मध्यप्रदेश। रायसेन जिले (Raisen District) की 4 विधानसभा सीटों में से 3 हाईप्रोफाइल सीटों सांची, सिलवानी और भोजपुर पर इस बार जहां मौजूदा और पूर्व मंत्रियों (Former Ministers) की प्रतिष्ठा दांव पर है, वहीं 1 सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने बिल्कुल नए चेहरे को उतार कर इस मुकाबले को और रोचक बना दिया है। जिले की सबसे हाईप्रोफाइल सीट (High-profile seat) अनुसूचित जति सुरक्षित सांची है, जहां केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) की अगुवाई में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी (Dr. Prabhuram Chaudhary) की प्रतिष्ठा दांव पर है। हालांकि राजनैतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यहां इस बार ‘नाराज भाजपा’ और ‘महाराज भाजपा’ का फैक्टर दिखाई दे रहा है। अक्सर डॉक्टरों के मुकाबले की प्रत्यक्षदर्शी रही इस सीट पर भाजपा ने एक बार फिर मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी पर भरोसा जताया है। वहीं पार्टी के इस निर्णय से पूर्व मंत्री और यहां से कई बार विधायक रहे डॉ. गौरीशंकर शेजवार (Dr. Gaurishankar Shejwar) की नाराजगी भी साफ दिख रही है।
भाजपा का गढ़ मानी जाने वाली और सांची स्तूपों के लिए दुनिया भर में मशहूर इस सीट पर 2020 में राज्य में हुए भारी दलबदल के बाद उपचुनाव कराया गया, जिसमें उस समय भाजपा में शामिल हुए डॉ प्रभुराम चौधरी को जीत मिली। उन्होंने कांग्रेस के मदनलाल को 63 हजार 809 मतों के अंतर से हरा दिया। इस सीट पर यह सबसे अधिक मतों से जीत का रिकार्ड भी है। कांग्रेस ने इस बार प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सीजी गौतम (Dr. C.G. Gautam) को टिकट दिया है। सांची विधानसभा सीट (Sanchi Assembly Seat) पर कुल वोटर्स दो लाख 53 हजार 369 हैं जिनमें 1,33,510 पुरुष तो 1,19,852 महिला मतदाताओं के अलावा सात अन्य (Third Gender) मतदाता भी शामिल हैं। डॉक्टर चौधरी के भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस से बड़ी संख्या में उनके समर्थकों ने भी भाजपा का दामन थाम लिया, लेकिन यहां पार्टी अब दो खेमों में बंट गई है। अहिरवार समाज के 30 हजार से ज्यादा मतदाता हैं। भाजपा के डॉक्टर प्रभुराम चौधरी और कांग्रेस के डा गौतम इसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
हालांकि इस बार भजपा प्रत्याशी पूर्व मंत्री और विधायक सुरेंद्र पटवा (MLA Surendra Patwa) के खिलाफ उनकी ही पार्टी के कार्यकर्ता नाराज माने जा रहे हैं। पटवा पर चेक बाउंस के प्रकरण भी बड़ी संख्या में न्यायालय में विचाराधीन हैं, जिसके चलते आपराधिक मामले छुपाने को लेकर उनके नामांकन में आपत्ति भी लगाई गई थी। मामले में सुनवाई के बाद उन्हें चुनाव लड़ने की पात्रता दी गई। इस सीट पर इस बार एंटी इनकंबेंसी एक बड़ा कारक माना जा रहा है। इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा चुनाव लड़कर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। 1990 के बाद से अब तक हुए 8 चुनावों में बस एक बार ही कांग्रेस को जीत मिली है, जबकि 7 बार भाजपा विजयी हुई है।
कांग्रेस ने इस बार यहां से राजकुमार पटेल (Rajkumar Patel) को टिकट दिया है। 2018 के विधानसभा चुनाव में श्री पटवा ने एकतरफा मुकाबले में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी को 29,486 मतों के अंतर से हरा दिया था। इस सीट पर कुल 2,45,313 वोटर्स हैं जिनमें 1,28,967 पुरुष तो 1,16,332 महिला के अलावा 14 अन्य मतदाता हैं। भोजपुर क्षेत्र का मंडीदीप राजधानी भोपाल से सटा हुआ है और जिले का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। जिले की उदयपुरा सीट पर कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की जंग है। किरार और राजपूत बाहुल्य इस सीट से भाजपा ने प्रदेश प्रवक्ता नरेंद्र पटेल किरार के रूप में नए चेहरे को अवसर दिया है। हालांकि टिकिट वितरण के तुरंत बाद ही पार्टी के भीतर ही उनका खुलकर विरोध सामने आया था। वहीं कांग्रेस ने विधायक नरेंद्र पटेल गड़रवास पर ही दुबारा भरोसा जताया है।
ये क्षेत्र पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा की कर्मभूमि और आचार्य रजनीश ओशो की जन्मभूमि के रूप में भी जानी जाती है। यह सीट होशंगाबाद लोकसभा क्षेत्र में आती है। 2008 के परिसीमन के बाद यह उदयपुरा विधानसभा सीट अस्तित्व में आई। इस सीट पर अभी कांग्रेस का कब्जा है। इस सीट पर कांग्रेस के देवेंद्र पटेल गडरवास 2018 में विधायक चुने गए। 20 साल यानी 2003 से इस सीट पर एक बार कांग्रेस तो एक बार भाजपा चुनाव जीतती आई है। मध्य प्रदेश के विलीनीकरण आंदोलन (Merger movement) में उदयपुरा में नर्मदा नदी के तट पर बोरास घाट पर सबसे बड़ा आंदोलन हुआ जिसमें भोपाल रियासत को भारत गणराज्य में शामिल करने को लेकर 14 जनवरी 1948 को हुए आंदोलन में 4 लोग शहीद हो गए थे. इनकी स्मृति में आज भी 14 जनवरी को शहीद दिवस मनाई जाती है।
रायसेन जिले की सिलवानी सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व विधायक देवेंद्र पटेल और भाजपा के पूर्व मंत्री रामपाल सिंह के बीच कांटे की टक्कर है। भाजपा के दबदबे बाली इस सीट पर पार्टी पिछले 2 बार से काबिज है। यह सीट भले ही सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित हो लेकिन इस सीट पर एससीएसटी वर्ग (SCST category) के मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। इस बार यहां मुकाबला कड़ा माना जा रहा है। सिलवानी की बेगमगंज तहसील में बीना नदी पर बनाए जा रहे बांध के कारण आबादी क्षेत्र प्रभावित हो रहा है। परिसीमन के बाद यहां हुए 2008 के चुनाव में रामपाल सिंह को उमा भारती की जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार देवेंद्र पटेल ने आसानी से हरा दिया था। उस समय चुनाव में कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी जसवंत सिह रघुवंशी का तो नामांकन ही निरस्त हो गया था। वर्तमान में यहां पर 2,13,998 मतदाता हैं, जिनमें 1,13,544 पुरुष तो 1,00,451 महिला शामिल हैं। यह क्षेत्र कीमती सागौन के घने जंगल होने के कारण लकड़ी तस्करी के लिए दुनियाभर में कुख्यात है।