इतिहास के पन्नों में दर्ज़ कफ्फ़ू चौहान की वीरता और बहादुरी की याद दिलाता है उप्पू गढ़ मेला

शीशपाल गुसाईं

देहरादून।  टिहरी गढ़वाल जिले के उदयपुर परगना के जुवा पट्टी में गंगा भगीरथी नदी के किनारे ऊंचे टीले पर स्थित उप्पूगढ़ किले की कहानी स्वतंत्रता की भावना और पराधीनता के विरुद्ध विद्रोह की मिसाल है।

उन दिनों उप्पूगढ़ का शासक चौहान वंश का एक युवक कफ्फू चौहान था, जो अपने किले की स्वायत्तता को सबसे अधिक महत्व देता था। कफ्फू चौहान के अपने किले के प्रति प्रेम और किसी की अधीनता स्वीकार न करने की उसकी परीक्षा तब हुई जब दक्षिणी किलों के शासकों ने बिना किसी लड़ाई के महाराज अजयपाल की सुरक्षा स्वीकार कर ली। दासता के इस प्रदर्शन से दुखी कफ्फू चौहान ने उनके उत्सव में भाग लेने से इनकार कर दिया और यह स्पष्ट कर दिया कि वह किसी के सामने झुकेगा नहीं।

कफ्फू चौहान की अवज्ञा से क्रोधित महाराज अजयपाल ने उप्पूगढ़ पर हमला करने के लिए एक बड़ी सेना भेजी। शाम होते-होते श्रीनगर की सेना गंगा भागीरथी के उस पार एकत्र हो गई, जहां दोनों तरफ केवल एक झूला पुल था। उप्पूगढ़ का किला भागीरथी नदी की गर्जन करती लहरों और दुश्मन सेना की भयावह दृष्टि का सामना करते हुए दृढ़ था।जब कफ़्फ़ू चौहान की माँ ने नदी के उस पार सेना को देखा, तो उसने अपने बेटे से उनकी उपस्थिति का कारण पूछा। कफ़्फ़ू चौहान ने अपनी आवाज़ में दृढ़ता के साथ समझाया कि राजा अजयपाल उनकी स्वतंत्रता से परेशान थे और जबकि कई अन्य गढ़पतियों ने उनकी सर्वोच्चता को स्वीकार कर लिया था, उप्पूगढ़ उनके सामने झुकने वाला नहीं था।

अपनी अवज्ञा में  कफ़्फ़ू चौहान ने खुद की तुलना जानवरों के बीच शेर और पक्षियों के बीच गरुड़ से की जो उनकी ताकत और गरिमा का प्रतीक था। चेतावनियों और धमकियों के बावजूद, वह अपने किले की स्वायत्तता और किसी के शासन के अधीन होने की अनिच्छा में दृढ़ रहे। कफ्फू चौहान की कहानी वीरता और दृढ़ संकल्प की है। संख्या और पराक्रम में कम होने के बावजूद, कफ्फू चौहान ने निडरता से राजा अजय पाल की सेना को अपनी भूमि पर आने और युद्ध में उनका सामना करने के लिए चुनौती दी। अपने सिद्धांतों और अपनी मातृभूमि के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता से सैकड़ों लोगों उप्पूगढ़ में वार्षिक मेले में उनकी पूजा करने के लिए दूर-दूर से आने के लिए प्रेरित होते हैं। हालाँकि कफ्फू चौहान को अंततः राजा अजय पाल की सेना ने हरा दिया, लेकिन उनकी विरासत उप्पूगढ़ के लोगों के दिलों और दिमाग में ज़िंदा है।

उप्पूगढ़ के वीर भड़ कफ्फू चौहान की याद में 21 गते बैसाख यानी आज 3 मई को उप्पूगढ़ में मेला लगता है। यह मेला उप्पूगढ़ के लोगों के लिए एक यादगार अवसर है क्योंकि यह कफ्फू चौहान के साहस और वीरता की याद दिलाता है, जो करीब पौने सात सौ साल पहले राजा अजय पाल की शक्तिशाली सेना के खिलाफ खड़े हुए एक महान योद्धा थे।

उन्हें युद्ध में उनकी जीत के लिए नहीं, बल्कि उनके साहस और अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ़ उनके द्वारा उठाए गए कदम के लिए याद किया जाता है। कफ़्फ़ू चौहान और उप्पूगढ़ की कहानी स्वतंत्रता और आज़ादी के महत्व, विपरीत परिस्थितियों का सामना करने और अपने सिद्धांतों को सबसे ऊपर रखने की याद दिलाती है। यह साहस, दृढ़ संकल्प और अधीनता के खिलाफ़ अवज्ञा की अटूट भावना की कहानी है। उप्पू गढ़ मेला गढ़पति कफ्फ़ू चौहान की स्थायी विरासत का एक वसीयतनामा है।

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