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आलेख

इसे कहते हैं सेना को युद्ध की भट्टी में झोंकना!

संजय पराते जब बिना किसी सुविचारित नीति के चुनाव को नजर में रखकर युद्धोन्माद फैलाया जाता है और फिर जनता को संतुष्ट करने और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को मजबूत करने के लिए युद्ध की 'रचना' की जाती है, तो उसका वही हश्र होता है, जो कल हमें दिखा। पहलगाम में आतंकी हमले के बाद पूरे देश में युद्ध और…
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माचो राष्ट्रवाद!

अरुण माहेश्वरी सीमा पर जब गोलियाँ चलती हैं, बंकर ध्वस्त होते हैं या कुछ सैनिक शहीद होते हैं, कुछ नागरिकों की भी जानें जाती है तो यह सब सीमा पर होने वाली झड़प कहलाते हैं। पर जब वही झड़प सामाजिक चेतना में एक जगह घेरने लगती है, मीडिया में राजनीति का ‘चक्रव्यूह’ रचने लगती है, और सत्ता के मंचों से…
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युद्ध और आम आदमी

संस्मरण : जवरीमल्ल पारख 1965 के भारत-पाक युद्ध में इस्तेमाल की जाने वाली टेक्नॉलजी के साथ आज की स्थितियों की तुलना नहीं हो सकती, पर युद्ध से जुड़ी आशंकाएँ, अफ़वाहें, दहशत और अनिश्चितताएँ आज भी वैसी ही हैं। यह संस्मरण पहली बार 18 जुलाई, 2020 को लिखा गया था। उस समय अपने बचपन की यादें लिख रहा था और यह…
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मुंशी प्रेमचंद को आत्मसात किया था कमल किशोर गोयनका ने!

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट हिंदी शब्दो से खेलते हुए मुंशी प्रेमचंद के लगभग हर पक्ष को अपने शोधपत्र के माध्यम से जगजाहिर करने वाले डॉ॰ कमल किशोर गोयनका अब हमारे बीच नही है,उन्होंने ने हाल ही में इस दुनिया से विदाई ली है। दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के 40 वर्षो तक प्राध्यापक रहे कमल…
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मोदी की चुप्पी, मोदी के बोल!

राजेंद्र शर्मा आखिरकार, पहलगाम की आतंकवादी जघन्यता के करीब हफ्ते भर बाद, रविवार 27 अप्रैल की अपनी मासिक 'मन की बात' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसका ख्याल आया कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए, देशवासियों की एकता कितनी जरूरी है। बेशक, प्रधानमंत्री की इस आयोजन की खबरों की सुर्खियां बनने…
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भूल जाइए पहलगाम, आइए बद्रीधाम!

राकेश अचल घटनाएं-दुर्घटनाएं भूलने के लिए ज्यादा, याद रखने के लिए कम होती हैं। आपको भी सरकार की तरह 22 अप्रैल को हुए पहलगाम हत्याकांड को भूलकर अपने काम धंधे पर लग जाना चाहिए। किसी हादसे से दुनिया रुक नहीं जाती। हिरोशिमा-नागासाकी से पहलगाम हत्याकांड के बीच दुर्दिनों की लंबी फेहरिश्त है। किस-किस…
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जाति जनगणना के लिए मजबूर हुई मोदी सरकार!

मुकुल सरल मोदी सरकार ने आगामी आम जनगणना के साथ जाति जनगणना कराने का ऐलान कर दिया है। सरकार इसे अपनी एक उपलब्धि की तरह पेश कर रही है, लेकिन इसे वास्तव में विपक्ष की ही जीत माना जा रहा है। जाति जनगणना की मांग बेहद पुरानी है और विपक्ष ख़ासकर राहुल गांधी पिछले कुछ सालों से इसको लेकर सरकार पर…
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अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस : इंसान का इंसान से हो भाईचारा!

मजदूर दिवस पर विशेष आलेख  गणेश कछवाहा शिकागो के अमर शहीदों के संघर्ष और त्याग के कारण आठ घंटे काम का अधिकार हम मेहनतकशों और सर्वहारा वर्ग ने प्राप्त किया है। इस अधिकार पर अब हमले हो रहे हैं। इसे सुरक्षित रखने के लिए लगातार जागरूक रहने की जिम्मेदारी हम सब की है। अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर…
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उन्हें’ नहीं पता कि ग़ुस्सा किस पर करें!

राजनैतिक व्यंग्य-समागम राजेंद्र शर्मा भाई ये गजब देश है। पहलगाम में आतंकवादी हमला हो गया। अट्ठाईस लोग मारे गए और डेढ़ दर्जन से ज्यादा गंभीर रूप से घायल। नाम पूछकर और धर्म देखकर, गोली मारी। फिर भी पब्लिक है कि ठीक से गुस्सा तक नहीं है। लोग गुस्सा भी हो रहे हैं तो बच-बचकर। और तो और,…
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फिल्म तो बहाना है, गुलामगिरी फिर लाना है

आलेख : बादल सरोज फुले फिल्म को लेकर जिस तरह का तूमार खड़ा किया जा रहा है, वह सिर्फ उतना नहीं है, जितना दिखाया या बताया जा रहा है : कि अनुराग कश्यप नाम के किसी फिल्म निर्देशक ने सेंसर बोर्ड की काटछाँट को लेकर सोशल मीडिया पर अपनी असहमति जताई, उस असहमति पर ट्रोल गिरोह की तरफ से आई उकसावे वाली टीप…
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