नयी दिल्ली: 250 साल में पहली बाद केंद्र सरकार डिफेंस लैंड पॉलिसी में बड़े बदलाव करने जा रही है। मोदी सरकार ने इस पॉलिसी से जुड़े नए नियमों की मंजूरी दे दी है। इसके तहत पब्लिक प्रोजेक्ट के लिए सेना से जो जमीन ली जाएगी उसके बदले उतनी ही वैल्यू के इन्फ्रास्ट्रक्चर (EVI) डेवलपमेंट की इजाजत होगी। यानी डिफेंस से जुड़ी जमीन को उतनी ही वैल्यू की जमीन देने के बदले या बाजार कीमत के भुगतान पर लिया जा सकेगा।
डिफेंस लैंड पॉलिसी में 1765 के बाद पहली बार बदलाव किए जा रहे हैं। उस वक्त ब्रिटिश काल में बंगाल के बैरकपुर में पहली कैंटोनमेंट (छावनी) बनाई गई थी। तब सेना से जुड़ी जमीन को मिलिट्री के कामों के अलावा किसी और मकसद के लिए इस्तेमाल करने पर पाबंदी लगाई गई थी। बाद में 1801 में ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल-इन-काउंसिल ने आदेश दिया था कि किसी भी कैंटोनमेंट का कोई भी बंगला और क्वार्टर किसी ऐसे व्यक्ति को बेचने की इजाजत नहीं होगी जो सेना से नहीं जुड़ा हो।
लेकिन अब सरकार डिफेंस लैंड रिफॉर्म्स पर विचार करते हुए कैंटोनमेंट बिल-2020 को फाइनल करने में जुटी हुई है। ताकि कैंटोनमेंट जोन्स में भी विकास हो सके। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक रक्षा मंत्रालय के अफसरों का कहना है कि मेट्रो की बिल्डिंग, सड़कों, रेलवे और फ्लाइओवर जैसे बड़े पब्लिक प्रोजेक्ट्स के लिए सेना की जमीन की जरूरत है। कैंटोनमेंट जोन में मिलिट्री अथॉरिटी तय करेगी जमीन की रेट।