- भितरघातियों और भाजपा की रणनीति का तोड़ ढूंढने की कोशिश में विपक्ष
- कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं, पर भाजपा की सरकार बचाने की कवायद
मध्यप्रदेश : तीन नवम्बर को 28 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव ने भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के बड़े-बड़े दिग्गजों की रातों की नींद और दिन का चैन छीन रखा है। कांग्रेस विधायक राहुल लोधी का भाजपा में आना कांग्रेस नेतृत्व खासकर पीसीसी अध्यक्ष कमलनाथ की कमजोरी और भाजपा शिविर की चिंताओं को उजागर करता है। सरकार से सड़क पर आई कांग्रेस के पास खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं बचा है, वह भी सिर्फ कमलनाथ की राजनीतिक प्रतिष्ठा इसलिए उसमें हारी हुई बाजी में खुलकर खेलने का रास्ता अख्तियार कर रखा है।
इस उपचुनाव में भाजपा के सामने दो तरफा इज्जत बचाने की चुनौती है। एक तो सरकार की प्रतिष्ठा और संगठन के साख को बरकरार रखना। संघ पहले ही सरकार बचाने के चुनाव से खुद को अलग रखने के संकेत दे चुका है। प्रदेश की सियासत में उपचुनाव के नतीजे भाजपा-कांग्रेस की राजनीति में बहुत निर्णायक होने वाले हैं।
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि चुनाव सरकार बचाने का है? असल में भाजपा कार्यकर्ता के बेमन और मतदाताओं की खामोशी ने सरकार और संगठन को चिंता में डाल रखा है। भाजपा को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर के साथ संगठन और समर्पित कार्यकर्ताओं की शक्ति के चलते जीत का पूरा भरोसा है।
भाजपा के पूर्व विधायक और उनके कट्टर समर्थकों को सरकार और संगठन भरोसे में नहीं ले पाई है। यही वजह है कि जिन क्षेत्रों में कांग्रेस से आए पूर्व विधायक भाजपा के प्रत्याशी बने हैं वहां बगावत और भितरघात के खतरे कम नहीं हो रहे हैं। उपचुनाव की 28 सीटों में से भाजपा के 20 सीटें जीतने की संभावना सरकार और संगठन मानकर चल रहा है। ऐसे में शिवराज सरकार तो बची रहेगी लेकिन भाजपा नेताओं की दूसरी पंक्ति और कार्यकर्ताओं ने सक्रियता नहीं दिखाई तो राहुल लोधी के अलावा कांग्रेस के 2-3 और विधायकों के इस्तीफे भाजपा सरकार को सुरक्षित बनाने में मददगार साबित होंगे? यदि ऐसा होता है तो फिर 2021 की शुरुआत में प्रदेश भाजपा में एक और बड़े बदलाव को देखने के लिए तैयार रहना चाहिए? इसमें भाजपा के कई दिग्गज और भविष्य के बड़े नेता राजनीतिक भविष्य के अंधकार की गहरी खाइयों में अगर गुम हो जाएं तो किसी को हैरत नहीं होनी चाहिए।
पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने भी उपचुनाव वाली सभी 28 सीटों पर टीमें तैनात की हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार ग्वालियर चंबल संभाग की सीटों पर नजर रखने के लिए एक-एक सीट पर दो-दो लोगों की ड्यूटी लगाई गई है। जो पार्टी से जुड़ी अंदरूनी जानकारी के अलावा भाजपा की गतिविधियों की रिपोर्ट भी ऊपर तक पहुंचाते हैं। इस खुफिया रिपोर्ट के आधार पर ही कांग्रेस भाजपा पर तीखे हमले करने में सफल हो रही है। कमलनाथ प्रचार में व्यस्त होने के बावजूद रोजाना स्वयं हर विधानसभा की टीम से संवाद कर रहे हैं और फीडबैक ले रहे हैं। यानी इस बार के उपचुनाव में कमलनाथ की तैयारी संघ और भाजपा के संगठन की तर्ज पर ही चैकस है।
कांग्रेस के भीतर 2021 में काफी कुछ बदलाव के संकेत नजर आने लगे हैं। उपचुनाव के बाद कांग्रेस के पूरे कुनबे को बदलने की तैयारी चल रही है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बाद नए नेतृत्व क्रमश: आगे लाया जाएगा। बीच का रास्ता अपनाते हुए यह दोनों उम्रदराज तजुर्बेकार बुजुर्ग नेताओं की पसंद के युवाओं के हाथ में कमान सौंपने की कवायद दिखेगी। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की गुड बुक में जिन नेताओं के नाम होंगे उनको आगे लाया जाएगा। कुल मिलाकर भाजपा और कांग्रेस को आत्मावलोकन करने का वक्त आ गया है। प्रदेश की जनता को दोनों ही दलों को हल्के में नहीं लेना होगा। वरना वो दिन दूर नहीं जब जनता इनसे इनकी करनी और कथनी पर सवालों की बौछर शुरू कर दे तो इन्हें जवाब देना मुश्किल हो जाएगा!
जनता के गाढ़़ी कमाई पर राजनेताओं की राजनीति और फिर भी जनता के दोनों हाथ रीते और भविष्य अंधकारमय? जनता के पैसों पर राजनेताओं की आलीशान कोठियां और जनता सड़कों पर भूखीं मरे? ये कैसा लोकतंत्र? उसे भी मूलभूत आवश्कताओं की आज भी दरकार है जिसके लिए वह सरकार को टैक्स के रूप में पैसे देती है? बस सभी को आगामी 10 नवम्बर का इंतजार है कि जनता किस के सर विजश्री का सेहरा बांधती है और कौन फिर सड़कों पर खाक छानता नजर आता है।