रांची: पेट की आग बचपन को छीन लेता है तभी तो जिस हाथ में कलम होनी चाहिए वही हाथ आज कचरे में अपना Looking for the futureभविष्य तलाश रहा है। हम बात कर रहे है 15 वर्षीय पिंटू कुमार की जो मिर्जापुर का रहने वाला है और पिछले 4 वर्षो से श्री बंशीधर नगर प्रखंड के विलासपुर में रहता है और कचरा चुनकर अपना एवं अपने परिवार का पेट पाल रहा है। उसके परिवार में माता पिता एवं 6 भाई बहन है। पूरा परिवार इस कार्य में लगा हुआ है तब जाकर इस परिवार को दो जून की रोटी एवं सर पर छत नसीब हो पाता है। पूरा परिवार अलग अलग घूम कर कचरे की ढेर से प्लास्टिक का समान चुनकर जमा करता है और उसे कबाड़ी के यहां बेचता है। इस कार्य से प्रतिदिन परिवार को दो सौ से पांच सौ रुपये मिल पाते है। कभी कभी तो दो सौ रुपये भी नहीं मिल पाता है। कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन में तो इस परिवार पर आफत टूट पड़ा था। आमदनी ठप हुई तो खाने के भी लाले पड़ गये थे। विभिन्न समाज सेवियों एवं प्रसाशन द्वारा बाटे जा रहे भोजन के पैकेट की बदौलत यह परिवार जिंदा रहा। हालांकि 4 वर्ष पूर्व यहां से आने से पहले भी यह परिवार मिर्जापुर में भी कचरा चुनने का ही कार्य करता था। लेकिन धीरे धीरे वहां भी इस कार्य को करने वालो की संख्या बढ़ी तो आमदनी कम हो गई। पहले केवल माता पिता ही इस कार्य को करते थे लेकिन दोनों की कमाई से भी परिवार चलाना मुश्किल हुआ तो पिंटू सहित सभी भाई बहन भी इसी कार्य में जुट गये। कबाड़ी के जरिये यह परिवार चार वर्ष पूर्व श्री बंशीधर नगर पहुंच गया। तब से इस परिवार का यही आशियाना बन गया है। विलासपुर में एक किराए के मकान में पूरा परिवार रहता है।
क्या कहता है पिंटू
पिंटू से पढ़ाई की उम्र में कचरा चुनने की बात पूछने पर वह बड़े परिपक्वता से कहता है की अंकल जी पढ़ाई तो कर लेंगे लेकिन परिवार का पेट कैसे भरेगा। सब परिवार मिलकर यह कार्य करते है तब जाकर दो जून की रोटी नसीब होती है। यहां कम्पीटिशन कम है तभी हम कुछ कमा ले रहे वर्ना इस कार्य से परिवार का पेट चलना भी मुश्किल है। पिंटू कुमार ने बताया की वह 6 वर्ष की उम्र से कचरा चुनने का कार्य कर रहा है।