राकेश प्रजापति
अखिल भारतीय स्तर पर तीन साल पहले हुई बाघ गणना में 526 बाघों के साथ पहले स्थान पर काबिज रहकर मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा मिला है। इस साल होने वाली गणना के प्रारम्भिक संकेतों के अनुसार इस बार भी मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट के रूप में मान्यता मिलने की प्रबल संभावना है। वर्ष 2010 और 2014 की गणना में कर्नाटक स्टेट के सर्वाधिक बाघों की संख्या के साथ पहले स्थान पर रहने को छोड़ दें तो मध्यप्रदेश के पास ही पिछले दशक में टाइगर स्टेट का दर्जा रहा है। कई नवाचारों की बदौलत मिला यह मुकामझ्रप्रदेश सरकार ने वन्य-प्राणी संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए कई नवाचारों को लागू किया, जिनकी बदौलत मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट की प्रक्रिया का आधार स्तंभ बना। पिछले डेढ़ दशक में बाघों और अन्य वन्य-प्राणियों के लिए आवास क्षेत्र की सुविधा कराने के लिए संरक्षित क्षेत्रों से 167 ग्रामों का मुकम्मबल स्थान पर पुनर्स्थापन कराया गया। दुर्गम वन क्षेत्रों के अंतर्गत न्यूनतम सुविधाओं के साथ रह रही 15 हजार से ज्यादा परिवार इकाइयों को वनों से बाहर लाया जाकर ग्राम-नगरों में बसाया गया। नतीजा यह हुआ कि वन्य-प्राणियों को व्यवधान रहित स्वछंद रूप से रहवास मिल गया। साथ ही वनवासियों की माली हालत में भी सुधार हुआ। इन तमाम नवाचारों में राज्य सरकार ने 900 करोड़ रूपये की राशि उपलब्ध कराई गई।
टाइगर रिजर्व के अलावा मौजूद हैं बाघ: प्रदेश के बाघ न केवल टाइगर रिजर्व में है बल्कि अन्य क्षेत्रीय वन मण्डलों अपितु भोपाल जैसे बढ़े शहरों की सीमा में भी अन्य प्राणी की तरह विचरण करते पाए जाते हैं। वर्ष 2018 में पन्ना से बाघों का अस्तिव ही समाप्त हो गया था। वन विभाग द्वारा बाघ संरक्षण के लिए सक्रिय पहल की गई, जिसमें बाघों को अन्य संरक्षित क्षेत्रों से लाकर पन्ना टाइगर रिजर्व में पुनर्स्थापित किया गया। पिछले 9 वर्ष की सतत प्रक्रिया के कारण आज पन्ना टाइगर रिजर्व पुराने वैभव की ओर लौट चुका है। यहाँ 20 से ज्यादा वयस्क बाघ और 15 अवयस्क बाघ/शावक मौजूद हैं। सम्पूर्ण पन्ना लैंड स्केप में शावकों सहित तकरीबन 50 बाघ उपलब्ध हैं।
घोरेला मॉडल के रूप में मिली प्रसिध्दि: प्रदेश में वर्ष 2005-06 में बिछड़े अनाथ शावकों को उनके प्राकृतिक रहवास में मुक्त करने की नई पहल की शुरूआत की गई। इससे अनाथ बाघ शावक चिड़िया घर पहुँच जाते थे। उनके वयस्क होते ही प्राकृतिक आवास में मुक्त किया जाना संभव हो सका। कान्हा टाइगर रिजर्व के घोरेला एन्क्लोजर में 9 बाघ शावकों को वयस्क होने पर मुक्त किया जा चुका है। प्रदेश को मिली इस सफलता को पूरी दुनिया में घोरेला मॉडल के रूप में प्रसिद्धि मिली है।
तीन चरण में ऐसे होती है बाघों की गणना: भारत में बाघों की गणना हरेक 4 साल में की जाती है। इसके तीन चरण निर्धारित हैं। प्रथम चरण में बाघों, अन्य मांसाहारी तथा बड़े शाकाहारी प्राणियों के चिन्ह अर्थात उनके पंजों के निशान, उनकी विष्ठा, खरोंच के निशान और उनके द्वारा किए गए शिकार आदि के आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं। इस बाघ ऑकलन को फेस वन कहा जाता है। यह प्रक्रिया एक सप्ताह तक चलती है। वन कर्मचारी इन सातों दिन जंगलों में भ्रमण कर वन्य-प्राणियों की उपस्थिति के चिन्ह पहले तीन दिन और अगले तीन दिन वन्य-प्राणियों की प्रत्यक्ष उपस्थिति की संख्या एकत्रित करते हैं। द्वितीय चरण में वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगशालाओं में बाघ आकलन किया जाता है।
वैज्ञानिक सेटेलाईट द्वारा एकत्र किए गए आँकड़ो का अध्ययन कर बाघ के रहवास क्षेत्र की स्थिति के बारे में आँकड़ों जुटाते हैं। तीसरे चरण में कैमरा ट्रेपिंग की जाकर बाघों की उपस्थिति के चित्र लिए जाते हैं। इन तीन चरणों में मिले आँकड़े और सबूतों के सांख्यिकी विश्लेषण से किसी क्षेत्र में बाघों की संख्या का आकलन निकाला जाता है। अखिल भारतीय बाघ गणना में सम्पूर्ण भारत में तकरीबन 30 हजार बीटो में गणना कार्य किया जाता है। इसमें 9 हजार बीट केवल मध्यप्रदेश में ही मौजूद हैं। यह एक बहुत श्रम साध्य और व्यापक कार्य है। प्रदेश के वन विभाग ने इस चुनौती को अंगीकार करते हुए वर्ष 2017 से अपनी तैयारियों को अंजाम देना शुरू कर दिया। इसके अंतर्गत वन रक्षकों के कई चरण आयोजित कर उन्हें इसके काबिल बनाया गया। इस तरह दक्षतापूर्ण तरीके से दुष्कर कार्य की गणना कराई जाती है।
बाघ है अनोखा वन्य-प्राणी: बाघ सभी को भयभीत करने वाला और शक्तिशाली जन्तु के रूप में जाना जाता है। इसकी दहाड़ और गुर्राहट भयानक के साथ डराने वाली होती है। तीन कि.मी.की रेंज तक इसकी दहाड़ सुनाई देती है। बाघ के पिछले पैर आगे वाले पैरों की तुलना में बढ़े आकार के होते हैं। इससे यह एकबार में 20 से 30 फिट तक की लम्बी छलांग लगा सकता है। बाघ के पैरों का निचला हिस्सा गद्देदारनुमा होता हैं। इस वजह से चुपचाप शिकार के नजदीक तक पहुँच जाता है। बाघ में 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने की क्षमता रहती है। बाघ की विशेषता है कि वह समूह में न रहकर अकेला रहने वाला प्राणी है। प्रजनन काल में ही नर और मादा इकट्ठे होते हैं। शावक का जन्म होने के बाद अपनी माँ के साथ डेढ़ से दो साल तक रहकर शिकार करने की कला में पारंगत होता है। बाघ अपना शिकार बड़ी चतुराई और फुर्तीले अंदाज में और ज्यादाकर रात के समय करता है। सर्वविदित है कि यह झाड़ियों में घात लगाकर पीछे से अचानक शिकार पर हमला करता है। शरीर पर बनी धारियों की वजह से आसानी से झाडियों में घुल-मिल जाता है। यह अपने शिकार में गर्दन को निशाना बनाता है।
टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में उपलब्ध हैं बाघ: प्रदेश का पहला टाइगर रिजर्व 1973 में कान्हा टाइगर बना। अभी प्रदेश में 6 टाइगर रिजर्व हैं। कान्हा, बांधवगढ़, संजय टाइगर रिजर्व, पन्ना, सतपुड़ा और पेंच टाइगर रिजर्व के रूप में मौजूद हैं। इनमें सबसे बड़ा सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और सबसे छोटा पेंच टाइगर रिजर्व है। अभयारण्य के रूप में पचमढ़ी, पनपथा, बोरी, पेंच-मोगली, गंगऊ, संजय- दुबरी, बगदरा, सैलाना, गांधी सागर, करेरा, नौरादेही, राष्ट्रीय चम्बल, केन, नरसिहगढ़, रातापानी, सिंघोरी, सिवनी, सरदारपुर, रालामण्डल, केन घड़ियाल, सोन चिड़िया अभयारण्य घाटीगाँव, सोन घड़ियाल अभयारण्य, ओरछा और वीरांगना दुर्गावती अभयारण्य के नाम शामिल हैं।