सरकार स्पष्ट करें प्लेसमेंट एजेंसी के साथ क्या है संबंध
कांकेर। प्लेसमेंट कर्मचारियों के मांगों के समर्थन में मजदूर नेता नजीब कुरेशी और सुखरंजन नंदी नगरीय निकायों के अस्थाई कर्मचारी विगत 25 दिनों से तीन सूत्रीय मांगों पर आंदोलनरत है। सरकार को निकाय के सभी प्लेसमेंट कर्मचारी को निकाय के कर्मचारी घोषित करना चाहिए।प्लेसमेंट के कारण कर्मचारियों का शोषण अधिक हो रहा है।
प्लेसमेंट नहीं, निकाय के कर्मचारी है।
तथाकथित प्लेसमेंट कर्मचारियों की नियुक्ति प्लेसमेंट एजेंसी के द्वारा नहीं किया गया है,प्लेसमेंट कर्मचारी को ड्यूटी पर नगर पालिका या नगर पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के निर्देश पर लगाया जाता है इनकी हजारी भी नगर पालिका या पंचायत के हाजिरी रजिस्टर या निष्ठा ऐप में लगता है ।इन कर्मचारियों को सीएमओ ही काम से निकाल देता है। अगर इन कर्मचारियों को प्लेसमेंट एजेंसी नियुक्त करती फिर सीएमओ को यह अधिकार नहीं होता।
प्लेसमेंट एजेंसी ने निकायों में कार्य करने के लिए किसी भी कर्मचारी का चयन भी नहीं करता है और न ही कोई कर्मचारी संबंधित प्लेसमेंट एजेंजी के पास रोजगार के लिए कोई आवेदन प्रस्तुत करते है।फिर प्लेसमेंट एजेंसी किस तरह इन कर्मचारियों को निगम में कार्य के लिए भेज सकते है?
सरकार की एक तुगलकी आदेश ने नगरीय निकायों के कर्मचारियों को प्लेसमेंट कर्मचारी की और धकेल दिया है। जब कि प्लेसमेंट के नाम पर सिर्फ कर्मचारियों के कुल वेतन का एक निश्चित प्रतिशत राशि सर्विस चार्ज के नाम पर मोटी रकम प्लेसमेंट एजेंसी को भुगतान किया जाता है। असल में प्लेसमेंट के नाम पर इन एजेंसियां सिर्फ निकायों से कर्मचारियों का वेतन की राशि लेते है और 20 से 25 दिन बाद कर्मचारियों को वेतन भुगतान करते है। सरकार का प्लेसमेंट का आदेश सिर्फ कर्मचारियों के वेतन भुगतान में ठेका प्रथा लागू करना है। प्लेसमेंट के नाम पर सिर्फ एजेंसियों को लाभान्वित करने के लिए प्रदेश की जनता का पासा को लुटाया जा रहा है।जबकि वास्तविकता यह है प्लेसमेंट एजेंसी सिर्फ दस्तावेज में है जमीनी स्तर पर प्लेसमेंट एजेंसी की कर्मचारियों के नियोग में कोई भी भूमिका नहीं है। नियोग के नाम पर प्लेसमेंट एजेंसी मोटी रकम निकायों से वसूली कर रहे है।
क्या रिश्ते है सरकार और प्लेसमेंट एजेंसी के बीच
सरकारी आदेश में उल्लेख है कि सरकार अपनी मितव्ययता के कारण कर्मचारियों का प्लेसमेंट में नियुक्ति दे रही है। लेकिन प्लेसमेंट एजेंसी निकायों से प्लेसमेंट कर्मचारियों के कुल वेतन के 25 प्रतिशत से अधिक राशि सर्विस चार्ज के रूप में वसूली करते है। किसी किसी पालिका या पंचायतों में प्लेसमेंट कर्मचारियों के कुल वेतन का 31 प्रतिशत भी संबंधित एजेंसी को नगरीय निकाय के द्वारा भुगतान किया जाता है। फिर ये फिजूल खर्च सरकारी वित्तीय भार को बढ़ा रही है जो एक अनावश्यक खर्च है ।सरकार सिर्फ प्लेसमेंट एजेंसी को लाभ पहुंचाने के लिए यह प्लेसमेंट प्रक्रिया को शुरू किया है। एक तरफ सरकार कर्मचारियों को मासिक 4000 श्रम सम्मान राशि नहीं दे रही है वहीं दूसरी तरफ वे वजह प्लेसमेंट एजेंसियों की करोड़ों रुपए का सर्विस चार्ज भुगतान कर रही है। सरकार के लिए कर्मचारियों से ज्यादा अहमियत प्लेसमेंट एजेंसी है। जबकि पालिका के कर्मचारी नागरिकों की मूलभूत आवश्यकता के प्रति प्रतिबद्ध कोरोना महामारी के समय यह कर्मचारी अपने जान को जोखिम में डालकर नगर के नागरिकों का सेवा किया है ,आज वो कर्मचारी उपेक्षित है।
श्रम कानूनों का हो रहा उल्लंघन
सरकार की प्लेसमेंट की नीति के कारण एक तरफ प्रदेश की गरीब जनता के पैसा का दुरुपयोग कर प्लेसमेंट एजेंसी को करोड़ों रुपए का लाभ पहुंचाने का काम सरकार कर रही है वहीं दूसरी तरफ प्लेसमेंट एजेंजी और निकायों के अधिकारियों की मिलीभगत कर श्रम कानूनों का धज्जियां उड़ा कर गरीब कर्मचारियों का अधिकार छीन लिया जा रहा है।
जो कर्मचारी 1997 से निकायों में कार्यरत है उनका 17 वर्ष तक भविष्यनिधि फंड में कोई राशि जमा नहीं किया गया। अभी भी भविष्टनिधि खाते में नियमित रूप से राशि प्लेसमेंट एजेंसी जमा न कराकर करोड़ों रुपए आत्मसात कर रही है।उल्लेखनीय है कि भविष्यनिधि फंड में कर्मचारी और नियोक्ता का अंशदान प्रत्येक के 12 प्रतिशत होता है।लेकिन कर्मचारियों के अंशदान नगर पालिका और प्लेसमेंट एजेंसी वेतन से काट कर भविष्टनिधि फंड में जमा नहीं किया है।
पेंशन के अधिकार से हो जायेंगे वंचित
अगर भविष्यनिधि खाते में 10 वर्ष तक राशि जमा नहीं होता है फिर कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद पेंशन के अधिकार से वंचित हो जायेंगे। पालिका के अधिकारियों की लापरवाही के कारण निकाय के अनेकों कर्मचारी पेंशन के अधिकार से वंचित हो जायेंगे।
कर्मचारियों को नहीं मिलता है ग्रेच्युटी
श्रम कानूनों के मुताबिक किसी संस्था में कोई कर्मचारी अगर कार्य करता है तो वे ग्रेच्युटी के पात्र हो जाते है।और कार्य से जब वे मुक्त हो जाते है तब उन्हें एक मुश्त ग्रेच्युटी की राशि का भुगतान नियोक्ता द्वारा किया जाता है। लेकिन प्लेसमेंट कर्मचारी होने के कारण प्रति वर्ष प्लेसमेंट एजेंसी बदल जाएंगे ,लेकिन कर्मचारी पालिका या पंचायतों वर्षों तक कार्य करने के बाद भी वे ग्रेच्युटी के लाभ से वंचित रह जायेंगे।
ई एस आई की राशि जमा नहीं
सरकार के आदेश में उल्लेखित है कि श्रमिकों को ई एस आई के पैसा जमा करना है। इस मद पर नियोक्ता कर्मचारी के वेतन के 3.25प्रतिशत और कर्मचारी 0.75 प्रतिशत जमा करना होता है लेकिन प्लेसमेंट एजेंसी ने इस मद पर कोई राशि जमा किया है इसका कोई सबूत कर्मचारी के पास नहीं है।नतीजन कर्मचारी और उनको बुजुर्ग माता पिता और परिवार के सदस्यों को मुफ्त इलाज की सुविधा नहीं हासिल हुई है।
देर से होता है वेतन का भुगतान
पालिका के प्लेसमेंट कर्मचारी का वेतन का भुगतान 25 से 26 दिन विलंब से होता है। श्रम कानून के नियम के अनुसार प्रत्येक माह के 7 तारीख तक कर्मचारियों का वेतन भुगतान हो जाना चाहिए। देर से वेतन भुगतान की स्थिति में कर्मचारियों की क्षतिपूर्ति की साथ भुगतान करना पड़ता है।
मुख्य कार्यपालन अधिकारी भी है जिम्मेदार
पालिका है कर्मचारियों की मुख्य नियोक्ता। उपरोक्त सभी विसंगतियों के लिए ठेकेदार या प्लेसमेंट एजेंसी के समान रूप से जिम्मेदार नगर पालिका और नगर पंचायतों के अधिकारी भी है। क्यों कि प्लेसमेंट एजेंसी श्रम कानूनों का सही ढंग से पालन कर रहा है या नहीं उसकी निगरानी नगर पालिका और पंचायतों के जिम्मेदार अधिकारी को करना है।
उपरोक्त सभी विसंगतियों पर जिला प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराया गया है। जिला प्रशासन उपरोक्त विषयों पर जांच कर रही है।
कर्मचारी इस गतिरोध को दूर कर काम पर लौटना चाहते है।
कर्मचारियों का उद्देश्य हड़ताल पर डटे रहकर नागरिकों को परेशान करना नहीं है। वे इस समस्या का समाधान चाहते है।एक जीने लायक सम्मानजनक वेतन,श्रम कानूनों का पालन, श्रम कानूनों के उल्लंघन के लिए दोषी व्यक्तियों पर कानूनी कार्यवाही हो।
जिला प्रशासन से आग्रह है कि इस गतिरोध को जल्द से जल्द समाप्त करने के दिशा में उचित पहल करें।