व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा
मोदी जी गलत नहीं कहते हैं। उनके विरोधी वाकई हिंदू-विरोधी हैं। भारतीय संस्कृति के भी विरोधी। वर्ना होली पर कोई बुरा मानता है क्या? पर विरोधी हैं कि होली पर भी मुंह लटकाए बैठे हैं। सिर्फ मुंह नहीं लटकाए बैठे हैं, सनातनियों का होली का सगुन बिगाड़ने के लिए बकायदा हाय-हाय कर रहे हैं। पहले कांग्रेस वाले ही बैंक खाते जाम होने का रोना रो रहे थे। अब आम आदमी पार्टी वाले भी आ गए, केजरीवाल की गिरफ्तारी का शोर मचाने। होली पर कोई इतने हल्के बहाने ढूंढ़कर बुरा मानता है क्या?
हमें तो लगता है कि ये इंडीआ वाले चाहते ही नहीं हैं कि भारतवाले होली मनाएं। ये भारतीयों को खुश देखना ही नहीं चाहते हैं। खुशी का कोई मौका आता भी है, तो ये रंग में भंग डालने आ जाते हैं। तभी तो जिस खुश होने में कुछ भी नहीं लगता है, उस खुशी के मामले में भी हमारा महान देश, टुच्चू-पुच्चू देशों से भी पिट रहा है। हमारे पास इतने भगवान हैं, देवी-देवता हैं, इतने सारे मंदिर हैं, भौतिक सु:ख न सही, इतने सारे आध्यात्मिक सु:ख हैं ; और तो और, बेहिसाब हिंदू सु:ख भी है, जो दूसरों को दु:खी देखकर ही खुशी दे देता है; हमारे पास सब कुछ है, बस एक खुशी के सिवा। विश्व खुशी सूचकांक पर हम दुनिया में 126वें नंबर पर हैं। असल में नेहरू जी ने विज्ञान, आधुनिकता, गरीबी वगैरह के चक्कर में इस देश को ऐसा उलझा दिया कि हम आध्यात्म की अपनी असली पूंजी ही भूल गए। और भूल गए खुश होना। तभी तो मोदी जी की सारी कोशिशों के बावजूद, खुशी सूचकांक पर हम अब भी नीचे ही खिसक रहे हैं। 2015 में 117वें नंबर पर थे, 2024 में 126वें नंबर पर पहुंच गए हैं।
अब होली का ही मौका था, जब हम अपना हंसी-खुशी का स्कोर सुधार सकते थे। पर विरोधियों को यह बर्दाश्त ही नहीं है कि मोदी जी के राज में भारतीय खुश हों। खैर! मोदी जी भी विरोधियों की ऐसी हाय-हाय से डिगने वाले नहीं हैं कि चुनाव से ठीक पहले सब क्या हो रहा है? जो हो रहा है, होली के टैम पर हो रहा है। मोदी जी का संदेश स्पष्ट है — बुरा न मानो, होली है! बस एक ही डर है कि कहीं पब्लिक ही होली की तरंग में, कुछ उल्टा-पुल्टा नहीं कर दे, बुरा न मानो उन पर ही चस्पां न कर दे!
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक पत्रिका ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)