पराली नहीं जलाने का किसानों ने लिया प्रण

Farmers took pledge not to burn stubble

  • किसानों को बिना किराए के मुहैया करवाई गई मशीनें

जालंधर: गांव लल्लियां के जगजीत सिंह ने अपने गांव को प्रदूषण मुक्त रखने और पराली नहीं जलाने का प्रण लिया, जिसके अंतर्गत वह धान की कटाई के सीजन शुरू होने के बाद से ही अपने गांव में बाकायदा ऐलान करके सभी किसानों को पराली का प्रबंधन के लिए अपनी, इन-सीटू मशीनें मुहैया करवा रहा है। जगजीत सिंह 2017 से खेतों में पराली मिला रहे हैं और उसके बाद 325 एकड़ क्षेत्रफल में तुरंत आलू की बिजाई कर देता है। उसने बताया कि ऐसा करने से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति में सुधार होता है जिससे खादों के प्रयोग में कमी आई है। उसने बताया कि आलू के झाड़ में भी कई गुणा विस्तार हुआ है और यह सब खेतों में पराली को मिला देने के कारण संभव हुआ है।
उन्होंने कहा कि “मुझे मलचर, आरएमबी पलोय, रोटावेटर कृषि और किसान भलाई विभाग से सब्सिडी पर मिला है और इससे मुझे बहुत लाभ हुआ है।” जगजीत सिंह ने कहा वह यह मशीनें बिना किसी किराये के अन्य किसानों को मुहैया करवा रहा है। उन्होंने कहा कि वह अपने गांव को साफ-सुथरा और प्रदूषण मुक्त रखना चाहते हैं, जिस कारण उन्होंने अपनी मशीनें गांव के सभी किसानों को मुहैया करवाने का फैसला किया जिससे वह भी खेतों में ही पराली का प्रबंधन कर सकें और वातावरण को बचाने के लिए पराली जलाने के खिलाफ शुरू कि गई जंग में हिस्सा डाल सकें।
शादीपुर गांव के कुलबीर सिंह ने अपने गांव में किसानों का एक समूह बनाया हुआ है और यह समूह सभी पिछले पाँच सालों से पराली के उचित प्रबंध कर रहे हैं। उन्होंने उसने कहा कि वह 260 एकड़ क्षेत्रफल में हैपी सिडर से गेहूं की फसल की बिजाई कर रहे है और इससे खेतों में घासपात का विस्तार रुक गया है।उन्होंने बताया कि उन्होंने तब से कीटनाश्कों का प्रयोग नहीं किया, जिससे खेती खर्चों में कमी आई है।उन्होंने बताया कि पिछले कुछ सालों से उनका गांव पराली को आग नहीं लगा रहा और किसान स्थानीय सहकारी सभाओं से मशीनें लेकर पराली का प्रबंधन कर रहे हैं।
मुख्य कृषि अधिकारी डा. सुरिन्दर सिंह ने ऐसे किसानों के योगदान की प्रशंसा करते हुए कहा कि प्रशासन पराली जलाने के बुरे प्रभावों से वातावरण को बचाने के लिए पराली जलाने के खिलाफ शुरू की गई मुहिम में इन किसानों की सक्रिय भागीदारी का सम्मान करेगा।

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