भारत के जीवन की सांस्कृतिक रेखा है गंगा : भागवत

आरएसएस के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने  संघ के आनुषांगिक संगठन गंगा समग्र की माघ मेला क्षेत्र में चिंतन बैठक में कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि गंगा भारत के जीवन की सांस्कृतिक रेखा है। शासन का सहयोग हो इससे भी समाज की सजगता आवश्यक है। यह कार्य औपचारिक संगठन से नहीं इसके लिए समाज के वेग प्रवाह की आवश्यकता है। यदि समाज सजग हआ तो आधा कार्य वैसे ही हो जाएगा। उन्होने कहा कि भारत की सभी नदियों में गंगा का अंश माना जाता है। गंगा के दोनो किनारों पर आधुनिक समाज निवास करता है। गांव गांव में जाकर उसे निर्मल करने के लिए सभी से आग्रह करना होगा। इसके लिए धैर्यपूर्वक सतत कार्य करना होगा। गंगा निर्मल एवं स्वच्छ हों, श्रद्धापूर्वक समाज में संस्कृति के अनुरूप संकल्प लेकर काम करना होगा। यह जन कल्याण का कार्य है, इसमें आशंका करने की आवश्यकता नहीं। श्री भागवत ने कहा कि गंगा की अविरलता और निर्मलता के आंकड़े कह रहे हैं अभी बहुत प्रयास करना है। नियमित नित्य कार्य करके लक्ष्य तक पहुंचना, अविरल एवं निर्मल गंगा के लिए समाज का सजग करना है। उन्होने कहा कि जिस प्रकार कोरोना में प्राणायाम और काढ़ा, को धैर्य पूर्वक सतत एवं लम्बे समय तक किया गया उसी प्रकार गंगा को भी निर्मल बनाने में लम्बे समय तक धैर्यता पूर्वक कार्य करना होगा। संघ प्रमुख ने कहा कि यह कार्य संतों के आर्शीवाद से होना है, कब होगा, जैसे राम मंदिर निर्माण के बारे में हम नहीं बता कते थे, वैसे ही यह कब होगा नहीं पता। विकासवादी और पर्यावरावादी का विवाद छोड़ हजारों वर्ष की संस्कृति की रक्षा करना ध्येय है। उन्होने कहा कि कि हमें दूसरे के बारे में हेय भावना लेकर कार्य नहीं करना, सभी के साथ सम्भाव की भावना होनी चाहिए। छोटी टोटी बातों की उपेक्षा से हानि होती है। समाज को जितना जगायेंगे काम उतना आसान होता चला जाएगा। गंगा का निरंतर आगे बढाना है न कि घटाना है। इसिलए निरंतर धैर्यता पूर्वक कार्य करते रहना है।

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