- सीट शेयरिंग पर नाराजगी दूर होने के बाद ही भाजपा खेमे से जुड़ गए जयंत
- भाजपा-रालोद गठबंधन से बागपत और मोदीनगर की राजनीति पर सीधे तौर पर पड़ेगा
- आरएलडी को डर था महाराष्ट्र की तरह चुनाव चिह्न छीने जाने का
सुरेंद्र श्रीवास्तव, लखनऊ।
सीट शेयरिंग को लेकर बीजेपी से नाराज चल रहे जयंत चौधरी एनडीए में शामिल होने का ऐलान कर दिया। सूत्रों के मुताबिक बीजेपी ने उन्हें 2 लोकसभा और 1 राज्यसभा सीट आफर की हैं। जयंत इंडिया गठबंधन से कई कारणों से खफा थे। बताया जा रहा है कि वह गठबंधन से सबसे ज्यादा सीट शेयरिंग को लेकर खफा थे। खासकर मुजफ्फरनगर को लेकर। दरअसल, कुछ दिन पहले लखनऊ में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात की तस्वीर सोशल मीडिया पर सामने आई और कहा गया कि यूपी में सीट शेयरिंग को लेकर बात बन गई है।
खबरे आईं की सपा राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) को 7 सीट देने पर राजी हो गई है। कहा जाने लगा था कि मुजफ्फरनगर सीट पर अब सपा का उम्मीदवार चुनाव लड़ेगा। इसके अलावा कैराना में सपा का कैंडिडेट मैदान में उतरने की खबर सामने आई। इसके चलते जयंत चौधरी नाराज हो गए। एनडीए में शामिल होने की अटकलों के बीच चौधरी ने पिछले दिनों कहा था कि उन्होंने पार्टी के सभी विधायकों से चर्चा के बाद एनडीए में शामिल होने का फैसला किया है। जयंत ने दावा किया कि उनके सभी विधायक और कार्यकर्ता हमारे साथ हैं।
उन्होंने कहा कि चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से नवाजा गया है। ये मेरे लिए मेरे परिवार और किसान समुदाय के लिए बहुत बड़ा सम्मान है। इसके अलावा पिछले साल 3 राज्यों के विधानसभा चुनाव और राम मंदिर के निर्माण के बाद माना जा रहा है कि लोकसभा में बीजेपी की स्थिति काफी मजबूत है। वहीं, विपक्ष की स्थिति कमजोर नजर आ रही है। ऐसे में जयंत चौधरी को लगा कि उनका ज्यादा फायदा सत्तारूढ़ बीजेपी के साथ चुनाव लड़ने में न कि उसके विरुद्ध।
इस बीच बीजेपी को जब यह खबर लगी कि आरएलडी और सपा के बीच सीट शेयरिंग को लेकर नाराजगी चल रही है। सूत्रों के मुताबिक आरएलडी को सालों से अपने पाले में जुटी बीजेपी ने उन्हें 2 लोकसभा और 1 राज्यसभा सीट देने की बात की थी। बीजेपी और आरएलडी के बीच बागपत और बिजनौर लोकसभा सीट पर बात चल रही है। साथ ही आरएलडी को कैबिनेट में मंत्रालय मिल सकता है। इस बीच बीजेपी ने आरएलडी के पूर्व नेता चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का ऐलान कर दिया है।
इसके अलावा आरएलडी के कुछ नेताओं को डर था कि जिस तरह महाराष्ट्र में एनसीपी और शिवसेना विभाजित हुई। उसी तरह आरएलडी में भी हो सकता है और उससे उसका चुनाव चिन्ह छीना जा सकता है। ऐसी कई चर्चाओं का बाजार गर्म है। जहां सत्ताधारी नेताओं का पिछले दस साल से बागपत लोकसभा क्षेत्र में एकछत्र राज है। वह अब गठबंधन के बाद उन्हें छिनता नजर आ रहा है। अब यदि गठबंधन के बाद बागपत लोकसभा की सीट रालोद के खाते में जाने से इनकार नहीं किया जा सकता। रालोद मुखिया का खुद इस सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा है। इसका सीधा असर मोदीनगर की राजनीति पर भी पड़ेगा।
गठबंधन में मजबूत होगी रालोद
जाट बाहुल कहे जाने वाली पश्चिमी यूपी की बेल्ट पर जाट समाज मोदीनगर विधानसभा के साथ बागपत लोकसभा बड़ी भूमिका रखते हैं। पहले हुए चुनावों में जाट समाज भाजपा और रालोद में बटा, लेकिन गठबंधन में रालोद मजबूत होगी। इसका प्रभाव आगामी विधानसभा चुनाव में भी दिखेगा। ऐसे में 2027 में मोदीनगर विधानसभा पर चुनाव जीतना सत्ताधारी दल के लिए आसान नहीं होगा।
सत्तादल के नेताओं में बेचैनी
इससे सत्तादल के नेताओं में बेचैनी हैं। उनके चेहरे पर परेशानी झलक रही है। हालांकि, शीर्ष नेतृत्व के फैसले को सही बताते हुए अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। बागपत लोकसभा से पिछले दस साल से डॉ. सत्यपाल सिंह सांसद हैं। इनसे पहले चौ. अजित सिंह यहां सांसद थे। वर्तमान में बागपत लोकसभा में पांच विधानसभा हैं, जिसमें मोदीनगर, सिवालखास, छपरौली, बागपत व बड़ौत हैं।
कद्दावर नेताओं की जल्द रालोद में वापसी
मोदीनगर से डॉ. मंजू शिवाच, बड़ौत से केपी मलिक व बागपत से योगेश धामा विधायक हैं। तीन भाजपा के विधायक हैं, जबकि रालोद के सिवालखास से गुलाम मोहम्मद व छपरौली से अजय तोमर विधायक हैं। सूत्रों की मानें तो मोदीनगर की राजनीति के कई कद्दावर नेता कुछ ही दिन में रालोद का दामन थाम सकते हैं। कुछ समय पहले ही ये रालोद से भाजपा में गए थे, लेकिन अब गठबंधन की आहट के बाद से ही इनकी वापसी की चर्चाएं होने लगी हैं।