साहित्यकारों ने लिया साहित्यिक महाकुंभ में  वैश्विक हिंदी का संकल्प!

 डॉ. गोपाल नारसन एडवोकेट
वर्ष 1857 की आजादी की क्रांति की पावन भूमि पर आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल में अमेरिका, जापान, नेपाल, बेल्जियम, ब्रिटेन, मारिशस समेत देश के सोलह राज्यों से अनेक वरिष्ठ भाषाविद् , साहित्यकार ,कवि,शायर और संस्कृति कर्मियों ने एक स्वर में हिंदी को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित करने का संकल्प लिया। इस साहित्यिक महाकुंभ (Literary extravaganza) में  नवोदित रचनाकारों की भी बडी संख्या में सहभागिता रही।अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति के अध्यक्ष  इंद्रजीत शर्मा की अध्यक्षता व जाने माने हिंदी विद्वान डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा अरुण के सानीदय में सभी भाषाओं का सम्मान करने और विभिन्न भाषाओं के साहित्य का आपसी अनुवाद करने पर जोर दिया गया।अपने आशीर्वचन में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के अधिष्ठाता शिक्षाविद् डा योगेंद्रनाथ शर्मा अरूण ने कहा कि भाषा कोई भी हो समाज को जोडने का ही काम करती है।
देवनागरी लिपि दुनिया भर में इसी कारण लोकप्रिय हो रही है क्योंकि यह भाषा सभी को साथ लेकर चलती है।पूर्व मंडलायुक्त डॉ आर के भटनागर ने कहा कि हिंदी आज विश्व स्तर पर प्रासंगिक हो गई है,उन्होंने साहित्यिक महाकुंभ को हिंदी के प्रति उत्थान यज्ञ की संज्ञा दी।वही इंद्रजीत शर्मा ने कहा कि दुनिया मे शायद ही ऐसा कोई देश हो जहां हिंदी न पहुंच पाई हो,उन्होंने हिंदी के लिए समर्पण भाव की आवश्यकता व्यक्त की।कार्यक्रम में हिंदी व नेपाली भाषा के समानांतर बोध पर भी चर्चा हुई,नेपाल के साहित्यकारों ने माना कि हिंदी व नेपाली दोनो भाषाओं की जननी संस्कृत होने के कारण ये दोनों भाषाएं सगी बहनों की तरह है,वही उर्दू भी हिंदी की छोटी बहन कही जा सकती है। साक्षात्कार सत्र में डा अलका वशिष्ठ की पुस्तक दलित विमर्श को लेकर दलित साहित्य संबंधित विस्तार से चर्चा हुई।
तो एक सत्र कवि सम्मेलन व   मुशायरा के नाम रहा, जिसकी अध्यक्षता डा कृष्ण कुमार बेदिल ने की जबकि संचालन डा रामगोपाल भारतीय ने किया।जिसमे आवाज़ गूंजी,
लाखों लेकर सवाल बैठा हूँ
शौक कैसा ये पाल बैठा हूँ,
कैसे निकलु समझ नहीं आता
खुद ही बुनकर जाल बैठा हूँ।  बेल्जियम से आए कपिल कुमार ने कहा,
मुझे जड़ से मिटाने की हुई तो कोशिशें काफी,
कहीं से फिर निकल आया कि पीपल का शजर हूँ मैं। बृजराज किशोर ‘राहगीर’ ,
दिलदार देहलवी, क्षमा गुप्ता, डा सरोजिनी तनहा, मुक्ता शर्मा, ओंकार नाथ ‘गुलशन’, किशन स्वरूप, सुप्रीया सिंह वीणा, डा अमर पंकज, दानिश गज़ल मेरठी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुविख्यात शायर डा एजाज़ पापूलर मेरठी आलमी मुशायरे में शामिल रहे।
मेरठ लिटरेरी फेस्टिवल के शुभारंभ में पुस्तक प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसमें भारत, नेपाल , अमरीका, ब्रिटेन के लेखकों की पुस्तकों को प्रदर्शित किया गया।
पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुए क्रांतिधरा साहित्य अकादमी की अध्यक्ष पूनम पंडित द्वारा संपादित ‘ पर्यावरण प्रहरी’ पुस्तक का विमोचन भी किया गया ।
समारोह के मुख्य आकर्षण में प्रति वर्ष प्रदान किये जाने वाले अवार्ड रहे। इस वर्ष लाईफ टाईम अचीवमेंट अवार्ड वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ चिंतामणि जोशी और डॉ अशोक मैत्रेय को प्रदान किया गया।क्रांतिधरा साहित्य शिखर सम्मान अमरीका से आए  हिन्दीसेवी इन्द्रजीत शर्मा को मिला।संत गंगादास स्मृति सम्मान वरिष्ठ लेखक दादा अजीत कुमार अजीत को दिया गया।गीतकार भारतभूषण स्मृति सम्मान गीतकार मनोज कुमार ‘मनोज’  ने प्राप्त किया।शायर हफीज़ मेरठी स्मृति सम्मान वरिष्ठ शायर ओंकारनाथ ‘गुलशन’ के हिस्से में आया।पं. मुखराम शर्मा स्मृति सम्मान वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट ज्ञान दीक्षित को दिया गया।
आदिकवि भानुभक्त आचार्य स्मृति सम्मान ज्योतिष शिरोमणि व शिक्षाविद डॉ बलराम उपाध्याय रेग्मी, पोखरा, नेपाल को प्रदान किया गया जबकि एकादशी त्रिपाठी स्मृति सम्मान दानिश गज़ल ‘मेरठी’ को उद्घाटन सत्र में दिया गया।इन सम्मानों में  अंगवस्त्र, साहित्यिक पुस्तकें, प्रतीक चिन्ह, स्मृति चिन्ह और  2100/- रूपए की नकद धनराशि प्रदान की गई।
मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल में क्रांति धरा साहित्य अकादमी के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग से प्रो. विघ्नेश कुमार, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के प्रति कुलपति डॉ श्रीगोपाल नारसन,डॉ विदुषी शर्मा,सुधारकर आशावादी, सत्येंद्र कुमार शर्मा,डा कृष्ण कांत शर्मा, डा योगेश कुमार, डा कुलदीप कुमार त्यागी,मधुर शर्मा, मनमोहन और आयोजक विजय पंडित व पूनम पंडित मौजूदगी में
 क्रान्तिधरा साहित्य महाकुंभ के संयोजक विजय पंडित ने कहा मेरठ का महाभारत कालीन पुराना इतिहास रहा है। भारत का इतिहास और आजादी की क्रांति मेरठ से जुड़ी हुई है। लेकिन साहित्य की दृष्टिकोण से मेरठ पिछड़ता जा रहा था। इसलिए हमने तीन दिवसीय साहित्य फ़ेस्टिवल की नींव मेरठ से रखी । उन्होंने नेपाल की प्रशंसा करते हुए कहा, इस साहित्य का नींव का पत्थर वास्तव में नेपाल ही है। पहली आयोजन से लेकर आजतक नेपाल से हमें हर तरह का सहयोग मिला।वर्ष 2018 में पहला नेपाल-भारत महोत्सव शुरू हुआ था और आज साहित्य का यह महाकुंभ हम मना रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि साहित्य का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हो, तभी साहित्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी जगह बना पाएगा। अगर भारत की कुछ किताबें नेपाली भाषा में आ जाए, तो साहित्य सेतु सम्बन्ध बहुत अच्छा हो सकता है।हापुड़ से आए अशोक मैत्रेय ने कहा कि क्रान्तिधरा मेरठ का साहित्य, कला एवं संस्कृति में प्रमुख स्थान है। यहां सिंधु घाटी सभ्यता, रामायण और महाभारत काल के साक्ष्य मौजूद है, तो यहां विश्व प्रसिद्ध सेंट जोन्स चर्च भी है। 19 से 20 वीं सदी में बना हुआ घंटाघर भी है। यह क्रान्तिधरा इसलिए कहलाता है कि यहाँ सन् 1857 में प्रथम स्वाधीनता संग्राम का उद्घाटन इसी धरती से हुआ था। स्वाधीनता संग्राम के दौरान इस का महत्व और बढ़ गया, जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 1920-29 में देवनागरी और मेरठ कॉलेज में आकर बड़ी-बड़ी सभाओं को संबोधित करते और राष्ट्रीय आंदोलन को नया आयाम देते थे। डॉ सुबोध गर्ग ने कहा हम कोशिश करेंगे कि साहित्य के द्वारा हम समाज को एक सकारात्मक एवं प्रेरणादायक रचना दे सके, ताकि पाठक और समाज को रचना के रूप में एक अच्छी मार्गदर्शक मिल सके ,यह आयोजन “वसुधैव कुटुंबकम” और राष्ट्रीय विचारधारा की भावना के तहद गंगा-जमुनी तहज़ीब को विश्व पटल पर लाने का एक प्रयास है। मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल का लक्ष्य एक दूसरे के लेखन से परिचित कराना , साहित्यिक अनुवाद , प्रकाशन , विचारों के आदान प्रदान , परस्पर सहयोग की भावना , पठन पाठन व् साहित्य के दायरे का विस्तार के साथ दिलों से दिलों को जोड़नें के लिए एक सशक्त साहित्यिक सेतु का निर्माण करना भी है।

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