रीता झा
नारी हूं मैं… हां एक नारी हूं मैं। ना हारी थी.. और ना हारी हूं मैं।सब कहते हैं अबला हूं मैं मगर जानती हूं मैं कि सबला हूं मैं।.. अनेकों रूप है मेरे…. क्योंकि नारी हूं मैं…!
बनकर कभी सीता, पति के सम्मान को बनवास जाती हूं तो कभी, सावित्री बनकर यम से पिया को छुड़ा कर लाती हूं।
बनकर कभी गौरी, शिव का प्रेम पाने को तपस्या घोर करती हूं तो कभी सती बनकर पति के सम्मान की रक्षा भी करती हूं।। बनकर कभी राधा, विरह की आग सहती हूं।। क्योंकि नारी हूं मैं..बनकर कभी काली, असुरों का संहार करती हूं तो कभी
गांधारी बनकर पतिव्रत धर्म का पालन भी करती हूं। कभी बनकर अहिल्या,…… निर्दोष होकर भी, ढो कर पाप दूसरों के, शिला का रूप धरती हूं।। ….. क्योंकि नारी हूं मैं..।.. ना हारी हूं मैं।
सृजन भी सृष्टि का मैं ही करती हूं कभी अन्नपूर्णा तो कभी सरस्वती का रूप धरती हूं। देवी बनकर मंदिरों में पूजी जाती हूं तो बनकर कभी दासी, अपमान भी पाती हूं क्योंकि नारी हूं मैं हां एक नारी हूं मैं।
बिना दुआओं के ही मैं इस दुनिया में आती हूं और फिर ताउम्र दुआएं सबके लिए मांगती रह जाती हूं। कभी पति की लंबी उम्र और कभी तरक्की के लिए तो कभी बच्चों की खुशियों के लिए..
कभी परिवार की खुशहाली के लिए दुआएं मांगती हूं मैं। क्योंकि नारी हूं मैं…हां एक नारी हूं मैं! पति और बच्चे दीर्घायु हो.. उनकी तरक्की पर तरक्की हो.. उम्र बढ़े… वंश बढ़े …. नाम बढ़े..
लेकिन खुद के लिए….
खुद के लिए तो है कि… डोली में आई थी अर्थी पर जाऊं पति और बेटे के कंधे पर जाऊं।।
सबकी खुशी सबका ख्याल, पर अपना क्या…? मैं तो उन सब की खुशी में ही खुश हूं!! खुद को यह समझाती हूं मैं….. क्योंकि नारी हूं मैं।
सारा जीवन घर को, समर्पित करने के बाद “किया क्या है, तुमने हमारे लिए” यह सुनने के बाद… अपने प्रेम कर्तव्य और निष्ठा का, यह प्रतिदान मिलने के बाद… भी सिर्फ दुआएं ही देती हूं मैं… क्योंकि नारी हूं मैं।
पी लेती हूं आंखों के आंसू ओढ़ लेती हूं चेहरे पर मुस्कुराहट करती हूं तैयारी, अपने जीवन के अगले धर्म युद्ध की। क्योंकि नारी हूं मैं, ना हारी हूं मैं।।
यथा किसी कवि ने लिखा है,” मेरे लिए” “हा अबला … तेरी यही कहानी आंचल में है दूध और आंखों में पानी।”
क्योंकि नारी हूं मैं… ना हारी हूं मैं !!