अल्मोड़ा। लोकसभा सीट का जंग अब पूरी तरह से बिसात बिछाकर एक दूसरे दल में सेंधमारी करनेे की रोचकता में तब्दील होतीं नजर आ रहा है। सीट पर कांग्रेस के लिए सेंधमारी की कोशिशें करतीं भाजपा के चक्रव्यूह को तोड़ाना और संसाधनों को जुटाना चुनौतिपूर्ण बना हुआ है तो, साख बचाने में जुटीं भाजपा के लिए कांग्रेस से टूटकर आने वाले सियासतदां के लिए नई राजनैतिक जमीन तलाशने की सशर्ते चुनौती। ऐसे हालातों में पार्टी में पहले से मौजूद झंडाबरदारों की जमात को दरकिनार कर लक्ष्य हासिल करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। वहीं, लगातार भाजपा की सेंधमारी से कांग्रेस का कुनबा जहां सीमटता जा रहा है तो दूसरीं ओर कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ रहा है।
प्रदेश की एकमात्र सुरक्षित अल्मोड़ा सीट की जंग लगातार बदलते परिदृश्य के बीच पहले से भी कहीं अधिक रोचक और कांटेदार होने की संभावनाओं को पंख लगा रही है। इस बार कांग्रेस पार्टी को उम्मीद थी कि पार्टी संगठन एंटी इनकंबेंसी की लहर के जरिए लोकसभा क्षेत्र की जनता को प्रभावित करने में कामयाब हागी और सीमांत सीट पर भाजपा के नब्बे के दौर से चले आ रहे वर्चस्व को ध्वस्त करने में जरुर सफलता हासिल करेगी।
लेकिन, पार्टी का लगातार टूट रहा कुनबा अब कांग्रेस की इस उम्मीद के अरमानों में पानी फेरता नजर आ रहा है। अब तक घटे घटनाक्रम में लोकसभा के चारों जिलों से कई कद्दावर कांग्रेसी नेता भाजपा का दामन थाम चुके है। ऐसी स्थिति में जहां कांग्रेस संगठन लगातार कमजोर हो रहा है। वहीं पार्टी के रणनीतिकारों के लिए भाजपा के चक्रव्यूह को तोोोड़ड़ने और कुनबा बचाने की दोहरी चुनौती से जूझना पड़ा रहा है। बहरहाल राजनैतिक विश्लेषक, कांग्रेस पार्टी के लिए मनोबल और प्रतिकूल परिस्थिति में संसाधनों को जुटाना सबसे बड़े चुनौती मान रहे है। हालांकि, कांग्रेस भी अब भाजपा के कुनबे में सेंधमारी कर गढ़े मजबूत करने का दंभ भर रहीं है।
इधर भाजपा संगठनात्मक मजबूती लिए लगातार फ्रंटफुट में आकर सीट पर जोड़ तोड़ की राजनीति में जरुर कामयाब होती नजर आ रही है। लेकिन, पार्टी के अंदर उबर रहीं अदावत की भावना पार्टी के लिए चुनौती खड़े कर रही है। जो चुनाव संचालन से लेकर प्रबंधन में साफ तौर पर देखने को मिल रहा है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की भी सीट से बाहर प्रचार प्रसार में अपनी ताकत झोंकना भी तमाम तरह के सवाल उठा रहा है।
वहीं, पार्टी के खांटीं के दावेदार और झंडाबरदार नेताओं की उदासीनता ने भी पेशानी पर लकीरें खींचने का काम जरुर किया है। बहरहाल, सीट पर जीत को लेकर भाजपा जीतना दंभ भर रहीं है, हालातों और बदलतीं परिस्थितियों को देखकर सीट की जंग दोनों ही राष्ट्रीय दलों के लिए जरुर टेढ़े खीर साबित होगा। बहरहाल, भाजपा—कांग्रेस दोनों दलों के लिए अंदरुनी समस्या से पार पाना और अदावत कोई नईं नहीं है, पार्टियां इस समस्या को कैसे पाटेगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
भाजपा में कांग्रेसी विधायक के शामिल होने की सुगबुगाहट हुईं तेज
जहां जिले में भाजपा की सदस्यता लेने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। वहीं, टूटते परिसर से कांग्रेस को एक के बाद एक झटका लग रहे हैं। इस बीच कांग्रेस से जुड़े कई कट्टर व दिग्गजों के बीच भाजपा में शामिल होने की होड़ सी मचीं हुईं है। खासतौर पर अल्मोड़ा जिले के एक विधायक के भाजपा में शामिल होने की खबरों ने खूब सुर्खियां बटोरनी शुरू कर दी है। पिछले काफी लंबे समय से कांग्रेस संगठन में विधायक की और उनकी पत्नी की निष्क्रियता की खबरों ने चर्चाओं को और हवा देने का काम किया है। भाजपा पार्टी शीर्षस्थ सूत्रों की मानें तो अल्मोड़ा लोकसभा सीट से कांग्रेस के तीन विधायक भाजपा के संपर्क में चल रहे है।
इधर बीते दिनों कोर कमेटी की बैठक में शिरकत करने पहुंचे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने भी इशारों ही इशारों में कई कांग्रेसी विधायकों के जल्द ही भाजपा में शामिल होने को लेकर दिये बयान ने भी चर्चाओ को हवा देने का काम किया हैं वहीं, अल्मोड़ा लोकसभा सीट से कांग्रेसी विधायक के भाजपा में शामिल होने की खबरें अगर सच साबित हुई तो यह कांग्रेस के लिए जोरदार झटका ही नहीं मनोबल तोड़ने वाला होगा। इसके पीछे कांग्रेस की संगठनात्मक कमजोरी खास वजह बताईं जा रही है। बेबाक विधायक कई बार अपनी नाराजगी भी खुले मंचों में जता चुके हैं, कांग्रेस का मनोबल तोड़ने की जुगत में भाजपा शीर्ष नेतृत्व लगातार कांग्रेस के विधायकों के संपर्क में है। बताया जा रहा है कि भाजपा की तरफ से संपर्क में आए विधायकों से टिकट दिए जाने का आश्वासन भी दिया जा रहा है। वहीं, ज्वाइंनिग को लेकर स्टार प्रचारकों की रैली का इंतजार बताया जा रहा है।