द्रोह-काल के पथिक

  • पप्पू यादव, आनंद मोहन, मुन्ना शुक्ला आदि खुद को मानते हैं द्रोहकाल के पथिक
  • जातीय गोलबंदी के दौर में अगड़ा समाज ने अपने बाहुबलियों पर जताई थी आस्था

  संवाददाता

पटना (बिहार): बिहार की राजनीति में तीन नाम ऐसे भी हैं, जो अगड़ा-पिछड़ा संघर्ष के चरम काल के परिणति हैं और जिन्हें बाहुबली कहा जाता रहा है, लेकिन वह अपने को द्रोह-काल का पथिक मानते हैं। ये नाम हैं राजीव रंजन यादव उर्फ पप्पू यादव, आनंद मोहन और विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला। इनमें अपने आरंभिक राजनीतिक जीवन में लालू यादव का हमसाया रहे पप्पू यादव ने अपनी आत्मकथा लिखी है, जिसका शीर्षक है- द्रोहकाल का पथिक। लालू राज शुरू होते ही अगड़ा-पिछड़ा संघर्ष अपने चरम पर पहुंच गया था और सामाजिक न्याय की दुहाई देने वाले उस समय के मुख्यमंत्री लालू यादव द्वारा दिए गए भूरा बाल साफ करो के संदेश ने सवर्णों को गोलबंद करने का काम किया था। भूरा बाल से आशय था भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत और लाला यानी कायस्थ।
पहले दूसरों के लिए, बाद में अपने लिए बूथलूट
कांग्रेस के दबंग विधायक बाबा रघुनाथ पांडे के लिए उस समय मुजफ्फरपुर का इलाका सियासी जागीर थी, जिसे संभालने में छोटन शुक्ला जैसों बाहुबलियों की जरूरत होती थी। इसी समय सम्राट अशोक और छोटन शुक्ला जैसे युवा डानों ने तय किया था कि दूसरों के बजाय अपनी राजनीतिक हैसियत के लिए बूथ कैप्चर करेंगे। तब आनंद मोहन की बिहार पीपुल्स पार्टी लालू यादव के समक्ष चुनौती के रूप में सामने आई थी। बिहार का यह दुर्भाग्य रहा है कि जातीय गोलबंदी के उस दौर में अगड़ा समाज ने अगड़ी जातियों के बाहुबली नेताओं और अपराधियों को आस के तौर पर देखा था। 1994 में वैशाली में लोकसभा के उपचुनाव में आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद कांग्रेस की किशोरी सिन्हा को हराकर विजयी हुई। तब छोटन शुक्ला ने आगे बढ़कर आनंद मोहन का स्वागत किया था और अपने को आनंद मोहन से राजनीतिक तौर पर जोड़ लिया था। 1995 के विधानसभा चुनाव के बाद बाबा रघुनाथ पांडे का दबदबा पिछड़ी जाति के विजेंदर चौधरी द्वारा हार जाने के बाद खत्म हो गया।
पप्पू की प्रेमिका रही हैं पत्नी सांसद रंजीता रंजन
2015 में जन अधिकार पार्टी बनाने वाले पप्पू यादव पर हत्या, अपहरण सहित 31 मामले दर्ज हैं, जिनमें से 09 में पुलिस ने संबंधित कोर्ट में चार्जशीट दाखिल किया है। 14 जून 1998 को माकपा नेता पूर्णिया के विधायक अजीत सरकार की हत्या में जिला अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई और वह 2008 से 2013 तक पांच साल जेल में रहे। उन पर चुनाव लड़ने पर रोक थी। हाईकोर्ट ने उन्हें आरोप से बरी कर दिया, तब वह 2014 का लोकसभा चुनाव लालू यादव की पार्टी राजद के टिकट पर लड़े और वरिष्ठ नेता शरद यादव को हराकर विजयी हुए। हालांकि, 1990 में पहली बार विधायक बनने और पांच बार सांसद बनने वाले पप्पू यादव 2019 में मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव हार गए। पप्पू यादव ने सिख परिवार की रंजीता रंजन से 1994 में प्रेम विवाह किया। शादी के बाद अगले साल 1995 में रंजीता रंजन ने विधानसभा का चुनाव लड़ा, पर हार गईं। रंजीता रंजन ने 2004 में सहरसा लोकसभा क्षेत्र से लोजपा के टिकट पर और 2009 में सुपौल लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की, मगर 2019 में लोकसभा का चुनाव हार गईं।
बाहुबलियों ने की दलित जिलाधिकारी की हत्या
दलित समाज से आने वाले जिलाधिकारी जी. कृष्णैया हत्याकांड में दो साल से ज्यादा की सजा काटने के कारण चुनाव लड़ने से अयोग्य बाहुबली मुन्ना शुक्ला की पत्नी अनु शुक्ला लालगंज सीट से और मुन्ना शुक्ला के दोस्त रहे बाहुबली आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद सुपौल से राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। लवली आनंद ने पिछले पखवारा तेजस्वी यादव से राजद की सदस्यता ग्रहण की। निजी सेना चलाने वाले और राजपूतों के नेता के रूप में अपने को स्थापित करने वाले आनंद मोहन वैसे सियासी किरदार रहे हैं, जिनकी निजी सेना की अदावत पप्पू यादव की निजी सेना से रही थी। आनंद मोहन पहली बार 1990 में जनता दल के टिकट पर विधायक बने थे। मुन्ना शुक्ला और आनंद मोहन दोनों बिहार में राजनीति के माफियाराज के स्वर्णकाल की उपज हैं। दोनों गोपालगंज के जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की 05 नवंबर 1994 में हुई हत्या के आरोपी रहे हैं। दो साल जेल में रहने के बाद हाई कोर्ट के फैसले में मुन्ना शुक्ला बरी हो गए, मगर आनंद मोहन आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। आनंद मोहन देश में आजादी के बाद पहले ऐसा राजनेता हैं, जिन्हें पटना हाईकोर्ट ने 2007 में फांसी की सजा सुनाई। 2008 में फांसी की सजा आजीवन कारावास में बदल दी गई। मुजफ्फरपुर में डीएम की हत्या एक दिन पहले 04 नवम्बर को अंडरवल्र्ड डान कौशलेंद्र शुक्ला उर्फ छोटन शुक्ला की हत्या एके-47 की गोलियों से हुई थी। छोटन शुक्ला की हत्या की प्रतिक्रिया में शवयात्रा निकली थी और उसी भीड़ में फंस गए जिलाधिकारी की हत्या कर दी गई। छंटा हुआ क्रिमिनल होने के बावजूद मुजफ्फरपुर की सवर्ण आबादी का छोटन शुक्ला से इमोशनल कनेक्शन था।
डान की मौत के प्रतिकार में हुई मंत्री की हत्या
छोटन शुक्ला की हत्या में बाहुबली नेता बृजबिहारी प्रसाद का हाथ होने की बात सामने आई, जो 1995 के चुनाव के बाद लालू सरकार में मंत्री बने थे। छोटन शुक्ला के छोटे भाई शार्प शूटर अवधेश शुक्ला उर्फ भुटकुन शुक्ला ने भाई का बदला लेने की कसम खाई, मगर अंडरवल्र्ड की जानीदुश्मनी की जंग में भुटकुन की हत्या उसके बाडीगार्ड दीपक सिंह ने 1997 में एके-47 राइफल से कर दी। दो भाइयों की हत्या के बाद विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला ने बदला लेने की जिम्मेदारी अपने कंधे पर ली और सूरजभान सिंह, श्रीप्रकाश शुक्ल, राजन तिवारी आदि बाहुबलियों से हाथ मिलाया। पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान परिसर में 13 जून 1998 को एके-47 से मंत्री बृजबिहारी प्रसाद बाडीगार्ड सहित मारे गए। इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी श्रीप्रकाश शुक्ला तीन महीने बाद यूपी एसटीएफ द्वारा गाजियाबाद में मारा गया था। बृजबिहारी प्रसाद हत्याकांड में सूरजभान सिंह, मुन्ना शुक्ला, राजन तिवारी को निचली अदालत ने दोषी करार दिया। बृजबिहारी हत्याकांड के आरोप में जेल गए मुन्ना शुक्ला ने 2004 में जेल से लोकसभा चुनाव लड़ा और 2005 में लोजपा के टिकट पर विधानसभा का चुनाव जीता। फिर हुए जदयू से चुनाव जीत कर विधायक बने। बाद में चुनाव आयोग की वैधानिक प्रावधान के कारण लंबी अवधि तक जेल में मुन्ना शुक्ला चुनाव लड़ने से अयोग्य हो गए तो 2010 में पत्नी अनु शुक्ला को चुनाव के मैदान में उतारा और अनु शुक्ला विजयी हुईं। बृजबिहारी प्रसाद हत्याकांड के सभी आरोपियों को 2014 में हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। अब सूरजभान सिंह कारोबार में व्यस्त हैं और उनके भाई नवादा से लोजपा के सांसद हैं। बृजबिहारी प्रसाद की पत्नी रमा देवी भाजपा की सांसद हैं।
जेल में किताब लिखने, पीएचडी करने वाले दबंग
पूर्व विधायक और लोजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष डा. नरेंद्र कुमार पांडेय उर्फ सुनील पांडे की तैयारी इस्तीफा देकर तरारी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ने की है। यह सीट भाजपा के खाते में चली गई और लोजपा ने घोषणा कर रखी है कि वह भाजपा के विरुद्ध प्रत्याशी नहीं उतारेगी। समता पार्टी और जदयू से तीन बार विधायक रहे सुनील पांडेय 2015 में लोजपा में चले गए थे। आरा में बहुचर्चित रणवीर सेना के सुप्रीमो ब्रह्मेश्वर मुखिया हत्याकांड में उनका नाम उछाला गया, लेकिन पहले एसआईटी और फिर सीबीआई जांच में कोई सुराग नहीं मिला। रोहतास जिला के नावाडीह गांव के निवासी सुनील पांडेय की कहानी फिल्मों जैसी है, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने बंगलुरु गए और किसी लड़के से झगड़ा के कारण पढ़ाई छोड़कर घर लौट आए। इसके बाद तो इन पर पुलिस थानों में दर्जनों केस दर्ज हुए। जेल में रहकर किताब लिखने वाले और महावीर की अहिंसा पर पीएचडी करने वाले सुनील पांडेय की पत्नी गीता पांडेय ने 2015 में लोजपा के टिकट पर तरारी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था, पर भाकपा-माले के सुदामा प्रसाद से हार गईं।

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