पटना : मतगणना के शुरुआती रुझान से उत्साहित महागठबंधन धड़ाम से नीचे आ गिरी। राजनीतिक पंडितों का कोई भी आकलन काम नहीं आया और बिहार में एग्जिट पोल की हवा निकल गई। अब यह सवाल उठता है चुनाव प्रचारों में एनडीए को पानी पिलाने वाले तेजस्वी यादव से आखिर चुक कहां पर हुई।यह बात दीगर है की 243 विधानसभा सीटों पर तेजस्वी यादव इकलौते ऐसे नेता थे जो सबसे ज्यादा सभाएं और रैलियां की। तेजस्वी यादव ने अति उत्साह में आकर सत्तारूढ़ पार्टी एनडीए के 15 साल के कामकाज को सिरे से खारिज कर दिया। जबकि एनडीए सरकार ने महिला अधिकार, बिजली, पानी, सड़क और कानून व्यवस्था के मामले में अच्छा काम किया था। स्वास्थ्य बीमा, प्रधानमंत्री आवास योजना, शौचालय, उज्जवला गैस, जनधन खाता से बिहार के लोगों को काफी लाभ मिला था। इस बार के चुनाव में तेजस्वी का कैंपेन लोगों का भरोसा नहीं जीत पाया।राबडी देवी, लालू यादव के चेहरे को अपने कैंपेन में इस्तेमाल नहीं किया, लेकिन टिकट बंटवारा, नेताओं के असंतोष से लेकर महागठबंधन बनने तक यही मैसेज गया कि चुनाव को लालू कंट्रोल कर रहे हैं। इस चुनाव में तेजस्वी अच्छे नेता तो दिखे लेकिन स्वतंत्र और शक्तिशाली छवि को वह नहीं गढ़ पाए। दूसरी तरफ राजद ने महागठबंधन में कांग्रेस को जरूरत से ज्यादा भाव दे दिया। लेकिन दूसरे छोटे जातीय समीकरण में महत्वपूर्ण सहयोगियों को जगह नहीं मिला। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और विकासशील इंसान पार्टी पहले महागठबंधन में थे बाद में अलग हो गए। जबकि कांग्रेस को उसकी क्षमता के मुताबिक जरूरत से ज्यादा सीटें दे दी गई।कांग्रेस को सीटें ज्यादा मिली और उसके अभियान का दारोमदार तेजस्वी के कंधों पर ही रहा। कांग्रेस ने जमीन से जुड़े उम्मीदवार नहीं उतारे और राजनीतिक वारिसों को टिकट पकड़ा दिया।राष्ट्रीय जनता दल ने अपने बेस वोट में बिखराव को नहीं रोक पाई। कोसी, चंपारण, और सीमांचल में माय समीकरण वोट निर्णायक है। सीमांचल में तो कई सीटें मुस्लिम मतदाता ही निर्णायक हैं। चंपारण और सीमांचल में राजद को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा है। एनडीए ने इन इलाकों में प्रधानमंत्री मोदी, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राजनाथ सिंह जैसे कई दिग्गजों को लेकर सभाएं की और दूसरी तरफ राजद के पास तेजस्वी के अलावा कोई चेहरा ही नहीं था। राजद का पिछड़ने का एक कारण और भी था कि बिहार में दागी छवि के लोगों को दिल खोलकर टिकट दिया। जैसे मोकामा में अनंत सिंह, सहरसा में आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद, शिवहर में आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद, सिवान में मोहम्मद शहाबुद्दीन के करीबियों सहित दर्जनों बड़े बाहुबली पृष्ठभूमि के चेहरे को टिकट देने में से संदेश गया कि सरकार आने पर फिर से इन्हीं लोगों का बोलबाला होगा। उधर एनडीए नेताओं ने अपनी हर रैली में बिहार में जंगलराज लाने की कोशिश बताता रहा। वही महागठबंधन के प्रचार करने के लिए मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी जैसे नेता बिहार नहीं आए राहुल गांधी ने सिर्फ 8 सभाएं कर खानापूर्ति की।अगर वह कांग्रेस की बजाए रालोसपा, वीआईपी को सीटें दी गई होती तो राजद का समीकरण कुछ और हो सकता था। दोनों पार्टियों के पास बिहार का करीब 5 प्रतिशत से ज्यादा वोट बैंक है। हां इतना जरूर हुआ कि वामपंथियों का साथ मिलने से राजद को फायदा मिला। अगर वामदल साथ नहीं होते तो शायद हालत और खस्ता होती।