तो सूबे में फिर बेलगाम हुई नौकरशाही

उपनल कर्मियों को लेकर बनी सब कमेटी की रिपोर्ट नौकरशाही ने दबाई

  • तीन-तीन कैबिनेट बैठक हो जाने के बावजूद कैबिनेट में पेश न हुई रिपोर्ट
  • एमबीबीएस छात्रों के स्टाइपंड पर चला दी गई दो हजार रुपये की कैंची
  • 15 अगस्त तक लंबित प्रमोशन के मामले निपटाने के निर्देशों का भी पालन नहीं
देहरादून।तो सूबे में नौकरशाही फिर बेलगाम हो गई है। इसके उदाहरण भी सामने आने लगे हैं। हैरत की बात यह है कि जहां मेडिकल छात्रों को  17 हजार रुपये मासिक स्टाइपंड की मुख्यमंत्री की घोषणा  पर  शासन ने दो हजार रुपये की कैंची चला दी और सीएम के मौखिक आदेश के बावजूद नया शासनादेश नहीं हुआ वहां उपनल कर्मियों के मसले को लेकर गठित  कैबिनेट सब-कमेटी की रिपोर्ट तैयार हो जाने के बावजूद नौकरशाही उसे दबाए बैठी है। हैरत यह है कि तब से तीन कैबिनेट बैठक हो चुकी हैं और सरकार हर बार नौकरशाही से रिपोर्ट कैबिनेट में पेश करने को कहती है मगर ऐसा नहीं होता।  खुद कैबिनेट मंत्री और शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल तक मान रहे हैं कि कई सब कमेटियों की रिपोर्ट लंबित हैं और कैबिनेट तक नहीं पहुंच पाई है। 
दरअसल, लंबे आंदोलन के बाद अपने मानदेय सहित कई मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे करीब 2२ हजार उपनल कर्मचारियों से बातचीत के बाद कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की अध्यक्षता में सब-कमेटी गठित की गई थी। यह सब कमेटी काफी पहले अपनी रिपोर्ट दे चुकी है लेकिन नौकरशाह उस रिपोर्ट पर कुंडली मारकर बैठे हैं। बताते हैं कि पिछली कैबिनेट में हरक सिंह रावत और गणेश जोशी ने अफसरों के इस रवैये पर एतराज भी जताया था।  शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल ने कहा कि कैबिनेट ने इसका संज्ञान लेते हुए सख्त लहजे में नौकरशाही के जल्द से जल्द रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए हैं। यही नहीं मुख्यमंत्री के निर्देश पर शासन की तरफ से सभी सचिवों और विभागाध्यक्षों को 15 अगस्त तक लंबित प्रमोशन के मामले निपटाने को कहा गया था लेकिन विभागीय सचिवों-विभागाध्यक्षों की आदतन हीलाहवाली से तमाम प्रमोशन लटका दिए हैं। अब मजबूरन कार्मिक विभाग दोबारा निर्देश जारी करेगा । फाइलों को दबाकर बैठे रहने की नौकरशाही की प्रवृत्ति पर पर उत्तराखंड जनरल ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन अध्यक्ष दीपक जोशी ने कहा कि मुख्यमंत्री और शासन के आदेशों का पालन कई विभागों में नहीं हो रहा। वे पदोन्नति लटका रहे हैं। ऐसे अफसरों की पहचान कर उनकी जवाबदेही तय होनी चाहिए। बहरहाल , अब चंद महीने बाद चुनाव हैं आने वाले दिनों में तय है कि नौकरशाही राजनीतिक नेतृत्व की बातों को लेकर कान में रुई डाल देगा । ऐसे में अगर नौकरशाही की निरंकुशता पर लगाम न लगी तो सरकार के सामने बड़ी मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी।

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