असम में PDS चावल में ‘प्लास्टिक’ की अफवाह, सच या भ्रम?

सत्यनारायण मिश्र

गुवाहाटी।  असम में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत गरीब और जरूरतमंद परिवारों को वितरित होने वाले चावल को लेकर एक गंभीर विवाद छाया हुआ है। कई इलाकों में उपभोक्ताओं ने शिकायत की है कि PDS के चावल में ‘प्लास्टिक’ जैसे दिखने वाले दाने बड़ी मात्रा में मिल रहे हैं। सोशल मीडिया और स्थानीय चर्चाओं में यह अफवाह जोरों पर है कि ये चावल नकली हैं, और इन्हें कथित तौर पर चीन से आयात किया गया है। लेकिन क्या यह सच है, या केवल एक भ्रामक अफवाह? हमारी विशेष जांच में सामने आए तथ्य और विशेषज्ञ विश्लेषण इस रहस्य से पर्दा उठाते हैं।
उपभोक्ताओं की चिंता: ‘प्लास्टिक चावल’ का डर
असम के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में PDS के तहत मिलने वाले चावल को लेकर उपभोक्ताओं में असंतोष बढ़ रहा है। कई परिवारों का दावा है कि चावल के दाने सामान्य चावल से अलग दिखते हैं – ये चमकीले, सख्त, और कभी-कभी चबाने पर खिंचते हैं। कुछ लोगों ने पानी में डालने पर दानों के तैरने या जलाने पर प्लास्टिक जैसी गंध आने की बात कही है। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो और पोस्ट ने इस डर को और बढ़ावा दिया है, जिसमें दावा किया गया कि ये ‘प्लास्टिक चावल’ चीन से आयात किए जा रहे हैं और PDS की आपूर्ति श्रृंखला में शामिल हो गए हैं।
“हमने चावल को पानी में डाला तो कुछ दाने तैरने लगे। इसे जलाने पर प्लास्टिक जैसी गंध आई। क्या हमारी जान से खिलवाड़ हो रहा है?” – गुवाहाटी के नूनमाटी इलाके के एक स्थानीय उपभोक्ता ने यह चिंता जताई।
तथ्य की पड़ताल: फोर्टिफाइड चावल या प्लास्टिक?
हमारी जांच में सामने आया कि इस विवाद का मुख्य कारण फोर्टिफाइड चावल (Fortified Rice) है, जिसे सूत्रों के मुताबिक भारत सरकार ने कुपोषण से निपटने के लिए PDS, मिड-डे मील, और अन्य योजनाओं में शामिल किया है। फोर्टिफाइड चावल में आयरन, जिंक, विटामिन बी-12, और फोलिक एसिड जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाए जाते हैं। ये पोषक तत्व चावल के चूरे और अन्य सामग्रियों से बने कृत्रिम दानों के रूप में चावल में मिश्रित किए जाते हैं।
क्यों लगता है प्लास्टिक जैसा?
फोर्टिफाइड चावल के दाने सामान्य चावल से थोड़े अलग रंग, बनावट, या आकार के हो सकते हैं। ये दाने चबाने पर आसानी से नहीं टूटते और कभी-कभी खिंचते हैं, जिसके कारण लोग इन्हें प्लास्टिक समझ लेते हैं।
वैज्ञानिक आधार:
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दिशानिर्देशों के तहत फोर्टिफाइड चावल पूरी तरह सुरक्षित और पौष्टिक है। इसे बिना धोए पकाने की सलाह दी जाती है ताकि पोषक तत्व बने रहें।
जागरूकता की कमी: विशेषज्ञों का कहना है कि असम सहित कई राज्यों में उपभोक्ताओं को फोर्टिफाइड चावल के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं दी गई है। इससे सामान्य चावल से अलग दिखने वाले दानों को नकली या प्लास्टिक मान लिया जाता है।
चीन कनेक्शन: अफवाह या हकीकत?
सोशल मीडिया पर वायरल दावों में कहा जा रहा है कि ‘प्लास्टिक चावल’ का स्रोत चीन है। लेकिन क्या यह दावा तथ्यों पर टिकता है? हमारी जांच में निम्नलिखित तथ्य सामने आए:
चीन का चावल निर्यात: चीन दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक है, लेकिन यह चावल का बड़े पैमाने पर निर्यात नहीं करता। दूसरी ओर, भारत चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और सबसे बड़ा निर्यातक है। PDS के लिए चावल मुख्य रूप से भारत में ही उत्पादित और खरीदा जाता है।
प्लास्टिक चावल की अव्यवहार्यता
विशेषज्ञों के अनुसार, प्लास्टिक से चावल जैसा पदार्थ बनाना तकनीकी रूप से संभव है, लेकिन इसे बड़े पैमाने पर उत्पादित करना और PDS में मिलाना आर्थिक रूप से अव्यवहार्य है। प्लास्टिक चावल की लागत सामान्य चावल से कहीं अधिक होगी।
पिछले मामले: 2017 में छत्तीसगढ़ और 2019 में उत्तर प्रदेश में भी ‘प्लास्टिक चावल’ की शिकायतें सामने आई थीं। जांच में ये दावे निराधार पाए गए, और ज्यादातर मामलों में फोर्टिफाइड चावल या स्थानीय मिलावट को कारण बताया गया। असम में भी ऐसी शिकायतों की जांच में अब तक कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।
असम के खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग के एक सूत्र के अनुसार ऐसी शिकायतों को गंभीरता से लिया गया है। प्रारंभिक जांच में फोर्टिफाइड चावल को ही विवाद का कारण बताया गया है। हालांकि सूत्र के मुताबिक प्रशासन की ओर से कई कमियाँ भी सामने आई हैं: जागरूकता अभियान की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों मं उपभोक्ताओं को फोर्टिफाइड चावल के लाभों और इसकी पहचान के बारे में जानकारी देने के लिए कोई व्यापक अभियान नहीं चलाया गया।
पारदर्शिता का अभाव: जांच के परिणामों को सार्वजनिक करने में देरी और अफवाहों पर त्वरित प्रतिक्रिया की कमी ने उपभोक्ताओं का भरोसा कम किया है।
आपूर्ति श्रृंखला की निगरानी: हालांकि बड़े पैमाने पर ‘प्लास्टिक चावल’ की बात निराधार है, स्थानीय स्तर पर मिलावट या निम्न गुणवत्ता के चावल की संभावना से पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता।
विशेषज्ञों की राय है कि “प्लास्टिक चावल की अफवाहें ज्यादातर फोर्टिफाइड चावल की गलत समझ से उत्पन्न हुई हैं। यह तकनीकी रूप से संभव नहीं है कि कोई बड़े पैमाने पर प्लास्टिक चावल बनाकर PDS में मिलाए। सरकार को जागरूकता बढ़ाने और आपूर्ति श्रृंखला की पारदर्शिता सुनिश्चित करने पर ध्यान देना चाहिए।” “फोर्टिफाइड चावल कुपोषण से लड़ने का एक प्रभावी उपाय है। लेकिन इसके बारे में लोगों को शिक्षित करना जरूरी है, वरना ऐसी अफवाहें भरोसे को कमजोर करती रहेंगी।”
उपभोक्ताओं के लिए सुझाव
उपभोक्ताओं को सतर्क रहने और अफवाहों पर विश्वास करने से बचने की सलाह दी जाती है। निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
चावल की जाँच:
पानी टेस्ट: चावल को पानी में डालें। फोर्टिफाइड चावल सामान्य चावल की तरह व्यवहार करता है। प्लास्टिक (यदि हो) तैर सकता है, लेकिन यह दुर्लभ है।
जलाने का टेस्ट: चावल जलाने पर राख बननी चाहिए। प्लास्टिक पिघलेगा और उसकी गंध आएगी।
सावधानी बरतें।
पकाने का टेस्ट: फोर्टिफाइड चावल को सामान्य चावल की तरह पकाएँ। इसे बिना धोए पकाना बेहतर है।
शिकायत दर्ज करें: यदि चावल में कुछ असामान्य लगे, तो स्थानीय खाद्य निरीक्षक, कोटेदार, या जिला प्रशासन से संपर्क करें। नमूने जमा करें और जांच की मांग करें।
जागरूकता बढ़ाएँ: फोर्टिफाइड चावल के लाभों को समझें और दूसरों को भी बताएँ।
सरकार के लिए सिफारिशेः
जागरूकता अभियान: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में फोर्टिफाइड चावल के बारे में व्यापक जागरूकता अभियान चलाए जाएँ। इसमें पोस्टर, वीडियो, और सामुदायिक प्रदर्शन शामिल हों।
त्वरित जांच: शिकायतों पर तुरंत जांच हो, और परिणाम सार्वजनिक किए जाएँ। FSSAI या प्रमाणित प्रयोगशालाओं में नमूनों की जाँच अनिवार्य हो।
आपूर्ति श्रृंखला की निगरानी: PDS चावल की गुणवत्ता और शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए आपूर्ति श्रृंखला की कड़ी निगरानी हो।
सोशल मीडिया पर कार्रवाई: भ्रामक वीडियो और पोस्ट को रोकने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के साथ सहयोग करें।
निष्कर्ष: भरोसा बहाल करने की जरूरत
असम में PDS चावल में ‘प्लास्टिक’ की शिकायतें मुख्य रूप से फोर्टिफाइड चावल की गलत समझ और जागरूकता की कमी से उपजी हैं। चीन से ‘प्लास्टिक चावल’ आयात की बात सोशल मीडिया अफवाहों का हिस्सा है, जिसके कोई ठोस सबूत नहीं हैं। फोर्टिफाइड चावल कुपोषण के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन इसके लाभ तभी मिलेंगे जब उपभोक्ताओं का भरोसा जीता जाए। सरकार को पारदर्शिता, जागरूकता, और जवाबदेही पर ध्यान देना होगा। उपभोक्ताओं को भी सतर्कता और सही जानकारी के साथ इस पहल का समर्थन करना चाहिए। यह समय है कि अफवाहों को सच से परास्त किया जाए, ताकि PDS जैसी कल्याणकारी योजना अपनी सार्थकता सिद्ध कर सके।
संपर्क: यदि आपके पास इस मुद्दे से संबंधित कोई जानकारी या शिकायत है, तो कृपया अपने जिला खाद्य और नागरिक आपूर्ति कार्यालय से संपर्क करें।
(लेखक एक स्वतंत्र एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं और जनहित में ऐसे मुद्दों को उजागर करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।)

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