आईआईटी, गुवाहाटी का अहम अध्यन, डिजिटल क्रांति ने बदल दी शहरों में खानपान की संस्कृति

गुवाहाटी।भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के एक अभूतपूर्व अध्ययन ने देश के शहरी क्षेत्रों में खानपान संस्कृति में डिजिटल क्रांति के प्रभाव को उजागर किया है। विशेष रूप से नई दिल्ली के संदर्भ में किये गये इस अध्ययन से देशभर के शहरी मध्यम वर्ग के खानपान व्यवहार और सामाजिक गतिशीलता पर सोशल मीडिया और फूड डिलिवरी ऐप्स के गहरे प्रभाव को समझा गया है। संस्थान के मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. ऋतुपर्णा पाटगिरी के इस शोध को प्रतिष्ठित *सोशियोलॉजिकल बुलेटिन (SAGE पब्लिकेशन्स)* में प्रकाशित किया गया है। यह अध्ययन न केवल शहरी भारत में खानपान प्रथाओं में बदलाव को दर्शाता है, बल्कि डिजिटल तकनीक के कारण सामाजिक असमानताओं, जैसे जाति, वर्ग और लिंग आधारित अंतर, को भी रेखांकित करता है।

प्रमुख निष्कर्ष: डिजिटल खानपान संस्कृति का राष्ट्रीय प्रभाव
– **डिजिटल खानपान का उदय**: शहरी भारत, विशेष रूप से मध्यम वर्ग के युवाओं में, फूड डिलिवरी ऐप्स और सोशल मीडिया पर ऑनलाइन रिव्यूज ने खानपान को रोजमर्रा का हिस्सा बना दिया है। यह रुझान दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे महानगरों से लेकर छोटे शहरी केंद्रों तक फैल रहा है।

– **प्लेटफॉर्म-निर्भर खाद्य अर्थव्यवस्था**: सर्च इंजन, सोशल मीडिया और कंटेंट एग्रीगेशन प्लेटफॉर्म खाद्य-संबंधी जानकारी के डिजिटल गेटकीपर बन गए हैं, जो उपभोक्ताओं के भोजन तक पहुंच को नियंत्रित करते हैं। यह बदलाव राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है।

– **सामाजिक असमानताओं का सुदृढ़ीकरण**: अध्ययन में पाया गया कि डिजिटल खानपान संस्कृति मुख्य रूप से उच्च और मध्यम वर्ग तक सीमित है। फूड ब्लॉगिंग, ऑनलाइन रिव्यूज और सौंदर्यपूर्ण खानपान प्रस्तुति जैसी प्रथाएं शहरी elitism को बढ़ावा दे रही हैं, जबकि छोटे व्यवसाय और निम्न सामाजिक-आर्थिक समूह इससे बाहर रह जाते हैं।

– **खाद्य चक्र में नया चरण**: डॉ. पाटगिरी ने खाद्य चक्र में एक नए चरण—’डिजिटलीकरण’—को जोड़ा है। यह नया दृष्टिकोण राष्ट्रीय स्तर पर खानपान के अध्ययन को फिर से परिभाषित कर सकता है।

राष्ट्रीय महत्व
यह अध्ययन राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत की शहरी खानपान संस्कृति में डिजिटल तकनीक के प्रभाव को समझने का पहला व्यापक प्रयास है। यह न केवल उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव को दर्शाता है, बल्कि डिजिटल युग में सामाजिक समावेशिता, आर्थिक असमानता और सांस्कृतिक परिवर्तन जैसे बड़े मुद्दों पर भी प्रकाश डालता है।

डॉ. ऋतुपर्णा पाटगिरी ने कहा, “डिजिटल तकनीक ने खानपान को एक नए युग में पहुंचा दिया है। यह अध्ययन भारत के शहरी समाज में डिजिटल खानपान संस्कृति के प्रभाव और इसके सामाजिक निहितार्थों को समझने का एक महत्वपूर्ण कदम है।”

व्यापक प्रभाव और नीतिगत निहितार्थ
यह शोध नीति निर्माताओं, खाद्य उद्योग और सामाजिक संगठनों के लिए महत्वपूर्ण सवाल उठाता है। डिजिटल खानपान संस्कृति के इस उभार से छोटे खाद्य व्यवसायों और निम्न सामाजिक-आर्थिक समूहों को शामिल करने की आवश्यकता पर जोर देता है। साथ ही, यह डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की भूमिका को विनियमित करने और समावेशी नीतियों को बढ़ावा देने की जरूरत को रेखांकित करता है।

कुल मिलाकर आईआईटी गुवाहाटी का यह अध्ययन न केवल शहरी भारत में खानपान की बदलती तस्वीर को उजागर करता है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर डिजिटल युग में सामाजिक और आर्थिक समावेशिता की चुनौतियों पर भी प्रकाश डालता है। यह शोध देश के नीति निर्माताओं, खाद्य उद्योग और सामाजिक संगठनों के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो डिजिटल खानपान संस्कृति के भविष्य को आकार देने में मदद कर सकता है।

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