अमित नेहरा
नेपाल सरकार का तख्तापलट, राहुल गांधी द्वारा चुनाव आयोग के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस, दिल्ली विश्वविद्यालय में चुनाव और हाल ही में लेह-लद्दाख में हिंसक प्रदर्शन। इन सभी घटनाओं में एक शब्द छाया रहा है। वह शब्द है Gen-Z.
ये Gen-Z क्या है और इसे किस तरह बोलते हैं, इसका सही उच्चारण क्या है, समाज में इसकी क्या भूमिका रहने वाली है। इन सभी सवालों के जवाब हम इस खास रिपोर्ट में खोजेंगे।
जेन-जेड है या जेन-जी
कुछ हिंदी अखबार व वेबसाइटें रोमन में Gen-Z या Gen Z लिख रहे हैं। जबकि कुछ अखबार व साइटें इसे देवनागरी में जेन-जी या जेन-जेड भी लिख रही हैं। अब सवाल उठता है कि Gen-Z को दो तरह से क्यों लिखा जा रहा है। उसका उच्चारण जेन-जी है या जेन-जेड? ज्यादातर लोग असमंजस में हैं कि Gen-Z में जो Z है, उस Z को ‘जी’ कहा जाए या ‘जेड’?
दरअसल ब्रिटिश अंग्रेज़ी में Z को ‘जेड’ बोला जाता है जबकि अमेरिकी अंग्रेज़ी में Z का उच्चारण है ‘जी’। अब इसे Gen-Z वाले Z को क्या बोला जाये यह इस पर निर्भर करता है कि आप ब्रिटिश उच्चारण को चुनते हैं या अमेरिकी उच्चारण को। आमतौर पर भारतीय Z को जेड ही बोलते हैं मसलन ए, बी, सी, डी…एक्स, वाइ, जेड। लेकिन Gen-Z को हम भारतीय जेन-जेड की जगह जेन-जी क्यों बोल रहे हैं ये व्यक्तिगत पसंद का मामला है। वैसे ज्यादातर मीडिया हाउस ही इसे जेन-जी ही लिख और बोल रहे हैं। यानी अमेरिकन उच्चारण को तरजीह दी जा रही है। लेकिन मजेदार बात यह है कि ब्रिटेन में भी जहाँ Z को जेड बोलने का ही प्रचलन है, वहाँ भी कुछ लोग Gen-Z को जेन जी ही बोल रहे हैं। इस आर्टिकल में इसे जेन जी ही लिख लेते हैं।
जेन जी क्या और क्यों है
जेन जी वो पीढ़ी है जिसका जन्म 1997 से 2012 के बीच हुआ है। जन्मवर्ष के हिसाब से मानव पीढ़ियों को वर्गीकृत किया गया है। ये पीढ़ियां इस तरह से हैं :-
●ग्रेटेस्ट जेनरेशन : वर्ष 1901 से 1927 के बीच जन्म हुए लोगों को ग्रेटेस्ट जेनरेशन कहा जाता है यानी जिन लोगों की आयु 98 से 124 वर्ष हो चुकी है वे इस श्रेणी में आते हैं।
◆साइलेंट जेनरेशन :- इस पीढ़ी में 1928-1945 के बीच जन्म लेने वाले लोगों को शामिल किया गया है। यानी 80 से 97 वर्ष की आयु के लोग।
●बेबी बूमर्स :- 61 से 79 वर्ष के हो चुके लोग बेबी बूमर्स कहलाते हैं। यानी इस पीढ़ी में 1946 से 1964 के बीच जन्म लेने वाले लोगों को शामिल किया गया है।
●जेनरेशन एक्स :- जिनका जन्म 1965 से 1980 के बीच हुआ है उन्हें इस पीढ़ी में शामिल किया गया है। जेनरेशन एक्स की आयु 45 से 60 साल तक मानी गई है।
●मिलेनियल्स या जेन वाई :- वर्ष 1981- 1996 के बीच जन्म लेने वाले लोगों को मिलेनियल्स या जेन वाई नाम दिया गया है। इस हिसाब से इनकी आयु 29 से 44 वर्ष की बैठती है।
●जेन जी :- आजकल इसी जेन जी का शोर मचा हुआ है। इस पीढ़ी में 1997- 2012 के बीच जन्म लेने वाले लोगों को शामिल किया गया है। इनकी आयु 13 से 28 साल की है।
●जेन अल्फा :- इस पीढ़ी में 2013-2024 के बीच जन्म लेने वाले लोगों को शामिल किया गया है। जेन अल्फा की आयु एक साल से लेकर 12 साल की ही है।
●जेन बीटा – यह पीढ़ी उनके लिए निर्धारित की गई है जो या तो नवजात हैं या जिनका जन्म होना है। इस पीढ़ी में 2025 में पैदा हो चुके बच्चों को जेन बीटा कहा गया है और इसमें वर्ष 2039 तक पैदा होने वाले बच्चों को शामिल किया गया है।
तो ये पीढ़ियों के हिसाब से वर्गीकरण था। चूंकि यह रिपोर्ट जेन जी पर केंद्रित है। इसलिए इसमें जेन जी पर ही चर्चा होगी। मसलन, इस पीढ़ी का नामकरण कैसे हुआ, इसकी आदतें कैसी हैं, ये क्या सोचते हैं और इनकी भूमिका क्या रहने वाली है।
Gen-Z नाम ही क्यों
चूंकि 1997 से लेकर 2012 के बीच पैदा हुए बच्चों को Gen-Z कहा जाता है। इनके जन्म के आसपास टेक्नोलॉजी, खासकर कम्प्यूटर, लेपटॉप, मोबाइल, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के विकास में बूम शुरू हो गया था। इसलिए Gen-Z वह पीढ़ी है जिसने इंटरनेट और मोबाइल टेक्नॉलजी के विकास को अपनी आंखों के सामने देखा है और उसको धड़ल्ले से अपनाया है।
Gen-Z को टेक्नोलॉजी का किंग कहा जाता है।एक तरह से टेक्नोलॉजी इसके डीएनए में है, ये पीढ़ी नए ऐप्स और ट्रेंड्स को बहुत तेजी से अपनाती है। इसलिए ही इस पीढ़ी को Gen-Z कहा जाता है। ये युवा इंटरनेट और सोशल मीडिया के युग में पले-बढ़े हैं। ये पीढ़ी टेक्नोलॉजी में तो पारंगत है ही, इसके साथ-साथ यह सामाजिक मुद्दों पर मुखर है। Gen-Z को ज़िलेनियल्स भी कहा जाता है। इन सभी वजहों से Gen-Z इस समय सबसे चर्चित और प्रभावशाली पीढ़ी है।
Gen-Z इतनी महत्वपूर्ण क्यों
हमने वर्तमान की सभी पीढ़ियों की उम्र के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा की। ऐसे में ग्रेटेस्ट जेनरेशन और साइलेंट जेनरेशन की उम्र 80 से 124 साल की हो चुकी है। अतः दोनों पीढियां वृद्धावस्था के कारण सक्रिय भूमिका निभाने में असमर्थ हैं। बेबी बूमर्स और जेनरेशन एक्स की आयु भी 45 से 79 के बीच हो चुकी है। ये दोनों पीढियां प्रौढ़ हो चुकी हैं और इन पर घर-गृहस्थी की बड़ी जिम्मेदारियां हैं। एक तो इनमें युवाओं के मुकाबले ऊर्जा का स्तर कम है दूसरे ये रोजमर्रा की जिंदगी में से समय कम ही निकाल पाती हैं। रही बात जेन बीटा और जेन अल्फा की तो इनकी उम्र नवजात शिशु से लेकर केवल 12 वर्ष तक की ही है। इतनी छोटी उम्र के कारण ये दोनों पीढ़ियां माता-पिता पर आश्रित रहती हैं। अतः इनका सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर कोई दखल सम्भव नहीं है।
अब बची दो पीढ़ियां जेन वाई और जेन जी। जेन वाई की उम्र 29 से 44 साल के बीच में है। ये पीढ़ी युवा के साथ-साथ अनुभवी तो है। लेकिन जेन वाई न तो टेक्नोलॉजी में इतनी पारंगत है और न ही उसे देश-विदेश या समाज में हो रही हलचलों से कोई खास सरोकार है। अनुभवी होने के कारण इस पीढ़ी को ज्यादा बहकाया या बरगलाया नहीं जा सकता।
अब बात करते हैं जेन जी की। इस पीढ़ी की उम्र 13 से 28 साल के बीच की है। इसका अर्थ यह है कि ये पीढ़ी सबसे युवा और सबसे ऊर्जावान है। इनमें से ज्यादातर छात्र हैं जो घरेलू जिम्मेदारियों से लगभग मुक्त हैं। सबसे ज्यादा टेक्नोलॉजी अपनाने के कारण ये पीढ़ी हर समय देश-विदेश में हो रही घटनाओं से अवगत रहती है। अतः जेन जी को मोबिलाइज करना बेहद आसान है। यही कारण है कि जेन जी आज हर पोलिटिकल पार्टी और नेता के निशाने पर रहती है। हर नेता और दल चाहता है उसकी ज्यादा से ज्यादा पैठ जेन जी में हो। हाल की घटनाओं ने इस तथ्य पर फिर मुहर लगा दी है।
Gen-Z की आदतें
एक अनुमान के अनुसार 2025 तक जेन जी दुनिया की 30 परसेंट वर्कफोर्स है। यह अपनी अलग सोच और आदतों से समाजों और अर्थव्यवस्थाओं पर असर डाल रही है। जेन जी बहुत स्मार्ट है। ये अपनी भविष्य की प्लानिंग बहुत पहले से ही शुरू कर देती है। एक सर्वे के मुताबिक 66 परसेंट जेन जी ने 19 साल की औसत उम्र से ही बचत करना शुरू कर दिया था। साल 2025 में, 18 से 35 साल के करीब 61 फीसदी युवा पैसों को लेकर चिंतित हैं। इसके अलावा, नौकरी में अनिश्चितता और घर खरीदने की बढ़ती कीमत भी उन्हें परेशान करती है। अपनी कमाई बढ़ाने और वित्तीय स्थिरता पाने के लिए इस पीढ़ी में एक्सट्रा काम करने का चलन बढ़ा है। ये पीढ़ी डेस्कटॉप के बजाय मोबाइल पर ही ज्यादा काम करती है। जेन जी के लगभग 80 परसेंट लोग सोशल मीडिया पर ही प्रोडक्ट खोजते हैं और 85 परसेंट नए प्रोडक्ट्स के बारे में इन्हीं प्लेटफॉर्म से पता लगाते हैं। ये ऑनलाइन रिव्यू पर काफी हद तक भरोसा करते हैं। इसी से ये किसी प्रोडक्ट के खरीदने या न खरीदने का निर्णय लेते हैं।
जेन जी का मूड और व्यवहार
यह ऐसी पीढ़ी है, जिसने पैदा होती ही या होश संभालते ही इंटरनेट पर काम करना शुरू कर दिया था। जेन जी को लैपटॉप, आईफोन जैसे गैजेट्स तो मिले ही 5जी इंटरनेट भी मिला। किशोरावस्था में ही ये बहुत से सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स से जुड़ते चले गए।
पुरानी पीढ़ियों की तुलना में ये सबसे ज्यादा टेक्नोलॉजी का प्रयोग करते हैं। ऑनलाइन गेमिंग, ई-कॉमर्स और डिजिटल पेमेंट इनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके अलावा सोशल मीडिया पर काफी वक्त गुजारना भी इनकी जिंदगी में सामान्य है।
जेन जी ने पुराने दौर के भेदभाव या फिर वर्गभेद को नहीं देखा है। ऐसे में यह जेनरेशन किसी भी तरह के भेदभाव और असमानता का खुलकर विरोध करती है। यह पीढ़ी विविधता, समावेश और सामाजिक न्याय पर ज़्यादा ध्यान देती है। जेन जी जेंडर इक्वैलिटी, जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार जैसे मुद्दों को लेकर जागरूक रहते हैं। ये पीढ़ी पारंपरिक नौकरी की बजाय फ्रीलांसिंग, स्टार्टअप्स, और क्रिएटिव करियर की ओर झुकाव रखती है। ये युवा पहले की तरह नौकरियों में सुरक्षा खोजने की बजाय अपने स्तर पर भी कुछ करने के प्रयास करते हैं। यह पीढ़ी बहुत ज़्यादा प्रैक्टिकल और सेविंग ओरिएंटेड है।
जेन जी द्वारा हालिया क्रांतियां
◆नेपाल में सत्ता उखाड़ फेंकना
4 सितंबर 2025 को नेपाल सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सएप, ट्विटर और लिंक्डइन समेत 26 प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को ब्लॉक कर दिया। ब्लॉक करने की वजह रजिस्ट्रेशन न होना बताई गई। नेपाल सरकार ने कहा कि ये कदम फर्जी खबरों, साइबर अपराधों और राष्ट्रीय सुरक्षा के कारण लिया गया। इस निर्णय ने जेन जी के बीच गुस्से की लहर पैदा कर दी है। वे सड़कों पर उतर आए। उग्र जेन जी को रोकने के लिए पुलिस ने आंसू गैस और रबर बुलेट चलाई, जिसमें 19 लोगों की जान चली गई। इसके बाद प्रोटेस्ट और विकराल हो गया। इतना विकराल कि प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली को इस्तीफा देकर भागना पड़ा। पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया। अनेक सरकारी इमारतों में आग लगा दी गई।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि नेपाल सरकार को गिराने के बाद नेपाल के जेन जी ने ही देश का नया नेता चुना। इसके लिए सोशल प्लेटफॉर्म डिस्कॉर्ड पर वोटिंग हुई और सुशीला कार्की को प्रधानमंत्री चुन लिया गया।
◆बांग्लादेश का तख्तापलट 2024
शेख हसीना 6 जनवरी 2009 को पहली बार बांग्लादेश की पीएम बनी थी, 5 अगस्त 2024 को उनके देश छोड़कर भागने के साथ ही उनका 15 साल का ये लंबा कार्यकाल खत्म हो गया। इसकी मूल वजह रही बांग्लादेश में हाईकोर्ट ने सरकारी नौकरियों में 30% कोटा प्रणाली फिर से लागू करने का आदेश देना। इस आदेश के विरोध में बांग्लादेश के जेन जी ने जुलाई 2024 में सरकार के खिलाफ क्रांति शुरू कर दी। पुलिस ने 20 जुलाई को उग्र प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश की जिसमें 560 लोगों की मारे गए। इसके बाद तो बांग्लादेश गुस्से में उबल पड़ा। प्रदर्शनकारियों ने पीएम आवास पर कब्जा कर लिया। अतः 5 अगस्त को प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देकर भारत में शरण लेनी पड़ी।
इस तख्तापलट के बाद जेन जी संगठनों की सहमति से नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस को मुख्य सलाहकार नियुक्त कर बांग्लादेश में अंतरिम सरकार बनाई गई।
◆श्रीलंकाई क्रांति
राजपक्षे परिवार श्रीलंका में बेहद ताकतवर रहा है।
इसने श्रीलंका पर करीब 2 दशक राज किया है। इस दौरान उन्होंने विदेशों से कर्ज लेकर खूब भ्रष्टाचार किया। इससे श्रीलंका की आम जनता में गरीबी, खाने की कमी, बिजली कटौती और महंगाई की समस्या से हाहाकार मच गया। आखिरकार मार्च 2022 में पीएम महिंदा राजपक्षे के विरोध में प्रदर्शन शुरू हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में जेन जी ने हिस्सा लिया। इन्होंने सोशल मीडिया के जरिए प्रोटेस्ट को पूरे देश में फैला दिया। अतः सरकार ने सोशल मीडिया पर बैन लगा दिया।
अंततः 9 मई 2022 को पीएम महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफा दे दिया। इसके एक महीने बाद प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन और पीएम आवास में घुस गए। आखिरकार 14 जुलाई को राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने भी सिंगापुर से ई-मेल के जरिए इस्तीफा दे दिया।
सितम्बर 2024 में श्रीलंका में चुनाव हुए और मार्क्सवादी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके को राष्ट्रपति चुन लिया गया। इस चुनाव में भी जेन जी की भूमिका निर्णायक रही।
वे देश जहां जेन जी ने कड़ा प्रदर्शन किया है
◆म्यांमार
वर्ष 2021 में हमारे एक पड़ोसी देश म्यांमार में आर्मी ने तख्तापलट कर सत्ता हासिल कर ली थी। वहां के जेन जी को ये आर्मी रूल बिल्कुल पसंद नहीं आया। क्योंकि वह अभी तक लोकतंत्र में रहा था। जे जी ने म्यामांर में डिजिटल कैंपेन और प्रोटेस्ट मार्च के जरिए आर्मी का विरोध करना शुरू किया। इसके बदले उन्हें टॉर्चर, अरेस्ट और जान से भी मारा जाने लगा। इस जेन जी के विरोध को रोकने आर्मी ने ब्लैकआउट और इंटरनेट बैन करना शुरू कर किया। अभी भी म्यांमार में जेन जी पिछले 4 साल से लगातार आर्मी रूल को खत्म करने की कोशिश कर रहा है।
◆थाइलैंड में राजशाही के खिलाफ प्रदर्शन
थाइलैंड में आज भी राजशाही है। यहां राजा का पद बेहद पवित्र माना जाता है। कोई उसके खिलाफ बगावत करने की सोच भी नहीं सकता। लेकिन वर्ष 2020 की शुरुआत में यहां के जेन जी ने स्कूलों और यूनिवर्सिटी में राजशाही के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया। कुछ समय बाद कोरोना महामारी के चलते जेन जी को ये प्रदर्शन रोकने पड़े। कुछ महीनों बाद जे जी फिर सड़कों पर उतर आई। थाइलैंड की जेन जी ने पूरी दुनिया को अपनी मांगों की तरफ आकर्षित करने के लिए सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया।
इस प्रदर्शन को खत्म करने के लिए थाइलैंड पुलिस ने दो हजार से ज्यादा युवाओं को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद ये विरोध धीमा पड़ गया। अब भी थाइलैंड का जेन जी राजशाही के खिलाफ अपनी तैयारियां कर रहा है
◆बेलारूस का प्रोटेस्ट
वर्ष 2020 में अलेक्जेंडर लुकाशेंको प्रचंड वोट के साथ सातवीं बार बेलारूस के राष्ट्रपति बने। इस चुनाव में धांधली की बात सामने आने के बाद बेलारूस का जेन जी चुनाव का विरोध करने लगा। इसी के चलते 25 अक्टूबर 2020 को एक लाख से ज्यादा जेन जी प्रदर्शनकारी बेलारूस की राजधानी मिन्स्क पहुंच गए।
उन्हें रोकने के लिए सरकार ने पुलिस ने बल का इस्तेमाल किया। हजारों युवाओं को गिरफ्तार कर लिया गया और इंटरनेट को बंद कर दिया गया। हालांकि जेन जी वहां तख्तापलट करने में कामयाब तो नहीं हो पाया मगर उसने सत्ता की ईंट से ईंट बजा दी।
कुछ अन्य छिटपुट घटनाएं
फ्रांस में इन दिनों ब्लॉक ऐवरीथिंग नामक प्रोटेस्ट चल रहा है। इस प्रोटेस्ट की अगुआई जेन जी कर रहा है। ये युवा, 2026 के बजट के विरोध में नागरिकों से स्कूल-ऑफिस न जाने की अपील कर रहे हैं।
भारत में भी चाहे तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन हो या सीएए का विरोध, दोनों में जेन जी की भूमिका बेहद असरदार रही है। हॉन्गकॉन्ग की जमीन चीन को सौंपने की योजना का विरोध भी जेन जी ने ही किया। इंडोनेशिया में भी जेन जी सत्तारूढ़ सरकार का विरोध कर रहा है।
जेन जी द्वारा विरोध का तरीका
हाल ही में जेन जी ने जितने भी विरोध प्रदर्शन किए हैं। वे सब सोशल मीडिया के माध्यम से ही हुए हैं। ये विरोध इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन शुरू होते हैं और देखते ही देखते सड़क तक पहुंच जाते हैं। इसके लिए जेन जी कुछ प्रतीक चुन लेती है और वह प्रतीक देखते ही देखते ट्रेंड करने लग जाता है। मसलन नेपाल में जेन जी ने नेपो किड्स शब्द को जबरदस्त तरीके से ट्रेंड किया। बांग्लादेश के तख्तापलट के लिए छात्रों ने अपनी डीपी लाल कर ली थी। इसी तरह थाईलैंड में #FreeYouth हैशटैग केवल एक ही दिन में 1 करोड़ पार कर गया। म्यांमार में फौज के शासन को हटाने के लिए जेन जी ने #savemyanmar हैशटैग का इस्तेमाल किया। इसे 14 करोड़ लोगों ने प्रयोग किया।
साफ है कि जेन जी सोशल मीडिया को हथियार बना लेती है। देश-विदेश के किसी भी कोने में होने वाली हर बड़ी घटना सोशल मीडिया, न्यूज एप व सर्च इंजन के जरिए जेन जी तक तुरंत पहुंच जाती है। इस सोशल मीडिया से जेन जी अपना विरोध, चिंताएं आसानी से व्यक्त करके व्यापक समर्थन जुटा लेती है।
इससे भयभीत सरकार सबसे पहला काम करती है इंटरनेट को बंद करने का। सरकार की सोच यह होती है कि सोशल मीडिया के बंद होने से न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। लेकिन सत्ता यहीं गच्चा खा जाती हैं, अचानक इंटरनेट के बंद होने से गुस्साई जेन जी, बांसुरी की बजाए ढ़ोल बजाने चल पड़ती है। विरोध रूपी यह ढ़ोल जेन जी के सड़कों पर उतरने से बजता है। सरकार पुलिस व सेना से जेन जी को कुचलने का प्रयास करती है। चोट खाई जेन जी, सत्ताधारियों की कोठियों में घुस जाती है और तानाशाही को देश छोड़कर भागने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता या फिर वे प्रदर्शनकारियों के हाथों मारे जाते हैं।
यही वजह है कि आज जितने भी तानाशाह हैं या जिनमें थोड़ी-बहुत तानाशाही की प्रवृत्ति है वे जेन जी से बेहद डरे हुए हैं।
भारत में जेन जी
भारत की जनसंख्या में जेन जी सबसे ज्यादा है। हालांकि यहां 2011 के बाद अभी तक जनगणना नहीं कराई गई है लेकिन अनुमान है कि यहां जेन जी का हिस्सा 35 परसेंट है। ये जेन जी दोधारी तलवार के समान है। जेन जी पेशेवर रूप से कुशल तो है लेकिन उसे ज्यादातर समय के लिए धोखे में नहीं रखा जा सकता। नेपाल में तख्तापलट के बाद भारत में जेन जी पर गम्भीरता से चर्चा होने लगी। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने एक प्रेस कांफ्रेंस करके केंद्रीय चुनाव आयोग पर वोट चोरी का आरोप लगाया। इस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने जेन जी को आह्वान किया कि अगर वे सजग हो जाएं तो देश में कथित वोट चोरी को रोक सकते हैं।
इसके कुछ समय बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्र संघ के चुनाव हुए। इन चुनावों में प्रधान पद समेत तीन पद भाजपा के छात्र संगठन एबीवीपी की झोली में आ गए। इस पर भाजपा, कांग्रेस पर हमलावर हो गई कि देखो देश का जेन जी हमारे साथ खड़ा है।
लेकिन भाजपा की यह खुशी ज्यादा देर तक टिकी नहीं रह सकी। लेह-लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर हो रहे जेन जी का प्रदर्शन 24 सितंबर 2025 को हिंसक हो गया। इसमें 4 लोगों की मौत हो गई और 74 लोग घायल हो गए। इस दौरान कई कार्यालयों और पुलिस वाहनों में तोड़फोड़ की गई और उन्हें जला दिया गया। लेह में भाजपा का कार्यालय भी फूंक दिया गया। सोनम वांगचुक, जो इस विरोध प्रदर्शन का चेहरा है, ने इस हिंसा पर दुख व्यक्त करते हुए अपनी 15 दिनों की भूख हड़ताल समाप्त कर दी। वांगचुक ने इस प्रदर्शन को युवाओं का गुस्सा और जेन जी क्रांति करार दिया है।
कुल मिलाकर भारत में जेन जी इतनी बड़ी तादाद में है कि इसे काबू में रखना एक बहुत बड़ा मिशन है। जब तक यह शांत है तब तक देश में शान्ति है। सरकार को चाहिए कि इस बहुत बड़ी युवा वर्कफोर्स को काम में लगाए ताकि देश प्रगति कर सके। ये तभी सम्भव होगा जब ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर पैदा होंगे। वरना बेरोजगारी क्रांति के पथ को भी अपना सकती है। पर देश में सुख-शान्ति रहे यही प्राथमिकता होनी चाहिए। अराजकता किसी भी समस्या का हल नहीं है।
चलते-चलते
चूंकि भारत में जेन जी की बहुत बड़ी जनसंख्या है।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत की संसद में जेन जी का उचित प्रतिनिधित्व है? इसका उत्तर है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भारत में 6 सांसद चुने गए। जबकि राज्यसभा में जेन जी का कोई सांसद नहीं है। इसकी वजह है कि देश में लोकसभा चुनाव के लिए 25 साल और राज्यसभा के लिए 30 साल की उम्र निर्धारित है। अतः राज्यसभा सांसद की योग्यता के लिए जेन जी की उम्र आड़े आ जाती है।
भारत में 6 जेन जी लोकसभा सांसदों में 3 कांग्रेस से 2 समाजवादी पार्टी से और 1 लोकजनशक्ति पार्टी से है।
इनमें कांग्रेस की 26 वर्षीया नेता संजना जाटव ने राजस्थान की भरतपुर सीट से विजय हासिल की है। संजना दलित समुदाय से हैं।
कर्नाटक की बीदर सीट से 26 साल के सागर ईश्वर खांद्रे ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीता है।
कर्नाटक से ही कांग्रेस की प्रत्याशी प्रियंका सिंह जरकीहोली ने कर्नाटक की अनारक्षित सीट चिकोडी से जीत दर्ज की है। 16 अप्रैल 1997 को जन्मीं प्रियंका अब तक की सबसे युवा महिला आदिवासी सांसद हैं।
समाजवादी पार्टी से यूपी की कौशांबी सीट से 25 साल के पुष्पेंद्र सरोज ने जीत दर्ज की है।
समाजवादी पार्टी से ही यूपी की मछलीशहर सीट से जीतने वाली प्रिया सरोज भी केवल 25 साल की हैं।
लोक जनशक्ति पार्टी की टिकट पर 25 वर्षीया शांभवी चौधरी ने बिहार की समस्तीपुर सीट से जीत हासिल की है।
हैरतअंगेज बात यह है कि विश्व में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का दावा करने वाली भाजपा का जेन जी का कोई भी सासंद नहीं है। वैसे भी लोकसभा के कुल 543 सदस्यों में से 240 सदस्य भाजपा के ही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार युवा शक्ति को आगे लाने की बात करते हैं लेकिन ऐसा उनकी पार्टी में सांसदों के रूप में दिखाई नहीं देता।
एक संसदीय समिति ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने की तय उम्र 25 से घटाकर 18 साल करने की सिफारिश की है। कानून और कार्मिक संबंधी समिति का मानना है कि ऐसा करने से युवाओं को लोकतंत्र का हिस्सा बनने का समान अवसर मिलेगा. इस समिति ने कहा है कि लोकतंत्र में युवा जिम्मेदार और भरोसेमंद प्रतिभागी साबित हो सकते हैं।
देखते हैं कि जेन जी क्या-क्या गुल खिलाती है।