गुमनाम है झारखंड में सम्राट अशोक का बनवाया खीरी मठ

सहस्त्राब्दी पूर्व से मौजूद है वास्तुकला का विराट स्वरुप

भगवान बुद्ध को सुजाता द्वारा यहीं खिलाई थी खीर, तो नाम पड़ा खीरी मठ

गोला में बौद्ध धम्म के विकास का दिलचस्प है इतिहास
कलिंग विजय के बाद सम्राट अशोक ने बौद्ध मठ का करवाया था निर्माण
मठ की वास्तुकला हू -ब- हू बोध गया के विश्व प्रसिद्ध बोधि मठ से खाती है मेल

डॉ. सोमनाथ आर्य
यहाँ ख़ामोशी का पर्दा है , जिस पर जम गयी है सहस्त्राब्दियों से वक़्त की धूल। मुमकिन है कि इतिहास के एक लम्बे कालखंड में यहाँ उल्लासमय धार्मिक आंदोलन हुई हों।

गहन दार्शनिक सिद्धांत पैदा हुए हों , तभी तो यहां अतुलनीय कलाकृति का निर्माण हुआ। हम झारखंड के पुरातात्विक और धार्मिक इतिहास को ख़ारिज नहीं कर सकते की आज से लगभग ढाई हजार साल पहले रांची और रामगढ-बोकारो मार्ग के गोला में एक हलचल हुई थी, जिसकी आहट आज भी सुनाई दे रही है। यह वही ऐतिहासिक जगह है जहां कलिंग विजय के बाद सम्राट अशोक ने शानदार बौद्ध मठ का निर्माण करवाया। यह वह बौद्ध मठ है जिसका निर्माण बोध गया से पहले हुआ। मठ की वास्तुकला की तर्कसंगत परिकल्पना हू -ब- हू बोध गया के विश्व प्रसिद्ध बोधि मठ से मेल खाती है। बिहार के बोध गया ने अपनी विरासत हो सहेजा आज वह विश्वप्रसिद्ध है और झारखण्ड ने मजबूत परिस्थितिजन्य पुरातात्विक सबूत होने के वाबजूद अपनी विरासत कि क्यों अनदेखी की ? यह बड़ा सवाल है।

सहस्त्राब्दी पूर्व धार्मिक हलचल का बड़ा केंद्र आज वीरान

गोला में मौजूद बौद्ध मठ सहस्त्राब्दी पूर्व से मौजूद है वास्तुकला का विराट स्वरुप, आज मुख्य सड़क मार्ग के करीब होने के वावजूद गुमनाम है। रांची और रामगढ-बोकारो मार्ग पर गोला के समीप सड़क की दक्षिण दिशा में एक विशालकाय शिखरयुक्त बौद्ध मठ सदियों से कुछ कहने की कोशिश कर रहा है। स्थानीय लोग इसे खीरी मठ कहते है। यह एक प्राचीन बौद्ध मठ है। लगभग अस्सी फीट ऊंचा यह मठ सप्तरत योजना के अनुरूप बनाया गया है तथा इसे देखने पर एकदम से अहसास होता है कि यह बोध गया के विश्व प्रसिद्ध बौद्धि मठ की प्रतिकृति है। इस मंदिर का निर्माण सीधे सीधे समतल जमीन पर किया गया है तथा भूमि पर इसका आकार लगभग चालीस फीट वर्गाकार अवस्था में है । इसमें पूरब और पश्चिम दिशा में श्रद्धालुओं के मंदिर में सहज प्रवेश के लिये लगभग पांच फीट उंचाई के दो द्वार बने हुये हैं।

मठ के अंदर लगातार आती है रौशनी अंधेरा नहीं होता

शिखर के समीप दो खिडकियों जैसी संरचनायें भी बनाई गई हैं जिससे सूरज की रौशनी इस मठ के अंदर लगातार आती रहती है और अंधेरा नहीं होता । अंदर गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं दिखती और अब यह मठ उपेक्षित है। पूर्वी प्रवेश द्वार के ठीक उपर लगभग चालीस फीट की उंचाई पर पत्थर के एक पैनल में बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा में बैठी मूर्ति लगाई गई है और पास में ही दो मछलियों की आकृतियां भी उकेरी गई हैं। पश्चिम द्वार के उपर सिर्फ मछलियों की आकृतियां ही दिखती हैं। इसका निर्माण ईंट और पत्थर से मिश्रित रूप में किया गया है। शिखर के अंतिम छोर पर बौद्ध स्थापत्य के अनुरूप तीन स्तर की छत्रवली भी बनाई गई है। इस मठ के पास ही में बौद्ध धम्म की छिन्न मस्तिका परम्परा की उपस्थिति यह आभास देती है कि यह पूरा क्षेत्र एक समय बौद्ध धम्म के प्रभाव में अवश्य था। हजारीबाग क्षेत्र में भी कई गांव में बौद्ध धम्म से संबंधित असंख्य प्राचीन मूर्तिया देखने को मिल रही हैं। कलिंग विजय के 2 साल के बाद सम्राट अशोक ने करीब 250 ईसा पूर्व ने इस बौद्ध मठ का निर्माण करवाया था।

भगवान बुद्ध को सुजाता द्वारा यहीं खिलाई थी खीर, तो नाम पड़ा खीरी मठ

मठ के नजदीक खीरी का पेड़ रहने के कारण इसे खीरी मठ कहा जाता है। हालांकि कुछ लोग इस नाम को भगवान बुद्ध को सुजाता द्वारा यहीं खीर खिलाए जाने के प्रसंग से भी जोड़कर देखते है। लंबे समय से रखरखाव नहीं हो पाने के कारण अब यह मठ ध्वस्त होने के कगार पर है। इसके बाद भी सड़क किनारे अब भी यह मठ सिर उठाए शान से अपने अतीत की कहानी बयां करते हुए खड़ा है। अभी भी इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। उपदेश स्वरूप पाली भाषा व खरोष्ठी लिपि में मठ की दीवारों पर कुछ उपदेश और चिन्ह अंकित हैं।

पुरातात्विक विभाग का निरीक्षण लेकिन जीर्णोद्धार नहीं

यह मठ अपनी विशालता व भव्यता सहित पहचान बचाने के लिए जीर्णोद्धार की बाट जोह रहा है। जबकि झारखण्ड के पुरातात्विक विभाग ने कई बार इस बौद्ध मठ का निरीक्षण किया है। इसके बाद भी आज तक यह धरोहर पर्यटन स्थल नहीं बन सका न जीर्णोद्धार हो सका। ऐसे में बड़ा सवाल है कि अधिकारियों ने एक मठ को लेकर सक्रियता क्यों नहीं दिखाई ? वे अपने नतीजों के सही आंकलन करने में क्यों विफल हो गए। इतिहास के आंकलन के फौलादी नियम के आगे उन्हौंने घुटने क्यों टेक दिए? इस मामले में सरकारी तंत्र से लेकर मंत्री, विधायक, सांसद एवं स्थानीय जनप्रतिनिधियों सहित जिला प्रशासन ने ऐतिहासिक धरोहर को बचाने को लेकर कभी ईमानदारी से इच्छाशक्ति के साथ पहल ही नहीं की। आधुनिक इतिहास के मामले में अध्येता विचारधारा और संस्कृति जैसे अभौतिक कारकों को ध्यान में लाने को टाल नहीं सकते। पुरातात्विक सबूत उन्हें मजबूर करता है। यह साबित करने के लिए की हमारे पास गोला के खीरी मठ में प्राचीन इतिहास के बुनियादी और खूबसूरत संस्मरण हैं।

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