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आलेख

उन्हें’ नहीं पता कि ग़ुस्सा किस पर करें!

राजनैतिक व्यंग्य-समागम राजेंद्र शर्मा भाई ये गजब देश है। पहलगाम में आतंकवादी हमला हो गया। अट्ठाईस लोग मारे गए और डेढ़ दर्जन से ज्यादा गंभीर रूप से घायल। नाम पूछकर और धर्म देखकर, गोली मारी। फिर भी पब्लिक है कि ठीक से गुस्सा तक नहीं है। लोग गुस्सा भी हो रहे हैं तो बच-बचकर। और तो और,…
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फिल्म तो बहाना है, गुलामगिरी फिर लाना है

आलेख : बादल सरोज फुले फिल्म को लेकर जिस तरह का तूमार खड़ा किया जा रहा है, वह सिर्फ उतना नहीं है, जितना दिखाया या बताया जा रहा है : कि अनुराग कश्यप नाम के किसी फिल्म निर्देशक ने सेंसर बोर्ड की काटछाँट को लेकर सोशल मीडिया पर अपनी असहमति जताई, उस असहमति पर ट्रोल गिरोह की तरफ से आई उकसावे वाली टीप…
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अब सुप्रीम कोर्ट को धौंस!

राजेंद्र शर्मा फासीवादियों की एक जानी-मानी रणनीति है। जो खुद करना चाहते हो, करने जा रहे हो, विरोधी पर वही करने का आरोप लगा दो। भाजपा के बदजुबान पर मोदी जी निजाम के मुंहलगे सांसद, निशिकांत दुबे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, संजीव खन्ना पर ''देश में हो रहे सभी गृह युद्घों'' की जिम्मेदारी डालने…
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पहलगाम : हमला पाकिस्तान प्रायोजित, लेकिन क्या केंद्र सरकार की नाकामी कुछ कम है?

आलेख : संजय पराते नोटबंदी के बाद मोदी सरकार का दावा था कि आतंकवाद की कमर तोड़ दी गई है। संविधान के अनुच्छेद-370 को खत्म करते हुए दूसरा दावा था कि आतंकवाद की जड़ को खत्म कर दिया गया है। संसद में इस सरकार ने बार बार अपनी पीठ ठोंकी है कि कश्मीर घाटी में सब ठीक है, आतंकवाद कांग्रेस के जमाने की…
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संघ में इजाजत : न्यौता या जाल!

बादल सरोज इन दिनों अब मुसलमानों पर हेज उमड़ रहा है। आजादी के बाद का सबसे बड़ा “क़ानून बनाकर संपत्ति हड़पो” घोटाला वक्फ कब्जा कांड करने के साथ ही देश के इस सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाकर बयान दागे जा रहे हैं। यह बात अलग है कि वे शब्दों में कुछ भी हों, भावों में और पंक्तियों के बीच के अर्थ…
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पूजने तो दो यारो!

राजेंद्र शर्मा यह तिल का ताड़ और राई का पहाड़ बनाना नहीं, तो और क्या है? और कुछ नहीं मिला, तो अभक्तों ने फुले की जीवनीपरक फिल्म पर सेंसर बोर्ड के यहां-वहां कैंची चलाने पर ही हंगामा कर रखा है। सेंसर बोर्ड वाले भी बेचारे क्या करते? फिल्म ब्राह्मणों की भावनाओं को आहत जो कर रही थी। वैसे सच पूछिए,…
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लोकतंत्र का गला घोंटने पर आमादा भाजपा सरकारें

 बादल सरोज भारत को दुनिया के लोकतंत्र की माँ बताते हुए, असहमतियों का सम्मान करने का दावा करते हुए गाल कितने भी बजाये जाएँ, मगर असलियत में तानाशाही के पैने नाखून संविधान के साथ-साथ उसमें दिए बुनियादी जनतांत्रिक अधिकारों को तार-तार कर देने की जिद ठाने बैठे है। फिल्म हो या यूट्यूब के चैनल, सभा,…
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संघवाद की हिमायत में फैसला

राजेंद्र शर्मा नरेंद्र मोदी के राज में राज्यपाल के पद को जिस तरह से विपक्ष-शासित राज्यों में सत्ताधारी संघ-भाजपा जोड़ी की क्षुद्र राजनीति का हथियार बनाया गया है, उस पर यकायक किसी तरह से रोक लग जाएगी, यह मानना मुश्किल है। फिर भी तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु राज्यपाल आदि मामले में हाल ही में…
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अल्पसंख्यकों के हित में नहीं है नया वक्फ कानून

हन्नान मोल्ला वक्फ अरबी शब्द है, जिसका अर्थ है धार्मिक कार्यों और धर्मार्थ के लिए संपत्ति का दान किया जाना। जब हजरत मोहम्मद के अनुयायियों ने उन्हें एक संपत्ति दान में दी, तो उन्होंने इसे अल्लाह के नाम पर दान देने के लिए वक्फ बनाने का आदेश दिया। इस संपत्ति से अर्जित धन का उपयोग गरीब मुस्लिमों,…
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बाबा साहेब और आज का भारत

संजय पराते डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर भारतीय समाज के दलित-शोषित-उत्पीड़ित तबकों के विलक्षण प्रतिनिधि थे, जिन्होंने हिन्दू धर्म में जन्म तो लिया, लेकिन एक हिन्दू के रूप में उनका निधन नहीं हुआ। एक हिन्दू से गैर-हिन्दू बनने की उनकी यात्रा उनकी स्थापित मूर्तियों में साकार होती हैं, जिसमें वे पश्चिमी…
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