कर्ज से बंटेगी ‘रेवड़ी’

विधानसभा के हाल के चुनावों में मतदाताओं को तरह-तरह के वादे किए गए। इसे देश की सर्वोच्च न्यायालय ने भी गंभीरता से लिया और कहा कि वित्तीय हालात की दृष्टि से यह ठीक नहीं है। अब जबकि राज्यों में नई सरकार आ गई हैखासकर मध्य प्रदेशराजस्थान और छत्तीसगढ़ में लोगों को मुफ्त की रेवड़ियां बांटना आसान नहीं होगा।

 बीजेपी को मिली प्रचंड जीत के पीछे फ्री योजनाओं का हाथ बता रहे विश्लेषक

लाभ के प्रलोभन से वोट पाई सरकारों के सामने अब उसे अमलीजामा पहनाने की चुनौती

डॉ. प्रभात ओझा, नई दिल्ली।

पांच राज्यों में हाल के विधानसभा चुनाव में बीजेपी (BJP) तीन हिंदी भाषी प्रदेशों में प्रचंड बहुमत से सरकार में आई है। इसका विश्लेषण तरह-तरह से हो रहा है। मुद्दा एक और है जिस पर ध्यान कम ही जा रहा है। वह है मतदाताओं से किए मुफ्त में सुविधाएं देने के वादे। इसे आजकल ‘मुफ्त की रेवड़ी’के नाम से खूब प्रसिद्धि मिली है।

चुनावों में खासकर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ही सरकार बनने पर लोगों को कई तरह की सुविधाएं देने का भरोसा दिया। लोगों ने दोनों में से भाजपा पर विश्वास किया है। सच कहा जाय तो मतदाताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों पर कान दिया कि “देश में सिर्फ एक गारंटी चलती है, वह है मोदी की गारंटी।” अब इसे मोदी की गारंटी कहा जाय अथवा भाजपा की गारंटी, एक ही बात है। मुख्य मसला है कि इन राज्यों में नई सरकारों को क्या-क्या मुफ्त में देना होगा।

बात मध्य प्रदेश से शुरू की जाय। वहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) मामा के नाम से मशहूर है। उन्होंने ‘लाडली बहना योजना’ की शुरुआत की। अंतिम रूप से निर्वाचन आयोग चुनाव की घोषणा करता, उसके पहले ही मुख्यमंत्री (CM) ने मार्च में ही इसे शुरू करने का एलान और उस पर शीघ्र ही अमल भी शुरू कर दिया था। जब चुनाव परिणाम आए तो शिवराज सिंह ने कहा, “ये जो जीत हासिल हुई है, मैं अपनी बहनों को प्रणाम करता हूं। मैं कहता था कि बीजेपी को अद्भुत जीत हासिल होगी। मेरी बहना कहती थीं कि भइया अपन जीतेंगे और आशीर्वाद देती थीं। अभी मिल रहे हैं 1250 रुपये। अब तारीख आ रही है। एक-एक बात पूरी होगी।

अब लाडली बहना लखपति बनेंगी। मुख्यमंत्री ने इस लोकप्रिय योजना में दी जाने वाली राशि को बढ़ाकर 3000 रुपये प्रतिमाह करने का वादा किया था। अब इस पर अमल बड़ी चुनौती होगी। राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों ने चुनाव के पहले बताया था कि इस योजना की पात्र महिलाओं को इसका लाभ देने के लिए प्रति माह 1,210 करोड़ खर्च हो रहे हैं। इस योजना के लिए बजट की शुरुआत में 8,000 करोड़ रुपये रखे गये थे। अब प्रत्येक पात्र महिला को यह राशि 1250 रुपये से बढ़ाकर 3000 की जाती है, तो इस योजना के लिए सरकार का बजट बढ़ जाएगा। अधिकारी कहते हैं कि ऐसे में इसे एक झटके से नहीं, चरणबद्ध तरीके से करना होगा।

मध्य प्रदेश में ही भाजपा की अन्य गारंटी यानी वादों पर नजर डाल ली जाय। इसकी एक लंबी फेहरिस्त है। हर गरीब छात्रा को 12 वीं तक की पढ़ाई मुफ्त करने का वादा है। इस पर अतिरिक्त धनराशि बहुत कम खर्च होगी। कारण यह है कि प्राथमिक तक की शिक्षा वैसे भी करीब करीब देश भर में मुफ्त है। बाद की कक्षाओं के लिए ट्यूशन फीस का मसला रह जाएगा। इससे अलग जो घोषणाएं की गईं हैं, वे कम खर्चीली नहीं हैं। हर पात्र छात्रा को प्रति वर्ष 1200 रुपये यूनीफार्म, बैग और किताबें खरीदने के लिए दिए जाएंगे। और अधिक खर्च वाली घोषणा यह है कि 21 साल की उम्र पूरी करतीं गरीब लड़कियों को सरकार दो लाख रुपये देगी। अब गरीबों से अलग हटकर देखें तो 100 यूनिट तक ही बिजली खर्च करने वाले सभी लोगों को सिर्फ 100 रुपये देने होंगे। आम तौर पर प्रति यूनिट ढाई रुपये से चार रुपये तक के चार्ज होते हैं, सिर्फ एक रुपये यूनिट की वसूली से भी राज्य के ऊपर वित्तीय बोझ बढ़ जाएगा। मध्य प्रदेश सरकार पीएम किसान निधि के सालाना छह हजार रुपये की जगह अब 12 हजार रुपये देगी। इस तरह किसान निधि पर अब पर वर्तमान खर्च की जगह दोगुना राशि खर्च होगी।

कर्ज में मध्य प्रदेश

राज्य सरकार की रईसी का आलम यह है कि पिछले कार्यकाल के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने रक्षाबंधन से पहले पीएम उज्जवल योजना और मुख्यमंत्री लाड़ली बहन योजना के सभी लाभार्थियों को एक सितंबर से प्रतिमाह 450 रुपये में एक घरेलू एलपीजी सिलेंडर देने की घोषणा कर दी थी। और तो और, सीएम ने लाभार्थी महिलाओं के खाते में रक्षाबंधन के दौरान 250 रुपये का शगुन भी भेजा। यह तब हो रहा था, जबकि राज्य सरकार पर कर्ज का बोझ बढ़ता गया है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में जो जानकारी दी थी, उसके अनुसार मध्य प्रदेश का कुल कर्ज 1,83,439 करोड़ रुपये तक बढ़ा है। मार्च 2019 में मध्यप्रदेश सरकार पर कर्ज 1,95,178 करोड़ रुपये था। यह चार साल बाद मार्च 2023 में बढ़कर 3,78,617 करोड़ तक पहुंच गया था। अब राज्य की1.25 करोड़ महिलाओं के प्रत्येक बैंक खाते में 3000 रुपये दिए जाएंगे। इसके अलावा राज्य सरकार ने 11.19 लाख किसानों की कर्ज माफी में 2,123 करोड़ रुपये खर्च किए। सिर्फ तीन माह में पीएम किसान निधि के तहत 25,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।

राजस्थान भी कम नहीं

राजस्थान की नई सरकार कर्ज बढ़ने के लिए पिछली गहलोत सरकार के सिर ठीकरा फोड़ सकती है। इससे अलग देखने लायक है कि नई सरकार मुफ्त के कई वादे कर सत्तारूढ़ हुई है। कांग्रेस के वादे तो मेधावी छात्रों को फ्री स्कूटी देने तक पहुंचे थे। सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि 500 से बढ़ाकर एक हजार कर दी गयी। तब के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने खुद स्वीकार किया था कि इससे राज्य सरकार पर 12 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ा।

राज्य सरकार पर मार्च 2019 में कर्ज 3,11,854 करोड़ रुपये था। वह चार साल बाद मार्च 2023 में बढ़कर 5,37,013 करोड़ तक पहुंच गया। यहीं तक बात नहीं रुकी। राज्य की महिलाओं के लिए स्मार्ट फोन पर सरकार ने 12 सौ करोड़ रुपये खर्च किए। इस योजना में 1.33 करोड़ महिलाओं को मुफ्त मोबाइल देने का लक्ष्य तय था। पहले से ही घोषित राज्य के70लाख से ज्यादा उपभोक्ताओं को सब्सिडी वाले सिलेंडर पर हर साल लगभग 3,300 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। सरकार ने पिछले बजट में हर माह फेयर प्राइज शॉप से मुफ्त अन्नपूर्णा फूड पैकेट देने की व्यवस्था की है, जो 4,500 करोड़ रुपये की योजना है। युवा नीति के तहत 500 करोड़ रुपये का युवा कल्याण फंड बनना है। ये सभी योजनाएं नई सरकार पर करीब 7,990 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ रखेंगी।

छत्तीसगढ़ में और भी शाहखर्ची

कर्ज के मामले में राजस्थान दूसरे नंबर पर है। पहले पर तेलंगाना का बढ़ता कर्ज है। परन्तु शाहखर्ची में अब छत्तीसगढ़ भी कम नहीं रहेगा। इसके पहले कांग्रेस सरकार की किसान, आदिवासी और गरीब समर्थक योजनाओं से लगा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बाजी मार ले जाएंगा। इसके विपरीत ‘मोदी की गारंटी,2023’ के नाम से भाजपा ने राज्य के लिए जो घोषणापत्र जारी किया, उन्हें एक झटके में पूरा करना कठिन होगा। कांग्रेस ने वादा किया था कि राज्य सरकार इस खरीफ सीजन में किसानों से प्रति एकड़ 20 क्विंटल धान खरीदेगी। किसानों की ऋण माफी का वादा, ‘राजीव गांधी भूमिहीन किसान न्याय योजना’ के तहत भूमिहीन मजदूरों को दी जाने वाली वार्षिक वित्तीय सहायता 7,000 रुपये से बढ़ाकर 10,000 रुपये करने, केजी से पीजी तक मुफ्त शिक्षा प्रदान करना और 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का भी कांग्रेस ने वादा किया था। इसमें महिलाओं गैस सिलेंडर पर 500 रुपये की सब्सिडी, 6000 रुपये प्रति बैग की दर से तेंदू पत्ते की खरीद और पत्ता संग्राहकों को 4,000 रुपये का वार्षिक बोनस देने का भी भरोसा दिया गया था। गरीबों को 10 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज, सड़क दुर्घटना में पीड़ितों को सहायता राशि आदि के लिए भी कांग्रेस ने वादा किया।

भाजपा 2018 की हार को भुला नहीं पाई थी। इस बार पार्टी ने छत्तीसगढ़ के लिए ‘मोदी की गारंटी 2023’ नाम से घोषणापत्र बनाया। प्रति एकड़ 3,100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान की खरीद, ‘महतारी वंदन योजना’ में विवाहित महिलाओं को 12,000 रुपये वार्षिक, ‘पीएम आवास योजना’ में 18 लाख घरों का निर्माण, तेंदू पत्ता प्रति बैग 5,500 रुपये पर खरीदना, पत्ता संग्राहकों को 4,500 रुपये बोनस और भूमिहीन खेत मजदूरों को 10,000 रुपये की वार्षिक सहायता देने की वादे कर भाजपा आगे निकल गई। फिर गरीब परिवारों 500 रुपये में रसोई गैस, छात्रों को मासिक यात्रा भत्ता, लड़कियों के जन्म पर गरीबी रेखा से नीचे वालों को 1.50 लाख रुपये का ‘आश्वासन प्रमाण पत्र’ देने का भी वादा किया गया है। राम मंदिर के दर्शन के लिए अयोध्या की मुफ्त यात्रा का वादा लोकलुभावन वादों में शामिल ही है। यह सब कुछ उस स्थिति में करना होगा, जिसमें इसी मार्च में तब के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बताया था कि राज्य पर 82,125 करोड़ रुपये का कर्ज है।

काफी पहले शुरू हुई यह ‘बीमारी’

पहले आम चुनाव 1952 के बाद से 1954-1963 के बीच तत्कालीन मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी कामराज ने शिक्षा और भोजन मुफ्त देने की योजना बनाई। यहीं से मुफ्त की रेवचटियों का प्रचलन शुरू हुआ। फिर 1967 में डीएमके के मुख्यमंत्री सीएन अन्नादुरई ने तो साढ़े चार किलो चावल मुफ्त में देने की घोषणा की। बाद में 2006 में एआइएडीएमके ने तो रंगीन टीवी तक देने का वादा कर दिया। उधर, डीएमके ने कलर टीवी के साथ साथ केबल कनेक्शन देने की भी योजना बना डाली। साल 2015 आते आते आम आदमी पार्टी ने मुफ्त बिजली- पानी के नाम पर दिल्ली की सरकार बनाई। बहरहाल, किसी भी राज्य में इन योजनाओं पर अमल सरकार और अंततः राज्य की जनता के लिए भी भारी पड़ता है।

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