल, आइएओं- हान्ले में रातों को 2 मीटर के हिमालय चंद्र दूरबीन (एचसीटी) से अवलोकन बिना मानसून की बाधा के साल भर किया जा सकता है। रातें ज्यादा साफ हैं, प्रकाश का न्यूनतम प्रदूषण है, पानी की बूंदे मौजूद हैं और अत्यंत शुष्क वातावरण है। साथ ही मानसून की कोई अड़चन भी नहीं है।
इसलिये यह क्षेत्र खगोलीय अध्ययन के लिये अगली पीढ़ी के हवाले से पूरी दुनिया के लिये संभावनाओं से भरपूर क्षेत्र बन रहा है। अध्ययन में यह तथ्य भी आया कि भारत के हान्ले, मेराक व देवस्थल तथा चीन के अली में बादलों का जमघट क्रमश: 66-75 प्रतिशत, 51-68 प्रतिशत, 61-78 प्रतिशत और 61-76 प्रतिशत रहता है।

Leave a Reply